बाग़ में माली अपनी खुरपी लिए हमेशा की तरह काम कर रहा था, तभी राव राजा माधवसिंहजी अपने बाग़ में टहलने आये| प्रजा को राव राजा के आने के समय का पता था, सो कुछ महिलाएं, बच्चे व बूढ़े भी वहां पहले से उपस्थित थे| राव राजा नित्य वहां उपस्थित प्रजाजनों को चांदी के सिक्के दिए करते थे| आज भी ऐसा ही हुआ| राव राजा माधवसिंहजी ने अपनी जेब से सिक्के निकाले व उपस्थित प्रजाजनों को बांटने लगे| पास में माली खुरपी चला रहा था, उसे यह सब देख गुस्सा आ गया और उसने राजा को संबोधित करते हुए कि- “दूसरों को ही बांटता फिरता है……|” और जमीन में जोर से खुरपी मारी| माली द्वारा गुस्से में जोर से खुरपी चलाने से मिटटी उछली और राजा पर जा गिरी|
राव राजा माधवसिंहजी ने माली को एक झिड़की लगाईं और चल दिए| अब माली की हालत ख़राब, तो दूसरी तरफ राजा भी सोच में पड़ गए कि आखिर माली को गुस्सा किस बात पर आया और उसने मुझे गाली क्यों दी? राव राजा ने अपने दीवान राय परमानन्द को बुलाया और सारी घटना बताते हुए उनसे माली द्वारा गाली देने का अभिप्राय व गाली में क्या शब्द थे, का पता लगाने को कहा| दीवान जब माली के घर पहुंचे तब राव राजा की झिड़की व आगे मिलने वाली सजा के डर से माली को बुखार आ गया और वह घर में दुबका पड़ा था| दीवान को देखते ही माली हाथ जोड़े विनती करने लगा कि उससे गलती हो गई अब कृपा कर उसे सजा से बचा दें|
दीवान ने माली को ढाढस बंधाते हुए सब कुछ सच सच बताने को कहा| माली ने हिम्मत करते हुए बताया कि- उसके तीन बेटियां है, आर्थिक तंगी की वजह से वह उनकी शादी नहीं कर पा रहा| इस कारण लोग उसे ताने मारते है कि- “अपनी बेटियों की शादी नहीं कर सकता है और अपने आपको राज-माली कहता घूमता है| बस इसी ताने की वजह से जब राजा दूसरों को सिक्के बांटते है तब मुझे बुरा लगता है कि राजा दूसरों को धन लुटा रहे है और अपनों को पूछते तक नहीं|”
दीवान राजा से मिले व अनुरोध किया कि माली ने जो गाली दी, उसे भ्रम ही बना रहने दें और माली को माफ़ करदें| इस पर राजा का असमंजस और बढ़ गया, उन्होंने दीवान को सच सच बताने का आग्रह किया| तब दीवान ने कहा- महाराज ! आपके भी तीन बेटियां और माली के भी तीन बेटियां| दोनों की ही बेटियों की शादियाँ नहीं हो पा रही, जबकि सभी शादी योग्य कभी की हो चुकी| बस इसी बात को लेकर लोग ताने मारते है, सो वे ताने सुनकर माली को गुस्सा आ गया और उसने कहा- “दूसरों को ही धन बांटता फिरता है, घर की सुध नहीं लेता|”
तब राजा को माली के गुस्से व उसके द्वारा दी गाली का अभिप्राय पता चला और राव राजा माधवसिंहजी ने अपनी व माली की बेटियों की शादी का आदेश दिया| कुछ ही दिनों में योग्य वर देखकर सभी की शादियाँ कर दी गई| इस तरह माली को गाली के बदले तीन बेटियों की राज्य द्वारा शादी का खर्च उठाने का ईनाम मिला| राव राजा माधवसिंहजी सीकर के राजा थे| आपका कार्यकाल विक्रम सं. 1923 से 1979 तक रहा|
सन्दर्भ : राय परमानन्द की छठी पीढ़ी के वंशज सुरेश माथुर ने यह किस्सा बताया| History of Rao Raja Madhav Singh, Sikar in Hindi, Sikar ka itihas hindi me