नेताजी की बेफिक्री का राज

Gyan Darpan
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एक के बाद एक बड़े बड़े घोटालों का नित्य प्रति भंडाफोड होने से पार्टी की हुई बदनामी के बावजूद नेताजी अब भी अपनी जीत के प्रति के आश्वत है| इसलिए जब भी मिलते है बड़े बेफिक्र दिखते है, उन्हें बेफिक्र और बेशर्म देखकर हमने सोचा, इनकी इस बेशर्मी व बेफिक्री का राज जाना जाय| सो हमने भी कुछ दिनों से अपने आप में पत्रकारिता के एक आध गुर आत्मसात कर नेताजी के सामने उनके पक्ष में राज उगलवाने के चक्कर में बोलना शुरू कर रखा था| हालाँकि अपनी पार्टी के हम जैसे धुर विरोधी के मुंह से अपने पक्ष में बातें सुन नेताजी भी अवाक थे| दूसरी और हमारे जानने वाले नेताजी के पक्ष में बोलने पर हमारे ऊपर “लगता है आप भी मिडिया की तरह बिक गए है” जैसे ताने मारने से नहीं चूक रहे थे| हम नेताजी से राज उगलवाने के चक्कर में स्व-घोषित पत्रकार बने घूम रहे थे, पर भाई लोगों ने तो तानें कस कर हमें पूरा मिडिया हाउस बनाने में भी कसर नहीं छोड़ी| खैर.........

आज जब नेताजी मिले तो हमने उनके प्रति आत्मीयता जताते हुए व उनके शुभ-चिन्तक बनते हुए पूछ ही लिया कि- “नेताजी ! बाबा व अन्ना ने भ्रष्टाचार व कालेधन के मामले में आपको भले फालतू ही सही पर बदनाम तो कर दिया| और ये केजरीवाल तो पीछे ही पड़ा है| इसमें तो नैतिकता नाम की चीज ही नहीं है अब बताईये भला कभी किसी शरीफ व्यक्ति ने आजतक किसी के बेटी-जमाई पर कीचड़ उछाला है? अरे! किसी से कितना भी पंगा क्यों न हो, पर बेटी-जमाई को तो छोड़ ही देता है और ये केजरीवाल है कि-“बेटी-जमाई पर निशाना साधकर अपना राजनैतिक स्वार्थ साधने के चक्कर में सारी मर्यादाएं ताक पर रख राजनीति कर रहा है| इससे तो विपक्ष ही अच्छा, कम से कम उसे आप किसी तरह से मैनेज तो कर ही लेते है| जैसे एक विपक्षी अध्यक्ष को आपके एक गठबंधन दल ने मैनेज कर रखा है|
(इस तरह की बातें कर हमने नेताजी की राजनैतिक हालत के प्रति चिंता जताई)

नेताजी भी बुरे वक्त में इस तरह की सदभावना-पूर्वक बातें सुनकर भाव-विभोर हो बोलने लगे- “ भाईजी| हालाँकि ये केजरीवाल कुछ ज्यादा ही कर रहा है फिर भी ये हमारी पार्टी की जीत के लिए काम आएगा|

हमने पूछा- “कैसे ?“

नेताजी बोले- “देश में हमारे खिलाफ गुस्सा है, इस बात में कोई दो राय नहीं| पर जिस तरह केजरीवाल आजकल चिल्ला-चिल्ला कर शहरी जनता में अपनी पैठ बना रहा है| इससे चुनावों में हमसे नाराज लोग अपनी भड़ास निकालने के चक्कर में हमारे खिलाफ इसे वोट डाल देंगे| यही वोट यदि विपक्षी ले जाता तो हमारा नुक्सान होता| पर हमारी सत्ता को चुनौती देने वाला ये क्रन्तिकारी तो हमारे फायदे के लिए वोट कटवा साबित होगा|

हमने कहा- नेताजी ! ठीक है शहरों के पढ़े लिखे जो लोग आपके खिलाफ है उनका खतरा तो इस बहाने टल जायेगा| पर जीत के लिए जरुरी बाकी वोट कहाँ से लायेंगे ?

नेताजी कहने लगे- “भाईजी! लगता है आपको राजनीति का थोडा बहुत भी ज्ञान नहीं| पर हम नेता है, इत्ते वर्षों से देश पर राज यूँ ही नहीं कर रहे है, हम जानते है जीतने के लिए क्या चाहिए ?”

हमने नेताजी को राजनीति का गुरु मानते हुए “चुनाव जीतने के गुर” पूछे और नेताजी भी एक गुरु की तरह बिना कंजूसी किये हमें ज्ञान देने लगे—

1-चुनाव में अपने खिलाफ पड़ने वाले वोटों को विपक्षी के पक्ष में जाने से रोकने के लिए एक वोट कटवा उम्मीदवार खड़ा करना पड़ता है| हमारे लिए ये कार्य केजरीवाल एंड पार्टी आसानी से कर देगी|
2- शहरों में वोटों का घनत्व सबसे ज्यादा कच्ची बस्तियों, अनियमित कालोनियों, दलित बस्तियों, अल्पसंख्यक मुहल्लों में होता है जिन्हें हासिल करने के लिए कोई बड़े उपाय नहीं करने होते पर हाँ ये छोटे-छोटे उपाय भी हमारे अलावा हर कोई दल नहीं कर सकता| और हम इनमें अनुभवी व एक्सपर्ट है, चुनाव प्रबंधन के ये छोटे-छोटे गुर इस तरह है –
3- अनियमित कालोनियों को नियमित करने का कार्य या झांसा|
4- कच्ची व दलित बस्तियों में चुनाव के दौरान रोज शराब की सप्लाई| इतनी कि दूसरे की बात सुनने की उन्हें फुर्सत ही ना मिले| बस चुनाव में वोट डालने तक शराब पीने में ही व्यस्त रहें| यदि शराब के नशे में इनका किसी से कोई झगड़ा हो जाए तो उसे ऐसे प्रचारित करना कि- इन दलितों पर हमला विपक्षी के इशारे पर हुआ है| और इस तरह उस झगड़े को दलित उत्पीड़न का नाम देकर भुनाना|
5- इन्हीं बस्तियों में औरतों के लिए साड़ीयां आदि भिजवाना, ताकि वे भी नई साड़ी पहन अपने पति से शराब पीने की वजह पर झगड़ा ना करे|
6- छोटे-मोटे साम्प्रदायिक दंगे होते ही वोट बैंक वाले सम्प्रदाय का पक्ष ले लेना और एक संप्रदाय को दूसरे सम्प्रदाय से डराकर अपने पक्ष में रखना|
7- विपक्षी के खिलाफ साम्प्रदायिकता का आरोप लगाकर टीवी और पुरे मिडिया में धुंआधार प्रचार कर बदनाम करना|
8- गावों में वोट जातिय आधार पर दिए जाते है| इसलिए जिस क्षेत्र में जिस जाति के ज्यादा वोट हो उसी जाति के किसी अपने चेले को उम्मीदवार बनाकर उस बहुसंख्यक जाति की जातिय भावनाओं का दोहन कर वोट प्राप्त कर लेना|
9- आजकल आरक्षण से हर कोई दुखी है पर फिर भी आरक्षण हटाने की कोई बात नहीं करता| बस सब अपनी अपनी जाति के लिए आरक्षण मांगते है अत: ऐसी मांग रखने वालों को उन्हें आरक्षण में शामिल करने का झुनझुना पकड़ा देना|
10-चुनाव के वक्त अगड़ों पिछड़ों में अगड़ों द्वारा शोषण की कहानियां घड़कर पिछडों को अपने पक्ष में कर लेना| या दोनों के झगडों में उसका पक्ष लेना जिसके वोट ज्यादा हों|
11- सबसे तगड़ा फार्मूला अपने आपको सेकुलर साबित करने के लिए हर हथकंडा अपनाकर सेकुलर बने रहने का प्रचार करना| लोगों को लगे कि हमसे बढ़कर दूसरा कोई सेकुलर नहीं|
12- पडौसी देशों के घुसपैठियों को देश में घुसाकर उनके नाम मतदाता सूची में डालकर एक ऐसा तगड़ा वोट बैंक बना लेना जो हर हाल में वोट अपने को ही दें|

ऐसे और भी कई नुस्खे है जो आपको हम फिर कभी बताएँगे| नेता जी ने ये बिंदु बताते हुए हमसे कहा| उपरोक्त नुस्खे जानकार हमने नेताजी से कहा- यदि इसके बाद भी आप चुनाव जीतने में सफल नहीं रहे तो आपके खिलाफ जाँच और फिर तिहाड़ .......

नेताजी बीच में ही बोल पड़े- इसके बाद भी हार गए तो भी हमें कोई डर नहीं| सेकुलरता के नाम पर ऐसी चाल चलेंगे कि विपक्षी सत्ता के लिए ताड़ता ही रह जायेगा| और हम क्षेत्रीय पार्टियों का कोई तीसरा चौथा मार्चा बनवाकर उसे समर्थन दे अपनी कटपुतली सरकार बना लेंगे| फिर कौन करेगा हमारे खिलाफ जाँच ? और गलती से विपक्षी सता में आ ही गया तो उनके व्यापारी नेताओं को भी हमने अपने राज में व्यापारिक फायदे पहुंचाकर छोटे-मोटे घोटालों में शामिल कर रखा है| जब वे हमारे खिलाफ जाँच में खुद फंसते नजर आयेंगे तो क्या ख़ाक जांच कराने की सोचेंगे? उल्टा हमारे कारनामों पर पर्दा डालने में काम आयेंगे| आखिर चार काम हम उनके भी करते है और वे बदले में हमारे|

हमने नेताजी से चुनाव प्रबंधन और जीत के इस तरह के राज जानकार कहा- “नेताजी ! ऐसे हथकंडे अपनाकर चुनाव जीतना और हार जाने के बाद भी विपक्ष में ना बैठना कैसी नैतिकता है ?

नेताजी बोले- “अब राजनीति में तो सब जायज है| लगता है आपने चाणक्य वाला सीरियल नहीं देखा| चाणक्य ने भी तो विरोधी राजा को पटकनी देने के लिए वो हर हथकंडा अपनाया था जिसे नैतिक नहीं कहा जा सकता| और उसने यही शिक्षा दी कि राजनीति में सफल होना मायना रखता है,यही स्कूलों में पढाया जाता है कि जीतने के लिए भले कैसा भी रास्ता अपनाना पड़े जायज है| अब हम तो चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ का ही तो अनुशरण कर रहें है|”

हमने कहा-“नेताजी ! आपकी चाणक्य वाली बात तो सही है कि उसने राजनीति में हर हथकंडा अपनाया पर उसकी राजनीति से एक बात खास थी और वो थी-“देश-भक्ति, देश-हित, जनकल्याण” और आपकी राजनीति में देशहित की बात तो छोड़ो देश का ही कहीं कोई पता नहीं| सिर्फ आत्म-कल्याण की बात ही है|

हमारे मुंह से एकाएक अपने विपरीत विचार सुनकर नेताजी ये कहते आगे बढ़ गए कि- “आप लोगों के मन में बैठा “ये राष्ट्रवादी विचार” पता नहीं कब निकलेगा| हम तो देश-हित सिर्फ एक ही बात में समझते है कि बस सत्ता हमारे हाथ में हों तो वही देश-हित में है|

नेताजी तो यह कर चलते बनें और हम इस सोच में डूब गए कि- इनके खिलाफ वोट देकर इनको सत्ता से बेदखल करने के बाद भी जनता को क्या मिलेगा? ये नहीं तो इनके समर्थक सत्ता में आकर इसी तरह लूटेंगे और मुख्य विपक्षी भी आया तो वो भी इनके हाथों मैनेज है| नेताजी को हार-जीत का कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, फर्क पड़ेगा तो सिर्फ और सिर्फ जनता पर|

इतना सोचने के बाद भी हम इसी उपलब्धि में खुश थे कि- नेताजी से उनकी बेफिक्री और बेशर्मी का राज जानने के साथ साथ उनके चुनावी हथकंडों के बारे में भी जानकारी ले ली|


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6टिप्पणियाँ

  1. राजनीती को ब्यान करती बिल्कुल सटीक पोस्ट....

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  2. आपका ब्लॉग ''इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड '' सामूहिक ब्लॉग पर भी अपडेट होता है.और आपकी हर नयी पोस्ट यहाँ अपडेट्स के जरिये नज़र आती है.हमारा उद्देश्य हिंदी ब्लोग्स का प्रमोशन करना.और इंडियन ब्लोगर्स का एक समूह बनाना है.ताकि हम सभी मिलकर एक दुसरे के सहयोग से हिंदी ब्लॉग जगत का नाम रोशन कर सकें.आपसे भी निवेदन है की आप भी यहाँ आयें.और आज ही इसे ज्वाइन कर लें.और इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड के सदस्य बन जाएँ.

    इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड

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  3. उन्हें जनता और उसकी स्मरणशक्ति पर भरोसा है।

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  4. बढ़िया, लेकिन! हर बार सफलता की कुंजी है |

    टिप्स हिंदी में

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  5. साँप नाथ और नाग नाथ मे चुनना एक ज़रूरी है
    लोक तंत्र की व्यथा यही है जनता की मजबूरी है

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