इस पुस्तक की विषय वस्तु व महत्त्व के बारे में पुस्तक की भूमिका में वरदा पत्रिका के विद्वान संपादक डा. उदयवीर शर्मा द्वारा लिखित निम्न शब्दों को पढ़कर जाना जा सकता है –
“शेखावतों का अधिकार स्थापित होने के अनन्तर ही वि. सं. 1800 तक के लगभग 250 वर्षो में भिन्न-भिन्न स्थानीय नामों से प्रसिद्ध और भिन्न-भिन्न शासक घरानों द्वारा शासित यह सारा प्रदेश शेखावतों के अधिकार में आया और उन्हीं के नाम पर शेखावाटी (शेखावतों का प्रदेश) कहलाया। शेखावाटी प्रदेश के प्राचीन इतिहास पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालें तो प्रकट होता है कि रामायण काल में ‘मरु कान्तार’ महाभारत काल तक ‘मत्स्य’ नाम से प्रसिद्धि प्राप्त क्षेत्र शेखावाटी मत्स्यों, साल्वों और यौधेयों के अधिकार में गुप्तकाल तक था। मौर्यों के राज्य का जब विस्तार हुआ तब उन्होंने राजस्थान में सबसे पहले यहीं राज्य स्थापित किया था। चौहानों ने भी राजस्थान में प्रवेश इधर से ही किया था। चौहानों की जोड़, मोहिल और निरवाण आदि शाखाओं के यहां अनेक छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य थे। कायमखानी नबाब भी चौहानों से ही मसलमान बने थे। चौहानों के समय यह क्षेत्र ‘बागड़ देश’ में गिना जाता था14। चौहानों के बाद शेखावतों ने इस प्रदेश पर अधिकार किया।
शेखावाटी प्रदेश के प्राचीन इतिहास को सत्य साक्ष्यो के आधार पर विस्तार से लिखना, उलझे हुए कच्चे धागों को सुलझाने के समान है। इस दुरुह श्रम साध्य और विश्रृंखलित कार्य को सफलता से कर पाने के लिए पैनी सूक्ष्म दृष्टि, विषयगत गहरी पैठ, लगन और निष्ठा की अत्यन्त आवश्यकता होती है। निरन्तर अथक कठोर परिश्रम के बिना प्राचीन ऐतिहासिक गुथियों को सुलझा पाना कठिन है। इतिहास के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान सतत साधना में लीन एकनिष्ठ कर्मयोगी ठा. सुरजनसिंह शेखावत ने इस विकट कार्य को करने में सफलता प्राप्त की है। शेखावाटी के प्राचीन इतिहास के तारतम्य को जोड़ते हुए लेखक ने अपना मार्ग स्वयं बनाया है। इनते विस्तार से तथा उपलब्ध प्रामाणिक आधारों पर इस कार्य को करने वाले आप प्रथम विद्वान है। आपने आगे आने वाले इतिहास लेखकों, प्रेमियों और इसमें शोध-खोज करने वालों का मार्ग प्रशस्त किया है, आप साधुवाद के पात्र हैं। आपकी जन्म, कर्म और तपोभूमि आप को सदैव स्मरण करती रहेगी।
लेखक ने प्रस्तुत ग्रंथ को अति प्राचीनकाल में भारतवर्ष में फैले अनेक ‘जनपदों’ के वर्णन से प्रारंभ किया है। वैदिककाल में ‘जनपद’ बौद्धकाल में ‘महाजनपद’ कहलाने लगे। उस समय उनकी संख्या लेखक ने सोलह बताई है। भारतीय इतिहास का 500 ईस्वी पूर्व तक का समय जनपद या महाजनपद युग कहलाता था। उस काल का उत्तरी भारत प्राच्य और उदीच्य नाम से दो भागों में विभाजित था।
लेखक ने स्वीकार किया है कि कौरव-पाण्डवों के समय यानी आज से लगभग पांच हजार वर्षों पूर्व एवं आचार्य पाणिनि के समय में भी शेखावाटी का पश्चिमोत्तरी भाग जांगल देश की परिधि में आता था। इसी प्रकार उसका पूर्वी एवं पूर्व-दक्षिणी भाग मत्स्य जनपद का एक भाग माना जाता था। खण्डेलावाटी का क्षेत्र (खेण्डला से रैवासा तक) भी जांगल देश का ही एक भाग था, जहां पर साल्व क्षत्रियों की साल्वेय शाखा का शासन था। इस प्रकार आज का शेखावाटी प्रदेश जनपदीय युग में मत्स्य और साल्व नाम के दो जनपदों में विभाजित था। साल्व जनपद विशाल जांगल प्रदेश का ही एक भाग था।
प्रारंभिक वैदिक युग में मत्स्य जनपद की सीमा निर्धारित करते हुए लेखक ने उसे ब्रह्मऋषि देश, ब्रह्मावर्त का ही एक भाग माना है। सही अर्थाे में वही आर्यावर्त था। महाभारत काल में मत्स्य जनपद की राजधानी वर्तमान बैराठ थी। मत्स्य जनपद को पारियात्र देश का ही एक भाग माना गया है।
मत्स्य जनपद से आगे मौर्यकाल, गुप्तकाल, वर्धनकाल, बड़गुजर राज्य, प्रतिहारकाल, चौहानकाल, कछवाहों का आगमन, मुस्लिमकाल का गंभीरता से वर्णन करते हुए लेखक ने तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थितियों का भी गहन एवं संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत किया है।
प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी बैराठ के निकट की भूमि पर प्रथम शेखावत राज्य की स्थापना विक्रम की सोलहवी शताब्दी के प्रथम चरण में शेखावतों के मूल पुरुखा राव शेखा (शासनकाल 1502 से 1545 तक) ने की और शेखावाटी के इस प्रथम परगने की राजधानी अमरसर-नाण अमरसर में स्थापित की। इस प्रकार 500 ई. पूर्व से 1500 ई. तक यहां पर शासन करने वाले विभिन्न कुलों का विवरण विहंगम दृष्टि से प्रस्तुत करने में लेखक ने पूर्ण सफलता प्राप्त की है। इस सुदीर्ध अवधि का ऐतिहासिक तारतम्य बनाए रखना लेखक की कुशलता को सिद्ध करता है।
प्रस्तुत ग्रंथ के प्रथम खंड के साथ चार परिशिष्ट क्रमशः पारियात्र देश, ढूंढाहड़, मीणों का वर्णन, क्षत्रियों के रीतिरिवाज और राजपूत और दिए हैं। इन सभी में इतिहास की उलझी हुई गुथियों को सुलझाते हुए विद्वान लेखक विषय की पूर्णता की ओर अग्रसर हुआ है। इनसे लेखक का परिश्रम परिलक्षित होता है।
इस ग्रंथ के द्वितीय खंड में जांगल देश में साल्व जनपद का विस्तृत खोजपूर्ण और विशद विवेचन हुआ है। इस जनपद में ही वर्तमान सीकर और झुंझुनूं जिलों का भू-भाग सम्मिलित था18। लेखक ने साल्व, मालव संघर्षकाल, साल्व और यौधेय, गुप्त सम्राटों के समय गणराज्य, नाग, तंवर, मौर्यो का प्रभाव, गुर्जरों का आगमन, डाहलिया, चौहान घांघू के चौहान, खण्डेला के निरवाण, कासली और रैवासा के चंदेल, झुंझुनूं के क्यामखानी, नूआं के क्यामखानी, फतेहपुर के क्यामखानी आदि शीर्षकों से साल्वों से लेकर क्यामखानियों तक के काल की ऐतिहासिक स्थितियों का विशद विवेचन प्रस्तुत किया है। यह लेखक की इतिहास-साधना का प्रतिफल है।
झुंझुनंू के अन्तिम नबाब मोहम्मद रुहेल्लाखां की मृत्यु से कुछ वर्ष पूर्व ही उसकी इच्छा और सहमति से झुंझुनंू परगने का राज्याधिकार शेखावत शार्दूलसिंह के हाथ में वि. सं. 1787 में आया तभी से मध्ययुगीन बागड़ देश का वह महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र शेखावतों के अधिकार में आया और वि. सं. 1788 में सम्पूर्ण फतेहपुरवाटी पर भी शेखावतों का अधिकार हो गया।
वैदिककाल के जनपदों से लेकर वि. सं. 1788 में क्यामखनियों के पराभव तक के सुदीर्घ ऐतिहासिक काल के घटनाक्रम को सुलझाने संवारने और संजोने में प्रबुद्ध व सुप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ श्री सुरजनसिंह शेखावत ने उपलब्ध प्रामाणिक ग्रंथेां, उन पर आधारित अनुमानों और जनश्रुतियों का सहारा लिया है। इनके अतिरिक्त शिलालेखों, बड़वों की बहीयो ,पटों ,परवानो ,रुकों,सिक्कों ,उत्खन्न से प्राप्त वस्तुओं आदि का भी पैनी दृष्टि से अवलोकन कर उपयोग किया गया है। ऐतिहासिक स्थितियों की क्रमबद्धता बनाए रखने में लेखक पूर्णतः सफल रहा है।”
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shekhawati ka itihas book in hindi
जय माता जी की…
महोदय मुझे सुरजन सिंह शेखावत द्वारा लिखित पुस्तक “शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास” की आवश्यकता है, कृपया मुझे इसके प्राप्ति स्रोत के बारे में बताएं जहाँ से ये पुस्तक खरीदी जा सकती है…..
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Rohit Nirvan
Hi bro can u help me
हुकुम मे विशाल ढालिया शेखावाटी गाँव चिडांवा जिलां झून्झनू राजस्थान
Hello