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Tuesday, September 26, 2023

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Sati Mata Dayal Kanwar Mandir, Khoor

Sati Mata Dayal Kanwar Mandir, Khoor : दयाल कँवर कार्तिक शुक्ला द्वादशी वि.सं. 2005 को शेखावाटी के खूड़ ठिकाने में अपने पति भवानीसिंह खंगारोत के शव के साथ सती हो गई थी| दयाल कँवर का जन्म संत थानेदार के नाम से राजस्थान में प्रसिद्ध ठाकुर रामसिंह भाटी की धर्म पत्नी श्रीमती गोपाल कँवर की कोख से श्रावण शुक्ला दसमी, वि. सं. 1986 को हुआ था| संत थानेदार ठाकुर रामसिंह रावलोत भाटी थे और सांगानेर के पास मनोहरपुर के रहने वाले थे| आपके पिता जयपुर रियासत के किलेदार थे| धार्मिक अध्यात्मिक दृष्टि से उच्चकोटि के संत ठाकुर रामसिंह पुलिस में थानेदार थे| उनके यहाँ संत महात्माओं का आना-जाना लगा रहता था| अत: दयाल कँवर का बचपन धार्मिक वातावरण व संत-महात्माओं की कृपा दृष्टि में ही बिता था| छोटी उम्र में ही दयाल कँवर ने अपने घर पर लिखना-पढना सीख लिया था और अपने पिता के सानिध्य में धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन कर लिया| पिता संत थानेदार रामसिंह जी  व ज्योतिस्वरुपा माता जैसे सत्पुरुषों के सानिध्य में दयाल कँवर में उन सभी संस्कारों का निर्माण हुआ जो एक सती स्वरूपा नारी होते है| बचपन में कई घटनाएँ ऐसी भी घटी जिनसे दयाल कँवर की अंतर्मुखी वृति का पता चलता है|

17 वर्ष की उम्र में अक्षय तृतीया वि. स. 2003 को आपका विवाह भवानीसिंह खंगारोत के साथ कर दिया गया| भवानीसिंह खंगारोत खूड़ ठिकाने का पूरा कार्यभार सँभालते थे| भवानीसिंह जी उच्चकोटि के समाजसेवी, पवित्र संस्कारों, सदाचारी व्यवहार व कुशाग्र बुद्धि व्यक्ति थे| विद्यार्थी जीवन में आपने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया था| छात्र जीवन में आपने बिहार में फैले प्लेग रोग की महामारी के समय वहां पहुंचकर रोगियों की तन-मन से सेवा की थी| आजादी के बाद तत्कालीन जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह जी द्वारा जब रिप्रेजेंटेटिव असेम्बली का गठन किया गया था आप दांता-रामगढ क्षेत्र से प्रथम विधायक चुने गए| आपकी सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता देखकर तत्कालीन सरकार ने आपको ऑनरेरी तहसीलदार के रूप में विशेष नियुक्ति देकर कंट्रोल का कार्यभार सौंपा| उस समय कपड़ा, केरोसिन, अनाज, चीनी, तेल आदि पर कंट्रोल था जिसे आपने बिना गरीब-अमीर का भेद किये सबको प्रति व्यक्ति के हिसाब से ईमानदारी से वितरित करवाया|

भवानीसिंह जी छात्र जीवन से संत थानेदार रामसिंह जी से प्रभावित थे और उन्हें अपना गुरु मानते थे| भवानीसिंहजी के माता-पिता बचपन में ही चल बसे थे| उनका लालन-पालन खूड़ के ठिकानेदार ठाकुर मंगलसिंह जी ने ही किया था| ठाकुर मंगलसिंह जी उन्हें पुत्रवत प्यार करते थे| जब भवानीसिंह जी विवाह योग्य हुए तो उन्होंने संत थानेदार रामसिंह जी की पुत्री को अपनी जीवन संगिनी बनाने का निर्णय लिया| चूँकि भवानीसिंहजी चाहते थे कि उनकी जीवन संगिनी सती पार्वती जैसी व संस्कारवान हो, उनकी नजर में संत थानेदार रामसिंह जी की पुत्री ही ऐसी हो सकती थी अत: उन्होंने एक दिन अपनी यह इच्छा लिखकर संत थानेदार रामसिंह जी को एक पत्र दिया| पत्र पढ़कर रामसिंह जी बहुत खुश हुए कि भवानीसिंह जी जैसा संस्कारवान, ईमानदार, कुशाग्र बुद्धि, सर्व गुणसम्पन्न व्यक्ति उनको दामाद के रूप में मिल रहा है|

आपको बता दें भवानीसिंहजी ने शिवरात्रि के दिन रुपगढ़ में अपने साथियों के साथ अपने दाम्पत्यजीवन की मनोकामना इन शब्दों में प्रकट की थी- “हे महान शिव ! मुझे एक पार्वती दे, जो सुन्दर हो, सुशील हो, गुणी हो, चतुर हो और महान हो| साथ ही, वह जीवन में उज्जवल किरण हो, उसके जीवन से, मेरा जीवन सफल हो, जिस सती को पाकर, तुम महान पूजनीय हुए हो, वैसी ही पार्वती देकर, मुझे भी बना दें|”   और शायद भगवान शिव ने आपकी प्रार्थना सुन ली और दयाल कँवर के रूप में पार्वती सरीखी दयाल कँवर उनको जीवन संगिनी के रूप में मिल गई|

आपकी शादी से पूर्व सगाई दस्तूर के बाद 30 जुलाई 1943 को नसीराबाद-विजयनगर के पास खारी नदी में बाढ़ आ गई| कई ग्रामीण व पधुधन इस बाढ़ से प्रभावित हुए| राजपूत महासभा ने बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए योग्य व्यक्ति के रूप में भवानीसिंह जी का चयन कर उन्हें एक हजार कम्बल व पचास हजार रूपये लेकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए भेजा| सामाजिक सरकारों के प्रति प्रतिबद्ध रहने वाली भवानीसिंहजी भूखी प्यासी जनता की सेवार्थ जुट गए| इस सेवा कार्य में उन्होंने अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रखा, खांसी-जुकाम हुआ, जिसका समय पर ईलाज ना लेने के कारण वह बिगड़ा और आपको बुखार रहने लगी| ठाकुर मंगलसिंह जी को आपके स्वास्थ्य का पता चलने पर आपको वहां से बुलवाया गया और चिकित्सा करवाई गई, जाँच में पता चला कि आपको टीबी हो चुकी है|

इसी दौरान आपके विवाह की तिथि नजदीक आ गई| 102 डिग्री बुखार में ही आपका पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ| विवाह के बाद खूड़ ठाकुर साहब ने आपको चिकिस्ता के लिए बीकानेर भेजा पर आपका ईलाज नहीं हो पाया| आखिर उन्हें वापस खूड़ लाया गया और गढ़ के बजाय बाग़ में बने महल में उन्हें रखा गया| उनकी स्थिति का पता चलते ही अंतर्मुखी वृति की धनी दयाल कँवर को समझ आ गया कि अब उसके पति कुछ दिनों के मेहमान है सो उसने भी अपने पति के साथ जाने की तैयारी आरम्भ कर दी| अपनी वफादार एक धाय को उन्होंने अपने कीमती गहने, कपड़े तेरह स्त्रियों को दान देने के लिए दिए व सहगमन के लिए अपने वस्त्र व श्रृंगार की वस्तुएं एक बक्से में साथ रखकर बाग़ के महल में आ गई|

गढ़ से बाग़ महल में आते समय खूड़ ग्राम में एक दादूपंथी साधू आये हुए थे, उन्होंने दयाल कँवर को रथ में जाते हुए देखकर उसके सती होने की भविष्यवाणी कर दी थी| संत ने गढ़ के कर्मचारियों को कहा कि- “रथ में बैठी यह महिला सती होगी, जिसे कोई नहीं रोक पायेगा|”  आखिर कार्तिक शुक्ला एकादशी वि.सं. 2005 रात्री ग्यारह बजे भवानीसिंहजी का निधन हो गया और दूसरे दिन दयाल कँवर अपने पति के साथ चिता पर बैठकर सती हो गई| उनके सती होने के निर्णय का पता चलने पर वहां उपस्थित समाज के बुजुर्गों ने उन्हें सती होने से रोकने के कोशिश भी की|  खूड़ के ठाकुर मंगलसिंह जी ने एक घुड़सवार के साथ सन्देश भिजवाया कि- “आप तो विराजो और भगवान का भजन करो, आपको कोई कष्ट नहीं होगा| हम सब आपकी सेवा करेंगे, यह अग्नि स्नान है और अत्यंत कठिन है|” दयाल कँवर ने जबाब भिजवाया- बाबोसा ! यह निश्चय मैंने आज नहीं किया वह तो मैंने विवाह के समय अग्निदेव के सामने ही कर लिया था| दयाल कँवर के सती होने के बाद कानून के अनुसार केस दर्ज हुआ, जाँच हुई, संत थानेदार रामसिंह जी ने गांव वालों को कहा कि झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं है जो देखा वह सच सच पुलिस को बताओ| जाँच हुई और जिन्हें आरोपी बनाया गया वे बरी हुए|

दयाल कँवर ने जिस जगह चिता सजाकर दस हजार नर नारियों के विशाल समूह के सामने अपने पति के साथ सहगमन किया आज वहां भव्य मंदिर बना है, मंदिर में उनकी प्रतिमा स्थापित है| वर्ष में दो बार यहाँ मेला भरता है जिसमें हजारों लोग अपनी श्रद्धा व्यक्त करने दूर दूर से आते है| मंदिर का निर्माण खूड़ निवासी सेठ शिवभगवानजी खेतान और उनके परिवार ने करवाया और आज भी उसकी व्यवस्था व देखरेख उसी परिवार के हाथ में है|

डिस्क्लेमर :  सती को महिमामंडित करना व सती होना कानूनन अपराध है, अत: हमारा मकसद सती का महिमामंडन करना नहीं बल्कि आपको इतिहास की इस एक छोटी सी घटना से अवगत कराना है|

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