देशी नस्ल की गायों की विदेशी नस्लों की गायों व भैंस से कम मात्रा में दूध देने की क्षमता के चलते पशुपालकों के लिए देशी नस्ल की गाय पालना आर्थिक तौर पर घाटे का सौदा हो गया. इसी के चलते पशुपालक दूध के व्यापार से ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में देशी नस्ल छोड़ विदेशी नस्ल की गायें पालते है| हालाँकि स्वास्थ्य की दृष्टि से देशी नस्ल की गायों के दूध की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर है पर वर्तमान आर्थिक युग में हर व्यवसाय करने वाले के लिए आर्थिक लाभ ही ज्यादा महत्त्व होता है|
इसी आर्थिक पक्ष के चलते आज पशुपालक जहाँ देशी नस्ल की गायों को पालने से बचते है वहीं जिनके पास पहले से देशी नस्ल की गायें है उन्हें वे आवारा छोड़ देते है जिसकी वजह से आज उस देश में जिस देश में गाय को माता का दर्जा प्राप्त था, गाय की पूजा होती थी, उसी देश में गायों की दुर्गति हो रही है और देशी गायों के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे है|
लेकिन इस देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो गाय के प्रति आज भी मन में श्रद्धा रखते है और वे गायों के संरक्षण के लिए कृत संकल्प है| ऐसे लोगों ने कई जगह गायों को संरक्षण देने व उन्हें पालने के लिए गौ-सेवा शालाएं खोल रखी है जहाँ गौ-माता के प्रति श्रद्धा रखने वाले अपना सहयोग देकर गाय के संरक्षण के प्रति अपना कर्तव्य निभाते है|
कई शहरों में देखा है गौ-शाला संचालक शहर के विभिन्न स्थानों पर एक वाहन खड़ा कर देते है जिसमें गाय के प्रति श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति चारा डाल देते है और गाड़ी नियत समयानुसार उस चारे को गायों तक पहुंचा देती है| इसी तरह गाय के प्रति प्रेम व श्रद्धा रखने वालों को दूर गौ शाला में जाए बगैर अपने नजदीक गायों के लिए चारा डालने की सुविधा मिल जाती है| इस तरह की गाय के लिए चारा एकत्र करने का तरीका तो बहुत जगह देखा है पर अभी हाल में अपनी ही गली में नित्य आने लगे एक रिक्शा द्वारा गायों के लिए भोजन एकत्र करने के अलग ही तरीका देखने को मिला| प्रया: हर घर के सदस्य चाहते है कि उनके घर की रसोई में बनने वाली रोटियों में से एक रोटी जरुर गाय को खिलाई जाए, लेकिन समस्या यह है कि गाय को दूर रोटी खिलाने जाने के लिए समय किसके पास है| लेकिन जिस तरह हमारी गली में गौशाला का एक रिक्शा नित्य प्रति आता है और हर से रोटी, बची हुई हरी सब्जियां आदि लेकर उन्हें गौशाला की गायों तक पहुंचाता है वह गायों के संरक्षण के लिए अपनाये जाने वाले तरीकों में एक अनुकरणीय तरीका है| इस तरह हर घर से बची रोटियां व सब्जी बनाते समय काटने के बाद बचा वेस्ट, जो ज्यादातर लोग कचरे में डालते है वह गायों के लिए भोजन के रूप में प्रयुक्त हो जाता है| इस तरीका से जहाँ गायों के लिए भोजन एकत्र हो जाता है वहीं घर में बचा भोजन कूड़े में जाने से बच जाता है और गली, मुहल्ले साफ़ रहते है|
यदि आप भी किसी गौ-शाला से जुड़े है, या आपके पास कोई गौ-शाला है और वह इस तरह का तरीका नहीं अपना रही है तो उन्हें इस तरीके से अवगत कराकर गौ-सेवा जैसे पवित्र यज्ञ में अपनी आहुति दें|
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-12-2014) को "कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू" (चर्चा-1828) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छा काम कर रहे हैं ये लोग। साधुवाद।
बहुत ही अच्छा लिखते हो जनाब लगे रहिये (Keep going so Inspirational and motivational)
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अनुकरणीय पहल ..निश्चित ही ऐसे प्रयास के लिए हर एक को पहल करनी चाहिए …
अनुकरणीय पहल,बहुत अच्छा काम कर रहे हैं ये लोग।
ये लोग बहुत ही पुण्य का काम कर रहे हैं. इनको कोटि कोटि साधुवाद। अगर ये हर शहर हर गावँ ऐसा होने लगे तो हमारी गाय माता को कभी कचरा और थेली खाने को मजबूर न होना पड़े।