गायत्री मन्त्र का रचियता कौन ? किसने बनाया था गायत्री मन्त्र ? जानिये गायत्री मंत बनाने वाले के बारे में ..
Gayatri-Mantra : जिस प्रकार भारत में पुष्कर Pushkar को तीर्थराज माना जाता है उसी प्रकार मन्त्रों में भी गायत्री मंत्र Gayatri Mantra को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह वास्तव में सूर्य नारायण का मंत्र है और उससे भी आगे गौरव की बात यह है कि इस श्रेष्ठतम मंत्र के दृष्टा क्षत्रिय विश्वामित्र Rishi Vishvamitra थे। मंत्र शब्दार्थ इस प्रकार है-
ॐ भू भुवः स्वः तत सवितृ वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियोयोनः प्रचोदयात।
ॐ – जो कि प्रणव, आदि स्वर, बीज है। भू- भू लोक- यह पृथ्वी। भुवः- भुवर्लोक – पृथ्वी से ऊपर वायुमंडल। स्वः- स्वर्गलोक जहाँ देवता, अप्सराएँ गंधर्व आदि निवास करते है। भू लोक पर रहने वाले अच्छे व्यक्तियों, संतों, तपस्वियों आदि से भूवर्लोक में सती, झुंझार, भौमिया व अन्य हुतात्माएँ सूक्षम शरीरों में तपस्यारत अन्य सद्शाक्तियों से और स्वर्गलोक में रहने वाले देवताओं से साधक अपनी साधना में सहायता के लिए आह्वान करता है।
सवितृ देव का मंत्र तो अब आरम्भ होता है- तत सवितृ वरेण्यम- वरण करने योग्य उस सवितृ।
भर्गो देवस्य धीमहि- श्रेष्ठ देवताओं का ध्यान करते है। धियोयोनः प्रचोदयात- जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
अतः मंत्र का अर्थ हुआ-“वरण करने योग्य श्रेष्ठ देवता सवितृ का हम ध्यान करते है जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करें। यहाँ मंत्र के दृष्टा ऋषि विश्वामित्र में सवितृदेव से कोई धन, धान्य, राज्य, सत्ता, शक्ति, बुद्धि, मुक्ति, प्रेम, दया आदि की याचना नहीं की। मात्र सन्मार्ग की ओर बुद्धि को प्रेरित करने का कार्य करे यह अभिलाषा है। विश्वामित्र जी ने इस बात को सूक्ष्म रूप से समझा कि सन्मार्ग की ओर प्रेरित बुद्धि ही कल्याणकारी है, न कि शक्तिशाली बुद्धि और ऐसे मंत्र की रचना की जिसकी सर्वश्रेष्ठता आज तक निर्विवाद है।
रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, परशुराम आदि पथभ्रष्ट व्यक्ति मुर्ख नहीं थे, बल्कि बुद्धिमान थे पर सन्मार्ग पर ना चलने की वजह से बुद्धि का आधिक्य होने के बावजूद इतिहास में खलनायक के रूप में दर्ज है। गायत्री मंत्र- सवितृदेव सूर्य जिनसे यह सम्पूर्ण सृष्टि निसरित हुई है-का मंत्र है। मंत्र के शब्दों में कहीं गायत्री देवी का उल्लेख नहीं आता। मंत्र की रचना का छन्द अवश्य गायत्री है। किसी भी श्लोक अथवा मंत्र जिसमें 24 अक्षर हों उसे गायत्री छन्द में रचित कहते है। अतः छन्द के नाम पर मंत्र का नाम Gayatri-Mantra कर देना और उसे गायत्री देवी से सम्बद्ध कर गायत्री देवी नाम से छोटे-मोटे ग्रंथों की रचना कर उन्हें जन प्रचलित करना विश्वामित्र जी के साथ खिलवाड़ ह
क्षत्रियों द्वारा इस मंत्र (Gayatri-Mantra) के तत्व और महत्त्व को व विश्वामित्र के चरित्र के महात्म्य को विस्मृत कर दिए जाने का परिणाम यह हुआ कि आज इस मंत्र के ठेकेदार कोई और बन बैठे और क्षत्रिय इसके लाभों से उसी प्रकार दूर हो गये जैसे श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को बताये गए रास्ते से दूर हो गये। परिणामतः इस राह के भी मालिक कोई और बन बैठे।
सीताराम सिंह बड़नगर की पुस्तक “विश्वामित्र” से
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ऐसा नहीं है मान्यवर
विश्वामित्र राजा गाधि की संतान अवश्य थे लेकिन उनके वीर्य से पैदा नहीं हुए थे अपितु ब्राह्मणवीर्य से पैदा हुए थे।
महाभारत अनु.पर्व 4/10 से 48 तक के प्रकरण को देखिए।
विश्वामित्र नियोगज थे एक ब्राह्मण ऋषि की संतान थे।केवल क्षत्रिय पिता का नाम मात्र था।
Viswamitra
विश्वामित्र क्षत्रिय पिता की ही संतान थे और परशुराम को युद्ध की शिक्षा भी उन्हे अपनी मां से मिली थी यही कारण है कि परशुराम शस्त्र चलाना जानते थे और उसके बाद कोई भी ब्राह्मण इन सबसे शस्त्रो से डरता रहता था परशुराम को हराने वाले भी क्षत्रिय कुल के ही राजा थे राजा वीरमणि। परशुराम ब्राह्मण नही अपितु क्षत्रिय थे क्योंकि उनकी दादी ने अपने पोते के लिए यह मांग रखी थी कि उनका पोता ब्राह्मण न बनकर क्षत्रिय बने। परशुराम परन्तु वास्तविक क्षत्रिय न बन सके क्योंकि जब सहस्त्रबाहु को पराजित कर दिया तो रावण को क्यों नही किया जबकि सहस्त्रबाहु ने तो किसी तरह का गलत काम नही किया था सहस्त्रबाहु को कोई पराजित नही कर सकता था इसलिए सहस्त्रबाहु ने अपनी मृत्यु भगवान विष्णु के हाथो मांगी क्योंकि सहस्त्रबाहु स्वयं दत्तात्रेय भगवान के बहुत बड़े उपासक थे और भगवान शिव के भी उन्ही ने दत्तात्रेय परम्परा की स्थापना की। जय श्रीराम जय सहस्त्रबाहु जय विश्वामित्र
बहुत ही नयी जानकारी प्राप्त हुई धन्यवाद………..
rishi viswamitra drishta hai rachiata nahi. gayatri mantra se he bramha ji ne ved rachana ke hai. yah adhoori jankari hai.
gayatri mantr rigved ka mantr hai aur aisa kaha jaata hai ki gayatri mantr se hee brahma g ne saare brahmand ki rachna ki hai. Gayatri ko vedmata kaha jata hai aur vedon ko unki santan.
Parashuram shiv k shishy thay aur unhi se astr shastr shaastr gyan vigyan jyotish aadi ki shiksha li thi jo parashu wo dharan krte hain wo shiv ka hee hai. Aur shiv ne hee unko kshatriyon ka beej nash karne se mana kiya tha. Isliye kshatriy jeevit bache. kuch isliye bhi bach gaye kyunki parashuram ne stri vriddh aur balkon par kabhi shastr nahi uthaya balki unko jeevit chhor diya. Unka aaveshaawtaar pita ki mrityu ka badla lene bhar k liye hua tha. Pita ki mrityu k baad unhone pran kiya ki prithvi ko kshatriy viheen kar k hee dam loonga. par balak,stree aur bachhon ko chhor dete thay. Vishwamitr khatriy ki santan thay isliye unko aksar rajrishi kaha jata tha brahmrishi nahi unko brahm rishi ki upadhi kabhi nahi mili.
rigved mein gayatri mantr diya hua hai agar kisi ko vishwas na ho toh parh k dekh le.
jo meaning log gayayri mantr ka nikalte hain darsal mein wo uska meaning hai hee nahi….na hee iske pahle om lagaya jata hai. ye arya samajiyon dwara ki gayi misinterpretation aur mispresentation hai. rigved mein dekh sakte hain iss baat ko. wahaan par ye soorya k liye nahi apitu nirakaar,nirvikar parmaatma ya sarvochchh satta yani shakti yani devi durga k wastavik roop k liye pryog kiya gaya hai.
rigved k iss mantr k arth ka bhaav devi durga k hee vishay mein ingit karta hai. naam ka ullekh nahi kiya gaya bas.
Gayatri mantr ki sundar mimansa ki hai apne. Badhayi.
सबसे ज्यादा हास्यास्पद लगता है जब कोई कहता है कि विस्वामित्र नियोग की संतान है , महाभारत में महाराज शांतनु का वंश समाप्त कर पता नही कहा से ऋषि वशिष्ठ के पोते परासर का वंश शुरू कर दिया ( जबकि महाभारत काल और रामायण काल मे बहुत समय अंतर है ), परुशराम ने पूरे क्षत्रिये पुरूषो का वध कर दिया तो , क्षत्रिये नारियो के ने निवेदन पर ब्राम्हणो ने बिना कामना की भावना से क्षत्रिये स्त्रियो से संभोग किया तो और क्षत्रिये की वंश वृद्धि की , न जाने ऐसी कितनी कहानिया है इन ब्राम्हण ग्रंथो में जो क्षत्रियो का स्वाभिमान की ख़त्म कर देती है , उनको ब्राम्हणो का नाजायज औलाद बताती है , दुनिया का हर समाज महिलाओ के बारे में संवेदनशील होता है , क्षत्रियो ने कभी विचार नही किया कि क्षत्रिये इतिहास को किसने इतना कलांंकित किया , किस भावना के तहत किया ,
परशुराम जी पथ भ्रष्ट कैसे???
पूर्वाग्रह से ग्रसित क्यो है आप।
गायत्री छन्द और गायत्री मन्त्र दोनो अलग है।
गायत्री मन्त्र एक ही है लेकिन इस छन्द के प्रयोग से कोई भी मन्त्र बन सकता है।
विश्वामित्र जी किसी जात से बन्धे नही है ।
परशुराम जी पथभ्रष्ट थे ? कौन है ये मूर्ख जातिवादी मानसिकता से प्रेरित व्यक्ति जो ऐसी बात बोल रहा । गायत्री मंत्र के रचयिता विश्वामित्र नहीं थे, वे उसके साधक थे, विश्वामित्रजी से पहले भी अनेक ऋषियों ने गायत्री मंत्र जपा है । सर्वप्रथम ब्रम्हा जी ने इस मंत्र की उपासना की