8 मार्च 1679 औरंगजेब की विशाल सेना ने जो तोपखाने और हाथी घोड़ो पर सजी थी सेनापति दाराबखां के नेतृत्व में खंडेला को घेर कर वहां के शासक राजा बहादुर सिंह को दण्डित करने के लिए कूच चुकी थी | इस सेना को औरंगजेब की हिन्दू-धर्म विरोधी नीतियों के चलते विद्रोही बने राजा बहादुरसिंह को दण्डित करना व खंडेला के देव मंदिरों को ध्वस्त करने का हुक्म मिला था | खंडेला का राजा बहादुर सिंह अपनी छोटी सेना के साथ इतनी बड़ी सेना का सीधा मुकाबला करने में सक्षम नहीं था सो उसने रण-नीति के अनुसार छापामार युद्ध करने के उद्देश्य से खंडेला पूरी तरह खाली कर दिया और सकराय के दुर्गम पहाड़ों में स्थित कोट सकराय दुर्ग में युद्धार्थ सन्नद्ध हो जा बैठा | और खंडेला के प्रजाजन भी खंडेला खाली कर आस-पास के गांवों में जा छिपे | और खंडेला जन शून्य हो गया |
लेकिन खंडेला के इस तरह जन शून्य होना कुछ धर्म-परायण शेखावत वीरों को रास नहीं आया | वे जानते थे कि खाली पड़े खंडेला में शाही सेना खंडेला स्थित एक भी मंदिर बिना तोड़े नहीं छोड़ेगी सो शीघ्र ही रायसलोत शेखावत वीरों के आत्म-बलिदानी धर्म-रक्षकों के दल देव मंदिरों की रक्षा के लिए खंडेला पहुँचने लगे | इसी दल में उदयपुरवाटी के ठाकुर श्याम सिंह का प्रतापी पुत्र सुजानसिंह शेखावत भी अपने भाई बांधवों सहित पहुँच गया उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह अपने रक्त की अंतिम बूंद तक देव-मंदिरों की रक्षार्थ लडेगा और अपने जीते जी वह एक ईंट भी मुगल सैनिको को नहीं तोड़ने देगा |
और आखिर वह समय आ ही गया जब मुग़ल सेना ने खंडेला पर आक्रमण कर दिया और आक्रमण का सुजान सिंह ने अपने शेखावत बंधुओं के सहयोग से भीषण युद्ध कर करारा जबाब दिया | यही नहीं इन मंदिर भंजको से युद्ध करने के लिए स्थानीय अहीर व गुजर नवयुवक भी आ डटे व उन्होंने मुग़ल छावनी पर हमला कर मारकाट मचा दी व सैकड़ों गाये जो हलाल करने के लिए लाइ गई थी को छुड़ाकर ये युवक पहाड़ों में ले गए | इस तरह उन वीर अहीर व गुजर युवको ने सैकड़ो गायों को कटने से बचा लिया |
इस देव-मंदिरों की रक्षार्थ लड़े भीषण युद्ध में सुजान सिंह सहित कोई तीन सौ शेखावत वीरों ने आत्मोत्सर्ग किया था , वहां पहुंचा एक भी शेखावत वीर एसा नहीं था जो बचकर जिन्दा गया हो , जितने भी वीर वहां युद्धार्थ आये थे अपने खून के आखिरी कतरे तक मुग़ल सेना से मुकबला करते करते शहीद हो गए |
मआसिरे आलमगिरी पुस्तक के अनुसार – बिरहामखां,कारतलबखां,आदि सुदक्ष सेनापतियों के साथ प्रधान सेनापति दाराबखां ने खंडेला पर आक्रमण किया था | तोपखाना और हस्ती दल भी उस सेना के साथ थे ,खंडेला,खाटू श्यामजी और परगने के अन्य स्थानों पर स्थित देवालय तोड़कर मिस्सार कर दिए गए | तीन सौ खूंखार लड़ाका राजपूतों ने मुग़ल सैन्य दल का बड़ी बहादुरी से सामना किया और वे सभी लड़ते हुए मारे गए | उनमे से एक ने भी भागकर प्राण बचाने की कोशिश नहीं की |
“Darab khan, who had been sent with a strong force to punish the Rajputs of Khandela and demolish the great temples of the place, attacked khandela on the 8th march 1679 A.D and slew the three hundred odd rajputs, who had made a bold defence. Not one of them escaping alive. The temples of khandela and sanula and all other temples in the neighborhood were demolished.
Dr. Yadunath Sarkar
इस युद्ध में अपने प्राणों का आत्मोत्सर्ग करने वाले सुजानसिंह शेखावत के बारे में तत्कालीन कवियों ने जो छावली बनायीं वो निम्न है –
झिरमीर झिरमिर मेहा बरसे,मोरां छतरी छाई |
कुल में छै तो आव सुजाणा, फोज देवरे आई ||
सुणता पांण आवियो सुजो,पल भर देर न ल्याई |
देवाला पर लड्यो सूरमों, सागै सारा भाई ||
कोई कूदे कोट कांगरे,कोई कूदे खाई |
कूद पड्या गुजर का बेटा नौसौ गाय छुड़ाई |
पाणी की तिसाई ज्यांने नाडा जाय ढुकाई |
काफ़ी ऐतिहासिक जानकारी देने के लिए आभार …
समय की गर्त में से आपने इतिहास की उपयोगी पर्तों को उकेरा है!
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बहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने!
हमारे जवानों के वीरता की ऐतिहासिक जानकारी देने के लिए धन्यवाद !!
वीरों को नमन।
इन वीरो को नमन
धर्म की रक्षार्थ शहीद हुए वीरों को शत-शत नमन
सुजाणसिंह शेखावत की उस दिन शादी थी उसे अपनी शादी के दिन ही पता चला कि- खंडेला के देव मंदिरों पर शाही सेना का आक्रमण होने वाला है ,सन्देश मिलते ही सुजाणसिंह अपनी बारात व नववधू को लेकर अपने गांव जाने से पहले बारात सहित ही मंदिरों की रक्षार्थ खंडेला पहुँच गया और वहीँ वीर गति प्राप्त की |
उसके वीर गति को प्राप्त होने के बाद उसकी नववधू खंडेला में ही उसके साथ सती हो गई थी |
सुजाणसिंह का स्मारक आज भी उस वीर की शान में खड़ा है |
शत शत नमन उन बांके वीरों को
शत शत नमन उन बांके वीरों को
ese veero ko shat shat naman …….aur aapka bhut bhut aabhar ki aap hame esi etihasik jankari se parichit karate h hukum
बहुत सुंदर.
दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ…
Behtareen
bhai ek baat btana bhul gye ki yudh ke baad sujan singh sekhawat apne ghode ke saath apni rani ke saamne ja pahuche aur rani ne dekha ki unke thakur sahaab ka sir nhi hai to thakuraain ne kha ki o mere bhole thakur sahaab app apna sir yudh bhumi me hi bhul aaye
mandir kaha pr hai sir inka…