रीयों को लगा कि कर्नल दो नंबर का रुपया कृषि आय में दिखाकर किसी काली कमाई को सफ़ेद करना चाहते है और आयकर विभाग ने इस बात की जाँच की. चूँकि इस उपज की ज्यादातर रकम सरकारी चैक के माध्यम से कर्नल को मिली थी अत: आयकर विभाग को इसमें कुछ भी गलत नहीं मिला.
वर्ष 2006 में कृषि अधिकारीयों ने 5 रूपये प्रति नग के हिसाब से किसानों को बेशुमार आंवले के पौधे बेचे जो सरकार ने फतेहपुर उतरप्रदेश से 24 रूपये प्रति पौधा ख़रीदा था. इस तरह लाखों पौधों पर तगड़ी सब्सिडी की रकम खर्च की गई. फिर भी धरातल पर आंवले के दस-बीस प्रतिशत पेड़ ही नहीं पनप पाये. क्योंकि जहाँ से आंवले के पौधे लाये जा रहे थे वहां का व राजस्थान के जलवायु में काफी फर्क था. साथ ही किसानों के पास पौधों को पानी देने के लिए बूंद बूंद पानी देने जैसी तकनीक नहीं थी. जिसके चलते ज्यादातर पौधे पनपे ही नहीं. आखिर कृषि अधिकारीयों ने राजस्थान की पौधशालाओं से ही आंवले के पौधे खरीदकर वितरण करने की योजना बनाई.
कर्नल नरुका ने भी इस योजना का लाभ लेने व किसानों तक अच्छी गुणवत्ता व किस्म वाले आंवले के पौधे पहुंचाने के उद्देश्य से पौन बीघा भूमि में लगभग सवा लाख आंवले के पौधों की पौध तैयार की. जब सरकारी निविदाएं खुली तो पौधशालाओं से 8-9 रूपये प्रति पौधा ख़रीदा गया. लेकिन कर्नल ने पौधों की मांग और आपूर्ति पर शोध कर अनुमान लगा लिया था कि सभी पौधशालाओं से पौधे लेने के बाद भी पौधों की कमी रहेगी और तब मैं सरकार को 12 रूपये प्रति पौधा बेचूंगा. हुआ भी यही, जब मांग के अनुसार आपूर्ति नहीं हुई तब सरकारी अधिकारीयों ने कर्नल से 12 रूपये प्रति पौधा ख़रीदा. इस तरह कर्नल ने सिर्फ पौन बीघा खेत में आंवले की पौध तैयार करके 13 लाख रूपये से ज्यादा विक्रय किया.
कर्नल बताते है कि कृषक को चाहिये कि वह अपनी कृषि भूमि के हर एक वर्ग इंच भूमि से कितनी उपज मिली का हिसाब रखें, किस उपज से एक वर्ग इंच भूमि से कितनी आय हुई की तुलना करें, वही खेती करे जिसमें ज्यादा आय हो और एक वर्ग इंच भूमि का इस्तेमाल करते हुए कृषि को उद्योग समझकर कृषि कार्य करें तभी भारत का किसान समृद्ध हो सकता है यहाँ की कृषि उन्नत हो सकती है.
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prernadayak hukum
कर्नल साहब का कहना सही है , मगर उसके लिए गाँव के अनपढ़ किसानों को जागरूक करना जरूरी है। किसानों को नई तकनीक की शिक्षा पंचायत स्तर पर मिलनी चाहिए मगर सरकार इस तरफ बिलकुल ध्यान नहीं दे रही है। मेरा भी इरादा कुछ ऐसा ही करने का है 🙂 अभी 2,4 महीनों मे बोरवेल का कनैक्शन मिल जाएगा उसके बाद कुछ नया करेंगे। अभी तो हमारी तरफ किसानों का एक ही टार्गेट रहता है सरसों या गेहूं की खेती, सरसों को पचास तरह के खतरे होते हैं गेहूं को पानी ज्यादा चाहिए। मगर रोना ये है की हमारे इधर सरकारी कृषि संस्थाएं भी बस फ़ोर्मेल्टी के लिए होती है ,वहाँ पे आरक्षण वाले जमकर बैठे हैं जिनहे कुछ आता जाता नहीं।