पिछले से आगे…. 1614 ई. में दक्षिण में ऐचिलपुर में महाराजा मानसिंह की मृत्यु होने पर आमेर में उत्तराधिकारी को लेकर एक अशान्तिपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई। मानसिंह के वरीयताक्रम में दो पुत्रों जगतसिंह एवं दुर्जनसाल की मृत्यु उनके जीवनकाल से हो चुकी थी। उनका तीसरा पुत्र भावसिंह, जहांगीर की सेवा में था। इस समय […]
पिछले भाग से आगे.. नरवर में इस वंश का शासन करीब दस पीढ़ी तक रहा। नरवर के कछवाहों को मध्यकाल में कन्नौज के प्रतिहार वंश के साथ युद्ध करना पड़ा जिसमें इन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था। वि.स. 1034 वैशाख शुक्ला 5 (11 अप्रेल, 977) के शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि उस […]
भाग. 2 से आगे…. इसी सन्दर्भ में एक दूसरा तथ्य मिलता है जिसमें कछवाहा राजपूतों का निकास पश्चिमोत्तर भारत से होना प्रतीत होता है। जिस समय सिकन्दर ने पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया था उस समय पहले तो इन लोगों ने उसका डटकर मुकाबला किया किन्तु बाद में इन्हें वहाँ से पलायन कर ‘कच्छ’ नामक […]
Chauhan Kshtriya vansh Agnivanshi or Suryavanshi सोशियल साइट्स पर अक्सर चर्चा होती है कि चौहान अग्निवंशी है सूर्यवंशी? इतिहासकारों के अनुसार “जब वैदिक धर्म ब्राह्मणों के नियंत्रण में आ गया और पंडावाद बढ़ गया तब बुद्ध ने इसके विरुद्ध बगावत कर नया बौद्ध धर्म चलाया तब लगभग क्षत्रिय वर्ग वैदिक धर्म त्यागकर बौद्ध धर्मी बन […]
ठाकुर बहादुरसिंह बीदासर ने लिखा है कि पहले दहिया राजवंश वाले पंजाब में सतलज नदी पर थे। ऐसा माना जाता है कि उस समय ये गणराज्य के रूप में थे। वहाँ से ये सतलज नदी के पश्चिम में भी फैले। यह माना जाता है कि सिकन्दर के आक्रमण के समय ये वहीं थे। वहाँ इन्होंने […]
Parmar Kshatriya Rajvansh ka Itihas hindi me परमारों का विस्तार- उज्जैन छूटने के बाद परमारों की एक शाखा आगरा और बुलंदशहर में आई। उन्नाव के परमार मानते है कि बादशाह अकबर ने उन्हें इस प्रदेश में जागीर उनकी सेवाओं के उपलक्ष में दी। यहाँ से वे गौरखपुर में फैले। कानपुर, आजमगढ़ और गाजीपुर में परमार […]
भाग-2 से आगे ….Parmar Rajvansh ka itihas जगनेर के बिजौलिया के परमार- मालवा पर मुस्लिम अधिकार के बाद परमारों चारों ओर फैल गये। इनकी ही एक शाखा जगनेर आगरा के पास चली गई। उनके ही वंशज अशोक मेवाड़ आये। जिनको महाराणा सांगा ने बिजौलिया की जागीर दी। जगदीशपुर और डुमराँव का पंवार वंश- भोज के […]
भाग-1 से आगे ………….. राजस्थान का प्रथम परमार वंश – राजस्थान में ई 400 के करीब राजस्थान के नागवंशों के राज्यों पर परमारों ने अधिकार कर लिया था। इन नाग वंशों के पतन पर आसिया चारण पालपोत ने लिखा है-परमारा रुंधाविधा नाग गया पाताळ। हमै बिचारा आसिया, किणरी झुमै चाळ।।मालवा के परमार- मालव भू-भाग पर […]
परमार अग्नि वंशीय हैं। श्री राधागोविन्द सिंह शुभकरनपुरा टीकमगढ़ के अनुसार तीन गोत्र हैं-वशिष्ठ, अत्रि व शाकृति। इनकी शाखा वाजसनेयी, सूत्र पारसकर, ग्रहसूत्र और वेद यजुर्वेद है। परमारों की कुलदेवी दीप देवी है। देवता महाकाल, उपदेवी सिचियाय माता है। पुरोहित मिश्र, सगरं धनुष, पीतध्वज और बजरंग चिन्ह है। उनका घोड़ा नीला, सिलहट हाथी और क्षिप्रा […]
वीरों की तीर्थस्थली रहे चितौड़ के सिसोदिया वंश से उत्पन्न भौंसला वंश में देश के प्रसिद्ध वीर छत्रपति महाराज शिवाजी ने जन्म लिया, जिन्होंने स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए कठिनतम संघर्ष कर भौंसला वंश की कीर्ति को उज्जवल किया। भौंसला वंश की उत्पत्ति चित्तौड़ के सिसोदिया कुल से हैं। इनका गोत्र वैजपायण तथा कहीं-कहीं कौशिक […]