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इतिहास के गौरव ठा. सुरजनसिंह शेखावत एक परिचय

झाझड ग्राम के प्रथम वीर प्रतापी नर-रत्न ठा.श्री पृथ्वीसिंह शेखावत के कुल में जन्मे (दिनांक 23 दिसम्बर,1910) श्री सुरजनसिंह ने बाल्यकाल से ही अपने धर्मनिष्ठ पिताश्री ठा.गाढसिंहजी के श्री चरणों में बैठकर गीता पढना सिखा | आपकी रूचि आध्यात्म-चिंतन से जुड़ गयी और वह अध्यावधि जुडी हुई है | आनन्दाभूति के लिए यही आत्म-चिंतन आपका आधार है,भाव धरातल है तथा काव्य सर्जन हेतु दिव्य मंच है |
सरस्वती-सपूत श्री सुरजनसिंह शेखावत परम प्रभु द्वारा प्रदत प्रतिभा के धनि है | आपने अपने स्वाध्याय के बल पर ही निरंतर अध्ययन रहते हुए इतिहास और साहित्य में अग्रगण्य क्षमताएँ प्राप्त की | आज ८७ वर्ष की आयु में भी अध्ययनशील है | आपकी यह अटूट और अडिग साहित्य साधना ही आपके जीवन का परम लक्ष्य बनी हुई है | आप साहित्य जगत के एक सुविज्ञ एवं अथक पथिक है |

प्रसिद्ध देश भक्त,स्वतंत्रता सेनानी और राजस्थान में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का शंखनाद करने वाले राव गोपालसिंह खरवा के आप निजी सचिव और बाद में कर्मठ कामदार भी रहे | देश के प्रख्यात इतिहासकारों,सुप्रसिद्ध विद्वानों तथा कवियों से आपका घनिष्ट संपर्क रहा | तीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने नैष्टिक स्वाध्याय,कठोर परिश्रम,सतत समर्पित लेखन-कार्य,पैनी तथा गंभीर विषयगत पैठ,सहज शालीनता आदि गुणों के बल पर आपने अपना व्यापक संपर्क-सूत्र स्थापित कर लिया था | सन १९३४ ई. में ही आप एक जागरूक लेखक के रूप में स्थापित हो गए थे | राजस्थानी साहित्य-संस्कृति और इतिहास आपके प्रिय विषय रहे | राज्य स्तरीय प्रमुख और प्रख्यात पत्र-पत्रिकाओं में आपके अध्यावधि शताधिक लेख-समीक्षाएं और विवेचन-विश्लेषण प्रकाशित हो चुके है | इतिहास ग्रंथों में काव्य-रचनाओं के उद्धरण प्रमाणरूप में प्रस्तुत करना आपकी अद्वितीय विशेषता रही है | आपके अब तक आठ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है और वे सभी कृतियाँ इतिहास की बहुमूल्य निधि है |
आपकी प्रवीणता और प्रखरता प्रमाणिकता के साथ सम्पन्न है | आपकी प्रतिभा,प्रबुद्धता और परिपक्वता सदैव सम्मानित होती रही है | राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी,बीकानेर ने अपनी सर्वोच्च उपाधि “मनीषी” से आपको सन १९९४ ई. में अलंकृत किया,जो शेखावाटी संभाग के लिए एक अत्यधिक गौरव की बात है |

शेखावाटी के इतिहास और साहित्य के सपूत ठाकुरसा प्राचीन परम्परा के पोषक,शेखा-धरा से भावनात्मक लगाव रखने वाले,शानिलता और सज्जनता की प्रतिमूर्ति है | आपकी सहृदयता,आत्मीयता,गंभीर विद्वता,क्षम्तापूर्ण पैनी और समर्थ दृष्टि मानवोचित सुदृढ़ता,गो-विप्र-हित चिन्तक भावना सब मिलकर आपको राजऋषि के पद से सुशोभित करने में सक्षम है |
आप मधुर भाषी,दृढ-निश्चयी,पर-उपकारी और लगनशील व्यक्तित्व के धनि है | आपके हृदय में आज भी कलम और तलवार के भाव सुशोभित है | आप सच्चे राजपूत है,तो खरे सिद्ध साहित्यकार भी है | आपका स्वाभिमान प्रशंसनीय है,तो आपका सहज समर्पण अनुकरणीय | आप साहित्य के साधनारत तपस्वी है |
प्रख्यात इतिहासविद,सुप्रसिद्ध साहित्य साधक,राजस्थानी संस्कृति के मर्मज्ञ,भावलोक के प्रबुद्ध चिन्तक और विचारक,राजपूती गौरव के धारक,शौर्य की सौरभ,अंतर्मुखी व्यक्तित्व के धनी,सहज स्वाध्यायी,कुशल अन्वेषक परम माननीय श्री सुरजनसिंह जी शेखावत इतिहास के गौरव है | ऐसे नर-रत्न को पाकर शेखा-धरा (शेखावाटी) धन्य और गौरान्वित हुई है |
डा.उदयवीर शर्मा
अध्यक्ष राजस्थानी एवं साहित्य परिषद्
नवलगढ़ (झुंझुनू )राजस्थान
दिनांक : 8 नवम्बर 1997 ई.

ठाकुर साहब का यह परिचय राजस्थान के विद्वान साहित्यकार डा.उदयवीरजी शर्मा ने दिनांक : 8 नवम्बर 1997 ई. को लिखा था | 20 मई 1999 ई. को शेखावाटी के इस सपूत ठा.सुरजनसिंह जी ने अपनी नस्वर देह त्याग परलोक गमन किया |
आपने इतिहास की कई पुस्तके लिखी | मेरा भी इतिहास की पुस्तकों से परिचय सर्वप्रथम आपकी ही लिखी पुस्तक “राव शेखा” से हुआ था | यही पुस्तक पढने के बाद मेरे बालमन में इतिहास के प्रति रूचि जागृत हुई जिसकी परिणिति ज्ञान दर्पण पर मेरे द्वारा लिखे इतिहास के लेखों में आप देख सकते है | आपने ” राव शेखा’, “राजा रायसल दरबारी”, ” राव गोपालसिंह खरवा की जीवनी”, “नवलगढ़ का इतिहास”,”प्राचीन शेखावाटी का इतिहास”, ” शेखावाटी के शिलालेख”, “गिरधर वंश प्रकाश”,”खंडेला का वृहद् इतिहास एवं शेखावतों की वंशावली” नामक पुस्कों को लिखने के साथ ही राजस्थान के प्रसिद्ध मांडण युद्ध पर “मांडण युद्ध ” काव्य का संपादन किया |

सवाई सिंह जी धमोरा,ठा.सुरजनसिंह जी,श्री भैरोंसिंह जी

पूर्व राष्ट्रपति स्व.भैरोंसिंह जी शेखावत के साथ ठाकुर सा

ठाकुर सुरजनसिंह जी शेखावत युवावस्था में

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11 COMMENTS

  1. @ संदीप जी
    राव शेखा पुस्तक में राव शेखा का पुरा इतिहास है | हम सभी शेखावत राव शेखा के ही वंशज है | दुनियां का कौन आदमी नहीं है जिसे अपनी जड़ों तक पहुँचने की जिज्ञासा नहीं होती | मैंने भी जब बचपन में राव शेखा पुस्तक पढ़ी तो अपनी जड़ों को नजदीकी से जानने की जिज्ञासा हुई और मैं शेखावाटी राज्य और शेखावत वंश का पुरा इतिहास पढने के लिए लालायित हुआ, और अपने वंश का इतिहास पढ़ते पढ़ते इतिहास पढना मेरी रूचि बन गया और जब ये ब्लोगिंग वाला झुंझना हाथ लगा तो ये पढना लिखने ने भी तब्दील हो गया जो ज्ञान दर्पण पर इतिहास के इन लेखों के रूप में आपके सामने है 🙂

  2. ठाकुर सुरजन सिंह जी की एक पुस्तक मैंने भी बचपन में पढ़ी थी | नाम शायद राजपूतो का इतिहास था | उस में उन की जो फोटो लगी थी वो आपकी इस पोस्ट में भी नहीं है | उनकी फोटो में उन की पगड़ी तुर्रे वाली थी | मूछे भी रोबीली थी |उस पुस्तक के आख़िरी हिस्से में भारत के सभी क्षेत्रो के राजपूतो की शाखाओं व् उप शाखाओं के बारे में बताया गया है |

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