मन्दिर के घेरे का संचालक मि. केई रक्तपात के पक्ष में नहीं था. वह जानता था कि मंदिर में रक्तपात और राजपुताना के प्रभावशाली और लोकप्रिय व्यक्ति राव गोपालसिंह जी की हत्या के बाद राजपुताना के राजनैतिक हालात ख़राब हो सकते है. अत: वह बिना किसी रक्तपात के राव गोपालसिंह जी को बन्दी बनाना चाहता था. अजमेर-मेरवाड़ा के चीफ कमिश्नर मि. केई को उसके उच्चाधिकारियों द्वारा यही राय दी गई थी कि खरवा राव साहब को ससम्मान समर्पण के लिए तैयार किया जाये. अत: मि. केई उन्हें आत्म-समर्पण के लिए तैयार करने के प्रयत्न में लगा.
मि. केई वार्तालाप करने के लिए मन्दिर के अन्दर गया. उसने राव गोपालसिंह जी को आत्म-समर्पण करने का अनुरोध करते हुए बताया कि उनके विरुद्ध काशी-षड्यंत्र केस में शामिल होने का पुख्ता सबूत सरकार को नहीं मिला है. आप पर केवल “भारत रक्षा कानून” के तहत टॉडगढ़ से फरार होने का अभियोग है, जिसके फलस्वरूप आपको अधिक हानि नहीं होगी. मि. केई ने ये सब बातें लिखित में दे दी. राव गोपालसिंह जी ने शर्त रखी कि शस्त्र राजपूतों के लिए पूजनीय धार्मिक चिन्ह माने जाते है. अत: उनसे शस्त्र लेने की चेष्टा न की जाये. इस शर्त को मानने में क़ानूनी बाधाएं पैदा हो सकती थी. अत: तय किया गया कि सरकार राव गोपालसिंह जी से शस्त्र नहीं लेगी, किन्तु वे अपने शस्त्र मन्दिर में ठाकुर जी की प्रतिमा के भेंट चढ़ा देंगे, जो मन्दिर की सम्पत्ति मानी जायेगी. उन्हें वहां से हटाने का किसी को भी अधिकार नहीं होगा.
मन्दिर में हुए वार्तालाप में राव साहब ने इच्छा प्रकट की थी कि मि. केई घेरा उठाकर अजमेर चले जायें तथा वे स्वयं दूसरे दिन सुबह अजमेर पहुँच जायेंगे. मि. केई राव साहब के कथन पर विश्वास करके घेरा उठाकर अजमेर चला गया.
राव गोपालसिंह जी द्वारा ठाकुर जी की प्रतिमा के आगे समर्पित किये शस्त्र आज भी मंदिर की सम्पत्ति है. कुछ वर्ष पहले मंदिर के मंदिर के पुजारियों ने शस्त्रों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें बदल दिया और वहां नकली शस्त्र रख दिए लेकिन राजपूत समाज के एक जागरूक बंधू की कोशिशों ने पुजारियों की करतूतें विफल कर दी और वे हथियार आज मंदिर में सुरक्षित है.
(हथियारों के सम्बन्ध में पुजारियों की करतूत की प्रमाणिक रिपोर्ट फिर कभी)
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दुर्लभ जानकारी!
अच्छी और नई जानकारी
अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा
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