राजस्थान री गणगौर

Gyan Darpan
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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से..............

भारत री जनपद संस्क्रति त्यूंवारां रै ओळी-दोळी घूमर घालती लखावै। अै त्यूंहार किणी पुराण कथा प्रसंग, इतिहास नायक, अवतार रै जनम, ब्याव-उछाव अर लोकदेवता रै अलौकिक चमत्कारी परचां नै जनता रै खातर जूझणियां री याद नै याद राखण तांई सईकां सूं मनाया जाता आवै है। लोकमाणस रा मन-तन में सुख री सौरम, करतब री किरण नै उछाव, उमाव अर उल्लास रौ अदीत उगावै। गणगौर त्यूंहार (Gangaur Festival) ई अैड़ी इज अेक पुराण कथा होळिका रै सरजीवण रा आख्यान नै जुग जुग सूं जीवतौ जगावतौ आवै है। विख नै ई इम्रत रूप में पीणौ इण संस्क्रति री मूळ भावना रैई है। सिव अर सती रै दिख प्रजापति रै ज्याग रै विधूंस अर सती रै पारबतां रै रूप में फेर जनम धारण करणै रै कथानक में ई गणगौर रौ अवतरण मानियौ जावै है।

गणगौर गौरड़ियां रा तिंवारा रौ सिरमौर। गण नै गवरी, सिव अर पारबती रै पूजण रौ त्यूंहार बाजै। छोटी मोटी डावड़ियां अर सुहाग भाग री चावणियां नारियां रौ नखराळौ त्यूंहार गणगौर होळिका दहण रै बीजै दिन चैत बद एकम सूं सरू होवै अर चैत सुद तीज रै दिन गणगौर री बोळावणी रै सागै पूरौ हुवै। अठारह दिन रौ औ त्यूंहार घणै लाडां-कोडां, होडां-हरखां मनायीजै है। गणगौर रौ त्यूंहार भारत रा रजवाड़ी भाग सेखावाटी, ढूंढाड़, मेवात, मारवाड़, मेवाड़, बीकाणै अर भाटीपा, हाड़ौती आद समूची ठौड़ां बडा ठसका नै ठरका सूं मनायौ जावै।

सियाळा री सरसर चालती सेळी, काया नै थरथर कंपावतौ सीळो बाव, प्रचंड देह पुरखां रा पींडा नै धूजावती पवन रौ पापौ कटै अर रितुराज बसंत रौ राज जमै। उण जीवणरस री धार सूं रसा नवौढ़ा री भांत वनदेवी बणीठणी सी लखावै। सीत रौ सफायौ होवै। वन-विटपां में नुंवौ रस बापरै। मुरझाया पेड़-पौधां में कूपळां चालै। आपरा पत्ता रूपी कान टमटमावै। कूंपळ रूपी तुर्रा नै हिलावै। खेजड़ी, नीम, फोग, बंवळ सगळां रै मींजर, फूल, फळ लहलहावै। आखी रोही सौरम री सुहावती, मनभावती महक में जीयाजूंण नै नहावै। धरती माथै इन्दर रै नंदण कानन सरीखी छिब नजर आवै। इण रितु में नर नारियां तौ कांई देव नै नाग कन्यावां रा ई धरा धाम माथै अवतरण खातर मन लचावै।

गणगौर पूजा रै खातर लौकिक मानता है कै भगतराज प्रहलाद रौ पिता दैतराज हिरणाकुस वड़ौ अभमानी, धाड़फाड़, जोमराड़ राजा हुयौ। वौ दैतवंस रौ टणकौ रुखाळौ, भगवान बिसन नै तूंतड़ा बरौबर ई नीं गिणतौ। ईसर रै ठौड़ आपनै इज करतार मानतौ। प्रहलाद आपरै पिता रै इण मत नै कूड़, अैहंकार समझतौ। वौ ईसर रौ भगत। पण रौ बडौ सकत। प्रहलाद बिस्णु री पूजा करै। बीजा भगतां, रिया रैत नै ई विस्णु महमा जतावतौ नै भगती री भागीरथी बहावण री धंख धारै। हिरणाकुस रै कहण कथन री गिणत-गिंनार नाकारै। हिरणाकुस इण नै राज विरोध मानियौ। आपरी आईन्या रै लोप सूं हिरणाकुस प्रहलाद माथै नाराज हुयौ तौ अैड़ौ हुयौ कै-आपरी भाण होळिका जिण नै महादेव भूतनाथ रौ औ वर हौ कै वा बासदै में नीं बळै-उण नै हिरणाकुस बुलाय अर कैयौ-होळिका ! औ, प्रहलादियौ, दैतवंस रौ कलंक नै कुळ रौ खैकरणियौ है। थूं इण पिताद्रोही नै गोद में लेय अर आग में बैठ सौ इण बुधबायरा दुसट रौ नास हुवै।
होळिका दैतराज री आग्या प्रवाण प्रहलाद नै आपरै खोलै में ले अर आग में जा बैठी। पण नारायण री लीला निराळी है। बाळवाळी बळ गई अर बळणियौ रैयग्यौ। होळिका बळनै राख हुई अर प्रहलाद आग मांय सूं मुळकतौ, पुळकतौ, हंसतौ हंसातौ, जीवतौ जागतौ ‘हरे किसन’ रा बोल उच्चारतौ आग माय सूं बारै नीसरियौ। फूल री छड़ी जितरौ इज घाव नीं हुयौ। प्रहलाद रै तातो बायरौ इज नीं लागौ। औ ढंग जोय नै हिरणाकुसजी रा तोत्या सूख गया। घणौ आकळ-बाकळ हुयौ। होळिका रै खावंद रौ भै ई हिरणाकुस रै पेट रौ पाणी पतळौ करण लागौ। हिरणाकुस रौ आराम हवा हुयौ। नींद न्हाट गी। चिंता में मन चक्री ज्यूं फिरण लागौ। जीव तिरूं डुबूं करण ढूकौ। जद बेकळ खातै होय अर हिरणाकुस देस परदेस रा ठावा ठींमर जोसीड़ां, भोपां, पुजारियां, पंडां अर हैदगियां नै तेड़ नै आपरी मनोदसा बतायी अर होळिका नै सरजीवण करण री विध पूछी। जद जोतसी कैयौ-होळिका री भस्मी रौ पिंड कर नै कुंवारी अर सुहागणां उण पिंड नै पूजै तौ होळिका राख सूं फेर सरजीवत हुवै।

जद होळिका री राख लाय अर कुंवारी डावड़ियां पिंड री पूजा करी जणा सातवें दिन होळिका सरजीवत हुई अर गणगौर रै रूप में लोक में पूजीजण लागी। गणगौर री पुजारणियां रै घरां में धीणौ-धापौ, नाज-पात अर सुख सम्रधी सूं अखार-बखार भरीजण लागा। धन-धीणां रा ठाठ जुड़ गया। किणी रीत भांत री उणारथ नीं रैई। बाळ गोपाळ आणंद उल्लास सूं रामतां रमण लागा। पछै पंदरवें दिन गौरज्या अेक डावड़ी नै रात रा दरसाव दियौ अर कैयौ कै-थां म्हॉरी काठ कै मांटी री मूरत बणाय, घाबा लत्ता ओढ़ाय-पहिराय, सजाय म्हॉरी असवारी काढ़ौ जिकौ थां पुजारणियां मन भायौ, चित चायौ भरतार पावस्यौ अर सुख सीळ, सुहाग भोग भोगावस्यौ। कैवै है कै जद सूं गणगौर पूजा चली आवै है।
गणगौर पूजणवाळी कन्यावां 18 दिन नित उठ निरणी बिना जळ पीयां बिना अन्न रौ दाणौ खायां कूआ, बावड़ी कै तळाव पर ढूलरौ बणाय गौरी रा गीत गावती जावै अर उठां सूं दूब, फूल, पानड़ा, तोडै़ अर निर्मळ, प्रवीतजळ सूं लोटा भरै नै उणा पर फूल-पत्ता अर दूब सजाय नै गीत गावती घरै आवै। फेर भस्मी रा ईसर गणगौर री फूल पत्तां सूं पूजा करै।
अै सगळी एक इज ठौड़ नित पूजा करै। परणेतण नारियां दो-दो रा जोड़ा सूं पूजा करै। इण पूजण में दूब रा हरा तांतवा, फोग रा ल्हासू, जौ रा जंवारा किणी सूं भी पूजा की जा सकै है। ईसर गौरी रै पिण्डां माथै जळ चढ़ावण सूं लागै कै गणगौर सिव पारबती री पूजा रौ त्यूंहार है। प्रभात रा औ क्रम चालै अर सांझ रा घूघरी, चूरमौ, लापसी आद सूं ईसर गणगौर नै जिमावै। लुगायां सांझ रा भेळी होय नै 18 दिन तांई गणगौर रा नित गीत गावै। पछै तीज रै दिन घणा उछाव सूं काठ री प्रतिमा नै सजाय अर पालकी-सी बणाय नै गांव में असवारी काढ़ै। सिवाले नै बीजा मुख बाजारां, गुवाड़ों में घूम नै गांव री किणी एक नियत ठौड़ माथै असवारी ले जावै। उठै ऊंट घोड़ा, बैलगाडियां री दौड़, बन्दूक रा फैर आद कई भांत रा खेल, कवादां हुवै। लुगायां रंग बिरंगी पोसाक, गहणा-गांटां में लड़ालूम नेह रा प्यालां सूं छकी, हंसणियां सी मंदगति सूं महालती अैड़ी सोभा पावै जाणै इन्दर रा अखाड़ा री अपछरावां आय नै गणगौर नै बधावै है। घूमर घालै, लूहर लेवै जद तौ जाणी इन्दराणी री सखियां इज चाल नै आई जाण पडै।

सोभा री सागर, गुणां री गागर, रूप री रास, चंद्र किरण सी खास, किरणां रौ उजास बिखेरती कौडीली कामणियां गीत गावै जिकी नारियां किसड़ीक उरबसी री अैवजी साजै जिसड़ीक। अैड़ी अरधांगणियां उरबसियां किण रा उर में नीं बस जावै। नाग कन्यावां भी उणां रै नेडै नीं लागै। देवराज री अपछरावां ई लजाय नै दूर भागै। तिलोत्तमा री ताई कै उरबसी री भोजाई अैड़ी नारियां जिकी परियां नै ईं रूप-सरूप में परै बैठावै। अर कदास गणगौर रै दिन उणा री सैजा रौ सिंणगार आलीजौ भंवर घर नीं आवै तौ पांखा लगाय नै उण कनै उडणौ चावै-

गवर त्यूंहार गजब रौ, मिळण उमेद करांह।
आलीजा सूं उड मिळंू, दै ब्रजराज परांह।।

सलोना साईनां सुहाग भाग अनुराग रा धणी सूं मिळण नै ब्रजराज सूं पांखड़ा मांगै अर दरसण री अभलाखा राखै-
अभलाख नार बीजी न कोय। दरसण हुवां आणंद होय।
रुकमणी किसन रौ दरस चाह। इण विध उमंग उर में अथाह।।
पपीया जेम पिव पिव पुकार। अरधंग्या तणी सुणज्यौ उदार।।

वीरबानियां रा घणकरा त्यूंहार चूड़ा चून्दड़ी री अमरता री कामनावां रा त्यूंवार गिणीजै। नारी कांई कुंवारी, कांई परणी सगळी आछा घर अर आछा वर अर कुटम कडूम्बा री सीळ सोम, सुख सम्रध, स्नेह, सोराई खातर व्रत-बडूल्या करै। पिरवार री मंगळ कामनावां इज रात दिन मन में धरै। गणगौर रा लोटिया लेय नै आवती वेळा गावती बाळिकावां रा गीतां में पिरवार रा साख-सनमंध, रिस्ता नाता नै समाज हित रा बोल गूंजीजै-

गौर अे गणगौरमाता खोलदै किंवाड़ी,
बाहिर ऊभी थांरी पूजण वारी।
आवौ अे पुजारण बायां कांई कांई मांगौ।
जळवळ जामी बाबी मांगा रातादेई माय।
कान कंवर सो वीरो मांगा राई सी भोजाई।
पीळी मुरक्यां मामो मांगा, चुड़ला वाली मामी।
ऊंट चढ्यो बहनोई मांगा, सहोदरा सी बहैण।
वडे दूमालै काको मांगा, संझ्यावाळी काकी।
फूस बुहारण फूफी मांगा, हाडां धोवण भूवा।
जोड़ी को म्हैं राईवर मांगा, सारां में सरदार।
ओ वर मांगा अे गवरळ माय।।

जठै कन्यावां समंदर सरीखौ रतानां सूं भरिया घर वालो पिता, किसन अर राधिका जैड़ी भाई भोजाई, सम्रध पिरवार मामौ अर सुहागण मामी, घर ग्रस्ती में मददगार फूफौ भूवा और सगळां में सरदार हुवै इसौ कंत चावै, उठै परणेतण आप री सथाणियां, साइनी सहेलियां रै साथै गणगौर रमण री जोड़ी रा जोधार सूं विनती करै-

खेलण दो गणगौर भंवर म्हांनैं पूजण दो गणगौर।
ओजी म्हॉरी सैयां जोवै बाट, बिलाला म्हांनै खेलण दो गणगौर।
भल खेलो गणगौर सुन्दर गौरी भल पूजो गणगौर।
ओजी थांनै देवै लडेतो पूत, प्यारी भल खेलो गणगौर।

पछै तौ गौरी गौरज्या सूं माथा रौ मैमद, सुहाग रौ टीकौ, रतनजड़ी रखड़ी, काना रा हीरा जड़िया झूठणा, मुखड़ा री बेसर, नाक री नथड़ी, कंठा री कंठसरी, हिवड़ा पर अर होरा रौ गैहणौ-मांगै। चैत माह में चंचळ चंचळावा रौ मन उछाव में उछाळा लेवै। जदी कैयौ है-

फागण पुरस चेत लुगाई। काती कुतिया माघ बिलाई।

राजस्थान में जैपर री तीज, कोटा रौ दसरावौ, जोधपुर री आखातीज अर उदैपुर री गणगैर री घणी सोभा बखाणीजै। उदैपुर में पीछोला सरोवर में गणगौर री नाव री सवारी री छिब तौ कितरा इज छैलां नै छळ लेवै। नर ती कांई महेसर ई आपरी गौरल नै पिछांण नीं पावै। इण भ्रम मुलावै कवि पदमाकर रै मुंहडै सिव जी पूछावै-
’इन गनगोरन में कौनसी हमारी गनगोर है।’
अैड़ी नाव री सवारी किसड़क लखावै, एक गीत रा बोलां में सुणावै-

हेली, नाव री सवारी सजन राण आवै छै।
पीछोला री पाळ गोर्ययां गोर्ययां लावै छै।
छतर लुळत चंवर दुळत दरसावै छै।
जोख निरख पहप बरख हरख मन छावै छै।
धीमै धीमै नाव चालै जाणै इन्दर धावै छै।
ज्यों जांणलो छटा थे म्हांसू कही न जावै छै।
उदैपुर री नाव री सवारी नै निरखण परखण परियां राई मन ललचावै। नायकावां रा टीळा, गीतां रा हबोळा अर पीछोळा री छोळां देखण नै सुभटां रौ समाज हवेलियां रा गोखड़ा पर बिराज जावै कै बाड़ियां में ऊभौ नजर आवै-

बैठो गोखां पर जठै, सुभटां तणो समाज।
उदियापुर री गणगवर, अब देखालां आज।।
उदैपुर री गणगौर मेळौ, गीतां रौ हबोळी, अपछरावां रौ टोळी इज जणावै। अैड़ा गणगौर रा प्रब पर किसौ कवि चमतक्रत नीं होय जावै अर आपरा सबद रूप नगीना में जड़णौ न चावै-
बरस आद दिन चौत रै मास चत्र बरणं,

ध्यान जग मात निज रूप ध्यावै।
देव बीसर अवर पूज जगदम्ब का,
गवर ईसर तणा गीत गावै।।1।।
चहूं पुर सहर गांवां पुरां चहुं तरफ,
नाग देवां नरां भाव भजनेव।
नवरता सकत नवधा भगत हुवै नित,
दूलही देवी अर वर महादेव।2।।
पूज जगमात नव रात सेवा परम,
प्रगट त्रहूं लोक जन मन वचन प्रीत।
इसा नह देव किण ही दखै अवर रा,
गवर रा त्रिपुर रा उछरंग उमंग गीत।।3।।
लोकवेद सह वेदां सूं न्यारौ है। लोक में अजन्मा अनाद सिव नै बिरमाजी रा बेटा मानिया जावै है। गणगौर ईसरजी नै प्याला देती, मुजरौ करती अर झाला देती आवै है-
देखो म्हांरी सैयां थे बिरमाजी रै छावै री गणगोर।
ईसरदास ल्याया छै गणगोर, राना बाई रै बीरा री गणगोर।
झाला देती आवै छै गणगोर, मुजरो करती आवै छै गणगोर।
आगै ईसर व्हैैर्यया छै गणगोर, प्याला पीता आवै राज राठौड़।
कानां में कुंडल पैर्यया छै गणगोर, झूठणा घड़ावै राव राठौड़।।
घुड़ला री घमरोळा आवै छै गणगोर, मनड़ो उमावै छै गणगोर।।

राजस्थान री धरती माथै प्रक्रतिदेवी मन चाया तरीकां सूं मोहित होई है। कटैई बाळू रेत री लांवी भरें, भाखरां री चोटी पर सवारी करता टीबा, कठैई नद नाळा, खाळा हरिया चिरम बीहड़ है । अैड़ी भांत भतीली धरती री प्रक्रति अर संस्क्रति ई न्यारी निरवाळी है। पण राजस्थान में चावै मेवाड़, माड, मारवाड़, जांगलू सेखावाटी, मेवात, हाडोती कठैई जावौ सगळा भागां में त्यूंहार संस्क्रति अेक समान लखावै। राजस्थान री भूमि री अनेकता में सांस्क्रतिक एकरूपता साव साफ नजर आवै। बीजा पड़गना री तरै इज मेवात में ई गणगौर रौ त्यूंहार उमंग-उल्लास रै साथै मनावै। अलवर री गणगौर रो उछाव नीचै री ओेळियां में देखण में आवै-

मास चैत उछब महा, हुवै गणगोर हंगाम।
हुवै मंगल घमल हरख, तिणवर सहर तमाम।।
तिणवर सहर तमाम, पारबती पूजवै।
गावै गिरजा गीत, गहर सुर गूंजवै।।
सजि सोलह सिंणगार, नारि नव नागरी।
बण ठण अेम बहार, विलौके बागरी।।
गणगौर रा उछब नै नव जुवतियां नवेलियां रा बणाव ठणाव नै कण्ठां रा सरस सुरीला गीतां री धुन सुण नै बागां में कोयलां ढहूका देणौ भूल जावै-
रहै चूकि सुण राग सुर, कोयल यों कूकंत।
छटा इसी छंदगारियां, फुलबाड़ियां, फबंत।।
फुलबाड़ियां, फबंत चमन गुल चूंटवै।
अेक अेक संू अगै, लगै हठ लूटवै।।
लता बीच ल्हुक जात, विगर कंटकि वड़ै।
मिल गुल चसमां मांहि, पिछांणी नह पड़ै।।

अैड़ी कामणगारियां जिकी रा मीठा सुरां रै धकै कलकंठी कोकिलां पाणी भरै। लुभाणा लोयणा री प्रगियां लाजां मरै। लतावां जैड़ा लचीला गात, पहपां जैड़ा कोमल अंग जिकी लतावां रै झुरमट में ल्हुक जावै तौ खोजणौ अबखौ पडै़। पछै अमरावती रौ आवास कठै अलवर री बरोबरी चढ़ै।

कंचन भर लावै कलस, दूब कुसम इण दाय।
पती पारबती पूजवै, इम निज निज प्रह आाय।।
इम निज निज ग्रह आय, क अंब अराधवै।
दिन प्रत सोडस दिवस, सबै सह साधवै।।
सित गिरजा सतूठ, धरै सुख दै घणै।
मिलै वास जग मांय, तिकां अलवर तणै।।

गौरल री असवारी री छिब अर हसगामणियां रा टोळा तौ राजहंसां रा टोळा री ओपमा पावै। कवि एक जिभा सूं कींकर बखाणकर जतावै-
होवै अत अनुपम हरख, रोज संझारां दीह।
वणै जिकी छवि बेखियां, जाय न वरणी जीह।
जाय न वरणी जीह, छटा छत्रधार री।
असवारी अंबा तणी, बणी बजार री।।
टोळी हंसी तेम क, दौळी दासियां।
जेवर रतनां जड़ी क, अमर उजाणियां।।

गणगौर री सवारी रै साथै चौकसी खातर चौगिड़दै भाला, बरछा, बन्दूक, सांगां, चालै। नगारा, निसांणा, छड़ी, झंडा लियां सिपाही इयां लखावै जाणै फौज पलटणा रौ लवाजमौ विजै करण नै दुसमणां रै देस पर ध्यावै है।

गणगौर रौ अपहरण ई कदै कदै कर लियौ जातौ, इणी खातर रुखाळी रौ पूरौ सरजाम रखण में आतौ। इयां इज अेक बार सिंघपुरी (जोबनेर) रौ रामसिंघ खंगारोत मेड़ता री गणगौर उठा ल्यायौ जिणारी साख अेक वीरगीत में बखाण पायौ-

मरद तूझ आसंग दूसरा माधवा, अभंग दूदाण ऊभां अथागां।
मेड़ता तणी गणगोर मांटी पणै, खांगड़ो लियायो पांण खागां।।
बराराकोट नरहरां रा बहादर, जस गल्लां धरा रा धणी जाणै।
खांगड़ा पागड़ा घणा ऊभा खगां, अरधंग्या ईसर तणी आणै।।
कूरमांछाल अखियात कीनी कहर, सुणी आ बात सारां सरायो।
हेक असवार दै उराणै हैमरां, लाख असवार विच गोर लायो।।
तवां रंग राम रै जोत घोड़ी तनै, सांम रै काम दौड़ी सलूधी।
मुरधरा बिरोलै लियायो महाभड़, सिव तणी नारसिंणगार सूधी।।

राजस्थान में गणगौर प्रब जठै होडाहोड उछाव करनै मनायीजती उठै बूंदी में गणगौर री महाराज जोधसिंघ री गणगौर सवारी समेत बूंदी रै तळाव में डूब नै मर जाणै रै कारण ओख मानी जाती। इण कारण सूं बूंदी में गणगौर उछाव नै असवारी नीं निकळती। आ कहणगत ‘हाडो ले डूबो गणगौर’ जोधसिंघ री मौत नै लेय नै इज चालै है। अेक पन्दराड़ी अेक तीन तांई गणगौर रा लाड लडाय अर बेस बागा, दात दायजो देय नै सीख देवै जिण नै गणगौर बोलावणी कैवै है इण भांत मांटी रा पिंडा नै तो कूआ बावड़ी में पधराय देवै अर काठ रा ईसर गणगौर नै एक दूजा का मुंडा उलटा सीधा कर नै घरै ले आवै।

गणगौर रै पछै चौमासा में तीज रौ त्यूंहार इज आवै है। लोक में इणी वास्ते कहतीणौ है- तीज त्यूंहारां बाहुड़ी ले डूबी गणगौर। गणगौर रौ त्यूंहार गिरजापति गौरी री आराधना रौ त्यूंहार है। इण में होलिका नै सरजीवण करणै रै लारै तंतर-मंतर विद्या रा देव सिव री महानता अर जोग.बळ रौ बीजांकुर ई सामिल है। बैस्णब अर सैव भगति रौ अनोखौ मेळ गणगौर त्यूंहार रै पाछै घुळ्यौ मिळ्यौ जाण पडै़ है।


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1टिप्पणियाँ

  1. नमन कलमकार को । राजस्थानी भाषा के शब्दों को गणगौर के वृत्तचित्र के रूप में पढ़कर त्योंहार की सुवास सजीव हो उठी ।

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