कठै गया बे गाँव आपणा कठै गयी बे रीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||
दुःख दर्द की टेम घडी में काम आपस मै आता।
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता, जियां जनम जनम नाता ।
तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,कठै गया बे गीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||(1)
गुवाड़- आंगन बैठ्या करता, सुख-दुःख की बतियाता।
बैठ एक थाली में सगळा ,बाँट-चुंट कर खाता ।
महफ़िल में मनवारां करता , कठै गया बे मीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||(2)
कम पीसो हो सुख ज्यादा हो, उण जीवन रा सार मै।
छल -कपट,धोखाधड़ी, कोनी होती व्यवहार मै।
परदेश में पाती लिखता , कठै गयी बा प्रीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत ||(3)
कठै = कहाँ, बे = वे, मिनख = मनुष्य, टेम घडी = समय, गुवाड़ = चौक, सगळा = सब
परदेश में पाती लिखता , कठै गयी बा प्रीत,
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत,,,,,
बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,,
recent post : प्यार न भूले,,,
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत…
सही मे, बहुत बदलाव आ गया। फेस टू फेस मिलने को अवॉइड करते हैं , बस फोन
पे हाय हेलो हो जाए काफी है ।
बहुत बदलाव आ गया है..
कहीं आप और हम 'मक्खी' तो नहीं – ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
बहुत ख़ूब वाह!
दुःख दर्द की टेम घडी में काम आपस मै आता
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता, जियां जनम जनम नाता
तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,कठै गया बे गीत
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,गयो जमानो बीत
गजेन्द्रसिंह जी शेखावत नैं मोकळी बधाई !
अच्छे राजस्थानी काव्य को साझा करने के लिए
आदरजोग रतन सिंह जी आपका हृदय से
आभार !
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म्हारै एक चावै गीत रौ एक बंद आप र्री निजर है सा …
रीत रिवाज़ मगरियां मेळां तीज तिंवारां री धरती
हेत हरख भाईचारै री , आ मनवारां री धरती
म्है म्हांरै व्यौहार सूं जग नैं लागां घणा सुहावणा …
पधारो म्हांरै आंगणां !
बाटते रहें प्रसाद …
शुभकामनाओं सहित…
म्हारै राजस्थानी ब्लॉग ओळ्यूं मरुधर देश री… पर थां'रौ घणैमान स्वागत है …
पधारजो सा …
काईं बात है। थोड़ा सा शब्दां में काफी कुछ कह गिया इ रचना में। बदलता जमाना रा सही नक्शों खींचो है। थाने मांकी तरफ स्यूं भी ढेर बधाइयाँ।
आज आपकी यह पोस्ट पढ़कर सबसे पहले फिल्म मेरा नाम जोकर का वह गीत ही ज़्हन में आया "जाने कहाँ गए वो दिन"….
भाई रतन सिंह जी सादर प्रणाम
आपका ब्लाग मुझे एक नयी ताकत तथा प्रेरणा देता है।आज आपके ब्लाग पर आया तो श्री गजेन्द्र सिंह जी शेखाबत की कविता पढ़ी वैसे मुझे आपकी यह राजस्थानी भाषा नही आती फिर भी आपके द्वारा दिये गये शब्दार्थों से कोशिस की है समझने की सो इसके अच्छे लगने के कारण इसका हिन्दी आशय मेंने अपने ब्लाग पर लगाया है कृपया आकर देखे आपका ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय http://rastradharm.blogspot.in/2012/11/blog-post_5984.html
कहाँ गया वो गाँव आपना कहाँ गयी वो रीति।
कहाँ गया वो मिलना जुलना गया जमाना वीत।। वाकी का पढ़ने के लिये लिंक पर क्लिक करें।