अदम्य योद्धा महाराव शेखाजी : पुस्तक समीक्षा

Gyan Darpan
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सन २००४ में कर्नल नाथू सिंह शेखावत को एक कार्यक्रम में महाराव शेखाजी के युद्ध विषयक चरित्र पर व्याख्यान देने का अवसर मिला पर उनके पास व इतिहास में इस विषय पर सूचनाएँ बहुत कम थी| इसलिए उन्होंने इतिहासकारों की आलोचना करते हुए कहा था कि-“इतिहासकारों ने हमारे इतिहास के साथ न्यायोचित व्यवहार नहीं किया|” इस वाक्य के तुरंत बाद कर्नल नाथू सिंह के अंतर्मन ने प्रतिक्रिया दी –“दूसरों पर दोष लगाने वाले तुने क्या किया ? तूं क्या कर रहा है ? स्वयं इन विषयों की खोज क्यों नहीं करता ?

अंतर्मन से निकली चुनौती सुनकर व्यथित कर्नल नाथू सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार किया और वे चल पड़े शेखाजी के युद्ध विषयक चरित्र की खोज करने| वे इतिहासकारों से मिले उनसे जानकारी एकत्र की| शेखाजी से सम्बंधित हर स्थान मंदिर, किलों के भग्नावशेष, शेखाजी द्वारा लड़े गए युद्धों की रणभूमि उनके व उनके वंशजों द्वारा शासित गावों, पहाड़ों की यात्राएं की और इस विषय में जानकारी जुटाई जिसे “अदम्य यौद्धा महाराव शेखाजी” नामक पुस्तक के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत किया|

इस पुस्तक में लेखक ने महाराव शेखाजी के जन्मोत्सव का शानदार वर्णन करते हुए उनकी जन्म स्थली “त्योंदा गढ़” जो शेखाजी का ननिहाल था के ऐतिहासिक महत्त्व पर सविस्तार प्रकाश डाला है|
महाराव शेखाजी के कुछ्वाह वंश का परिचय देते हुए लेखक ने कछवाहों के राजस्थान आने से लेकर राजस्थान में मध्यप्रदेश से आकर कछवाह राज्य स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति दुल्हेराय जी से लेकर आमेर नरेश उदयकरण जी तक की पीढ़ियों का पुरा इतिहास समेटा है| यही नहीं कछवाहों के राजस्थान में आने के समय को लेकर इतिहासकारों में जो मतभेद है व भ्रम है उसके निवारण हेतु लेखक ने अपनी पुस्तक में विवेचनात्मक ढंग से विश्लेषण करते हुए स्पष्टता प्रदान की है| आमेर से उदयकरण जी के पुत्र व महाराव शेखाजी के पितामह बालाजी को बरवाड़ा की जागीर मिलने व शेखाजी के पिता मोकलजी द्वारा बरवाड़ा से नाण आने व मोकलजी द्वारा राजा दिलीप के आदर्शों पर की गई गौ सेवा व महाराव शेखाजी के जन्म व जन्म से जुडी जन-श्रुतियों पर प्रकाश डालते हए शेखाजी के राज्याभिषेक के समय पारिवारिक व राजनैतिक परिस्थितियों का प्रभावी ढंग से विश्लेषणात्मक वर्णन किया गया है|

पुस्तक में शेखाजी द्वारा बाल्यावस्था में ही शासन की बागडोर सँभालने व अल्पायु में ही अपने राज्य विस्तार के लिए सैनिक अभियान शुरू करने व उनके अनेक अभियानों व अनेक युद्ध विजय कर राज्य सीमाएं बढाने का सविस्तार वर्णन किया है| नाण से अपनी राजधानी अमरसर करने व अपने पाटवी राज्य आमेर के साथ विवाद व आमेर की अपने से बड़ी सेना के साथ अनेक बार युद्ध व विजय के साथ शेखाजी की उन युद्ध नीतियों व रणनीति पर प्रकाश डाला गया है| इस तरह का विवेचन एक सैनिक अधिकारी के लिए ही संभव है| और लेखक ने शेखाजी की युद्ध नातियों पर प्रकाश डालते हुए अपने सैन्य अनुभव का पुरा फायदा उठाया है|

लेखक ने महाराव शेखाजी द्वारा आमेर के साथ वि.स. १५२७ धोली युद्ध व उसके बाद कूकस नदी पर युद्ध व इन युद्धों में शेखाजी द्वारा अपनाई गई रणनीति व आमेर को शिकस्त के बाद आमेर द्वारा शेखाजी के राज्य को स्वतंत्र राज्य की मान्यता देने व उनके साथ संधि करने, उस संधि के पीछे आमेर नरेश की मजबूरियां व शेखाजी के प्रति वंश के लोगों के प्रेम आदि का बहुत ही बढ़िया तरीका से लेखक ने वर्णन किया है| शेखाजी के एक महत्वपूर्ण ढोसी-नारनोल युद्ध जो वि.स.१५३० में सुभट यौद्धा और अभिमानी, दक्ष सैन्य संचालक अखनखां के विरुद्ध लड़ा गया था का विवेचन करते हुए लेखक ने शेखाजी द्वारा अखन खां के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करने के पीछे तत्कालीन सामाजिक कारणों, राजनैतिक व आर्थिक कारणों के साथ साथ शेखाजी द्वारा अखन खां द्वारा युद्ध में अपनाई जाने वाली “बाज व्यूह रचना” प्रणाली जिसने अखन खां को विजयी बना रखा था| उसकी युद्ध प्रणाली व युद्ध दक्षता का प्रमाण यह था कि दिल्ली का बादशाह बहलोल लोदी भी अखन खां से किनारा ही रखता था को शेखाजी द्वारा किस तरह योजना बनाकर उसकी बाज व्यूह रचना का अध्ययन कर सिर्फ तोड़ा ही नहीं वरन उसकी सेना को छिन्न-भिन्न कर बिखरी हुई सेना के पुनर्गठन के दक्ष अखन खां को पुनर्गठन का मौका ही नहीं दिए जाने का बढ़िया चित्रण किया है|

महाराव शेखाजी द्वारा अफगानिस्तान से आये पन्नी पठानों के १२ कबीलों को १२ गांव देकर अपनी सेना में भर्ती करना व भविष्य में दो अलग अलग धार्मिक मान्यताओं व संस्कृति मानने वालों में कोई साम्प्रदायिक झगड़ा ना हो के लिए शेखाजी द्वारा बनाई गई एक आचार सहिंता पर लेखक ने प्रकाश डालते हुए शेखाजी की राजनैतिक दूरदर्शिता और धर्म-निरपेक्ष सोच के बारे में अच्छा चित्रण करने के साथ ही महाराव शेखाजी की न्याय व्यवस्था व अपराधियों के लिए कठोर दंड नीति का वर्णन करते हुए महाराव शेखाजी द्वारा एक स्त्री की मान रक्षा के लिए अपने ही निकट सम्बंधी गौड़ राजपूतों के झुंथर के सरदार को मृत्यु दंड देना और इसके बाद गौड़ों से एक बाद एक कुल ग्यारह लड़ाईयां सहित आखिर निर्णायक घाटवा युद्ध का वर्णन किया है|

लेखक ने घटवा युद्ध का सैन्य दृष्टि से विश्लेषण करते हुए शेखाजी द्वारा अपनाई गई युद्ध नीति व व्यूह रचना की ऐसी विवेचना की है कि जो आज तक किसी इतिहासकार ने नहीं की वही पाठक इस विवेचना को पढकर शेखाजी के रणकौशल, उनकी युद्ध नीति, दूरदर्शिता व सैन्य प्रबंधन के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ हो सकता है| गौड़ राजपूतों द्वारा घाटवा नामक स्थान की पहाड़ियों में मारोठ के युद्ध अनुभवी व यौधा राव रिडमल गौड़ के नेतृत्व में २२००० सैनिकों का जमावड़ा कर शेखाजी को युद्ध के लिए चुनौती और शेखाजी को समूल नष्ट करने के लिए रिडमल द्वारा अपनाई गई कोटबद्ध व्यूह रचना पद्धति को शेखाजी ने अपनी छोटी सी सेना से अपने से तीन गुना बड़ी गौड़ सेना को मकर व्यूह रचना से युद्ध कर बुरी तरह पराजित कर दिया| शेखाजी द्वारा अपनाई गई मकर व्यूह रचना से जहाँ शेखाजी की सेना का जान माल नुकसान नहीं के बराबर हुआ वहीं लगभग गौड़ सेना या तो मारी गई या पहाड़ों में भाग गई| शेखाजी द्वारा अपनाई गई इस व्यूह रचना का विश्लेषण करते हुए लेखक लिखता है कि- “मकर व्यूह रचना का विशेषज्ञ कोई साधारण बौद्धिक स्तर का व्यक्ति हो ही नहीं सकता| अत: अप्रत्याशित युद्ध परिणाम, अदभुत व्यूह रचनाएँ व उनका संचालन ये सब सिद्ध करते है कि शेखाजी एक महान अनुपम अद्वितीय युद्ध नितिज्ञ थे|”

पुस्तक में शेखाजी के समर सिद्धांत यथा- पहल शक्ति, एकाग्रता, वेग, अनापेक्षित दिशा आक्रमण, भ्रम, पारस्परिक तालमेल, शत्रु शक्तिकेंद्र व पार्श्व रक्षक दल को अलग-अलग करना, युद्ध जीतने के लिए आवश्यक व्यूह रचना और सेना के प्रबंधन पर विस्तार से लिखा है| शेखाजी द्वारा सिर्फ सेना प्रबंध व युद्ध निति पर ही नहीं शेखाजी द्वारा राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था, चौकी सुरक्षा व्यवस्था, राजस्व वसूली, गोपनीय सूचनाएँ एकत्र करवाने, कृषि उपज का पूर्वानुमान लगाने व शेखाजी द्वारा अपनाई जाने वाली न्याय प्रणाली व अपराधियों के लिए कठोर दंड निति का शानदार विवेचन करते हुए वर्णन किया है|

कुल मिलाकर इस पुस्तक के बारे में कहा जा सकता है कि अब तक शेखाजी पर की गई राजस्थान के महान इतिहासकारों यथा स्व.सुरजन सिंह झाझड, प. झाबरमल शर्मा, रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी, देवीसिंह मंडावा, सौभाग्य सिंह शेखावत व अन्य द्वारा की गई ऐतिहासिक शोध को लेखक ने निश्चित रूप से आगे बढ़ाया है| पुस्तक में शेखाजी के युद्ध विषयक चरित्र के साथ ही शेखाजी के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों पर लेखक ने जो विश्लेषण किया है वह एक अनुभवी व कुशल सैन्य अधिकारी ही कर सकता है चूँकि लेखक भारतीय सेना में एक महत्वपूर्ण पद पर अधिकारी रहें है व स्वयं ने भी युद्ध में भाग लेकर वीरता व साहस दिखाया है यह अनुभव लेखक को शेखाजी की युद्ध रणनीति व उनके द्वारा अपनाई जाने वाली विभिन्न परिस्थितयों में विभन्न व्यूह रचनाओं को समझने, महसूस करने में सहायक रहा|
महाराव शेखाजी के इतिहास, व्यक्तित्व और युद्ध विषयक चरित्र पर सम्पूर्ण जानकारी देती यह पुस्तक इतिहास के विद्यार्थियों के लिए तो महत्त्वपूर्ण है ही साथ ही शेखाजी के वंशजों के लिए भी यह पुस्तक पढ़ने व घर में रखने लायक एक महत्वपूर्ण संग्रहणीय दस्तावेज है|

पुस्तक डाक द्वारा पुस्तक के लेखक कर्नल नाथू सिंह शेखावत से सीधे दूरभाष पर संपर्क कर डाक द्वारा मंगवाई जा सकती है –
कर्नल नाथूसिंह शेखावत
गांव : ढाणी बाढान, खेतड़ी, (झुंझनू राज.)
वर्तमान पता :-
१०९, आनंन्द नगर, सिरसी रोड़,
खातीपुरा, जयपुर (राज.)
फोन. 09829233832 , 09772399999 , 0141-2350733


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6टिप्पणियाँ

  1. बहुत झुझारू और रण -कौशल योद्धा थे वीर शेखा जी , हमें गर्व है हम ऐसे अदम्य वीर के वंशज है।

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  2. महा राव शेखाजी अप्रितम योधा व् असाधारण व्यक्तित्व के धनि थे ।एक छोटे से करद राज्य से अपनी सुझबुझ ,रणकुशलता से ३६० गाँव के विशाल राज्य की स्थापना करना । मुस्लिम पठानों को अपनी सेना में सामिल करना उनकी दूरदर्शिता को प्रदर्शित करता है ,इस प्रकार की नीतियों का बहुधा राजपूत राजाओ में अभाव था ।वो सभी परंपरागत युद्ध शैली अपनाते थे ,जिससे अप्रितम योधा होते हुए भी पराजय का सामना करना पड़ जाता था ।

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  3. गलत लिखे इतिहास को सही रूप में लिख कर ही सुधारा जा सकता है, शेखाजी की सूझ बूझ को नमन।

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  4. बहुत ही गौरवशाली लेखनी ! जय एकलिंगनाथ जी की

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