वीर सावरकर – जन्म दिवस पर विशेष

Gyan Darpan
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भारत की पुण्य धरा प्रारम्भ से ही रत्नगर्भा रही है। इन नर-रत्नों ने अपने ज्ञान, स्वाभिमान, त्याग तपस्या, निःस्वार्थ प्राणी मात्र की सेवा आदि दैदीप्यमान सदगुणों से पृथ्वी तल को आलोकित किया है। ऐसे नर पंुगवों की तालिका में उच्च स्थान पर रखने योग्य एक नाम है - वीर विनायक दामोदर सावरकर।
स्वतंत्रता के पिछले वर्षो में कांगे्रस सरकार ने दुर्भावनावश विनायक सावरकर को पृष्ठभूमि में धकेलने का पूरा कुत्सित प्रयत्न किया। किन्तु ऐसे व्यक्तित्व किसी की कृपा के मोहताज नहीं होते। सत्य तो अपने पूरे तेज के साथ प्रकट होकर रहता है। बादल कितने दिन सूर्य को ढक कर रख सकतें हैं। उस प्रखर तेजस्वी महापुरूष को उनके 132 वें पावन जन्मदिवस पर स्मरण करना और उनके पद्-चिन्हों पर चलना ही इस आलेख का हेतु है।

28 मई स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर की जन्म-तिथि है। देहान्त उनका 26 फरवरी 1966 को हुआ था। 1883 से 1966 तक की उनकी जीवन-यात्रा देश को समर्पित रही। जेल से भाभी को लिखें पत्र की ये पक्तियॉ कि “चिड़ियों की तरह घौसला बना कर, परिवार बसाना ही जीवन की सफलता का द्योतक है तो हम असफल रहे परन्तु व्यापक अर्थो में व्यक्तिगत परिवार न बसा कर देश के लिए जीना सही मायने में जीना है तो हमारा जीवन सार्थक हुआ, धन्य हुआ” प्रमाणित करती है कि वे देश के लिए जिए मृत्युपर्यन्त देश ही उनके लिए सर्वस्व था।

बाल्यावस्था में ही अपनी कुलदेवी के समक्ष उन्होनें देश की स्वतंत्रता के लिए आजीवन संघर्षरत् रहने का संकल्प धारण कर लिया था। किशोर अवस्था के प्रारम्भ में उन्होने “अभिनव भारत” संस्था का गठन कर अपनी संगठन कुशलता और संगठन के महत्व को प्रतिपादित कर दिखाया। चाफेकर बन्धुओं का बलिदान और लोकमान्य तिलक से वे अत्यधिक प्रभावित थें। छत्रपति शिवाजी महाराज तो उनके आराध्य देवतुल्य ही थें।

पूणे के फग्र्यूसन कॉलेज में अध्ययन करते समय विदेशी वस्त्रों की होली जला कर उन्होने स्वदेशी का महत्व सिद्ध किया। श्याम जी कृष्ण वर्मा के सहयोग से छात्रवृति प्राप्त कर आगामी अध्ययन हेतु विनायक सावरकर इंग्लैण्ड पँहुचे। “इण्डिया हाउस” में रहते समय भी भारतीय युवकों को देश की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करते रहते थें। उन्ही में से एक नवयुवक मदनलाल घींग्रा ने खचाखच भरे सभागृह में अंगे्रज वायसराय लार्ड कर्जन की गोली मार कर हत्या कर दी और फॉसी के फन्दे पर झूल गया । “1857 प्रथम स्वातंत्र्य समर” लिखकर उन्होने यह संदेश दिया कि वह मात्र गदर न होकर सम्पूर्ण देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया व्यापक एंव संगठित प्रयत्न था।

जर्मन एकीकरण के निर्माता मैजिनी पर भी उन्होने ग्रन्थ लिख कर नौजवानों को देश के लिए कार्य करने की प्रेरणा प्रदान की । ऐसा प्रखर व्यक्तित्व अंग्रेजो की आँख की किरकिरि बनना स्वाभाविक ही था । उन्हें गिरफ्तार कर मोऱया नामक पानी के जहाज से भारत लाया जा रहा था। तब उन्होने जहाज के शौचालय से समुन्द्र में छलांग लगा कर फ्रॉसीसी तट पर पँहुच कर फ्रांसीसी पुलिस को स्वयं को गिरफ्तार करने की सलाह दी । तब तक अंगे्रज पुलिस ने वहॉ पँहुच कर उन्हें फिर से गिरफ्तार कर कडे़ पहरे में बम्बई लाया गया। मुकदमें का नाटक रचा गया और उन्हे दो जन्मों का कारावास (1910 से 1960) की सजा मिली । इस पर उनका वक्तव्य था “चलो अंग्रेजो ने हिन्दुओं के पुनर्जन्म के सिद्धांत को तो माना।”
अण्डमान के कारागृह में ले जाने पर सन्तरी ने तख्ती पर 1960 देख कर आश्चर्य व्यक्त किया तो वे बोले “क्या तुम्हारा शासन 1960 तक रहेगा भी ?” कालेपानी की कठोर यातनांए भी इस महावीर को डिगा नहीं सकी। कोल्हू में बैल की जगह जुत कर निश्चित मात्रा में तेल नहीं निकालने पर कोडे. पडतें थें, अंधेरी कालकोठरी में रहना पड़ता था, नित्य नहाने की अनुमति नहीं थी, रात्री में शौच भी कोठरी में ही करनी पड़ती थी।

ऐसी भयानक यातनाओं के चलते कई क्रान्तिकारी पागल हो गए, अनेकों ने सागर में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली। परन्तु विनायक सावरकर ने कोठरी में कोयले से दीवारों पर लिख और याद कर ग्रन्थांे की रचना कर डाली ंजैसे प्राचीन ऋषि मुनि शास्त्र रचा करते थे। कालेपानी की सजा भोगते समय भी जेल में मुसलमान बन्दियों द्वारा धर्मान्तरित किए गए हिन्दु बन्दियों का घर वापसी कार्यक्रम चलाकर शुद्धिकरण जैसा पवित्र कार्य भी किया। इसी जेल में इनकी भेंट अपने बडे भाई बाबाराव सावरकर से हुई। आमना सामना होने पर पता चला दोनो भाई देश की स्वतन्त्रता के लिए घोर श्रम करते हुए यहाँ तक आ पँहुचे।
तीसरे सबसे छोटे भ्राता गणेश सावरकर भी अपनें अंग्रेजो के पदचिन्हों पर चलते हुए देश कार्य कर रहे थे। इस बीच अंग्रेजो पर सावरकर की रिहाई के लिए दबाव पड़ने लगा। तब रत्नागिरि में उन्हें नजरबन्द करके रखा गया। रत्नागिरी में विनायक सावरकर ने पतित पावन मन्दिर का निर्माण करवा कर एक हरिजन बंधु को पुजारी नियुक्त किया। सावरकर सामाजिक समरसता के भी पुरोधा थे इस प्रकार उन्होने सिद्ध किया। उन्होने कहा “कुते को छूते हो बिल्ली को दूध पिलाते हो और अपने ही हिन्दू बंधु से घृणा करते हुए तुम्हें शर्म नही आतीघ्” रत्नागिरी की नजरबन्दी अवस्था से मुक्त होने के उपरान्त विनायक राव सावरकर ने हिन्दू महासभा के मंच से राजनीति की पारी की शुरूआत की। वे गाँधी नेहरू की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के घोर विरोधी थे। देश भर में आमसभाओं के माध्यम से उन्होने भारत विभाजन की सम्भावना और उसे रोकने के उपायों से आमजन को अवगत करवाया। परन्तु दुर्भाग्य से भारत विभाजन होकर रहा। इसके लिए उन्होनें गाँधी नेहरू और कॉग्रेस की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। सावरकर जी की स्पष्ठ मान्यता थी कि हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है।
इसी बीच माहत्मा गाँधी की हत्या के आरोप में स्वतंत्र भारत की सरकार ने इन्हें जेल में डाल दिया। परन्तु आप खरे तपे कुन्दन की तरह निर्दोष होकर लौटेे। चीनी खतरें को भी दूरदृष्टा होने के नाते आपने पूर्व में ही भॉप लिया था। नेहरू सरकार को आपने चेतावनी भी दी। परन्तु कल्पना लोक में विचरण करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने सावरकर को अनसुना कर दिया। जिसका खामियाजा हजारों वर्ग कि.मी. भूमि गंवा कर देश को भुगतना पड़ा।
लालबाहदुर शास्त्री के प्रधानमंत्रीत्व काल में 1965 में जब हमारी सेनाएं आगे बढ़ रही थी तो वे अपने बिस्तर पर लेटे बैठे ही उत्साहित होते रहते। अखण्ड़ भारत का मानचित्र उनके कक्ष में टंगा रहता था। उनके अन्तिम दिनों में जब अटल बिहारी वाजपेई ने उन्हें दवा लेने और खाना पीना नहीं छोडकर अभी आपको हमारे बीच रहना है, ऐसा कहा तो उनका प्रत्युतर था“ हाँ मै अभी और जीवित रह सकता हूँ अगर कोई वादा करे कि आगामी 5 वर्षो में भारत अखण्ड हो जायेगा। परन्तु ऐसा हो न सका। और अखण्ड भारत का पुजारी खण्डित भारत में 26 फरवरी 1966 को मध्याहन में भारत माता की गोद में चिरनिद्रा में सो गया।
सावरकर जी ने गोमान्तक, मोपला, हिन्दुत्व, आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की। नाटक और कविताए भी उन्होने रची। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, कुशल संगठक, प्रखर क्रान्तिकारी, ओजस्वी वक्ता, लेखक, अखण्ड भारत के स्वप्नदृष्टा, हिन्दुत्वाभिमानी वीर विनायक दामोदर सावरकर को उनकी जन्मतिथि पर विनम्र आदराजंली।

वीर सावरकर को शीघ्रातिशीघ्र भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। स्मरणीयर:

- नेताजी सुभाषचंद्र बोस को जेल में जवानी न सड़ाते हुए भारत से बाहर जाकर सेना का गठन करने का सुझाव सावरकर जी द्वारा दिया गया था।
- रा. स्व. संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव हेडगेवार को भी सावरकर जी का आशीर्वाद प्राप्त था।
जगदीश पुरोहित
़919784010851
आदर्श सेन्ट्रल सी. सै. स्कूल
शास्त्रीनगर जोधपुर।

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5टिप्पणियाँ

  1. अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने. शुक्रिया

    http://cricketluverr.blogspot.in/
    http://chlachitra.blogspot.in/

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, २८ मई का दिन आज़ादी के परवानों के नाम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-05-2015) को "जय माँ गंगे ..." {चर्चा अंक- 1990} पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  4. वास्तव में ऐसे वीर-रत्नों ने जो इतिहास बनाया है वह हर भारतवासी की अमूल्य धरोहर है . ऐसे लोग विशेष रूप से ईश्वर का वरदान लेकर जन्म लेते हैं . साधारण मनुष्यों की ऐसी हस्ती कहाँ ..

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  5. भारतमाता के ऐसे अमर सपूत को कोटिक वंदन !

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