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राव चंद्रसेन जोधपुर

राव चंद्रसेन जोधपुर के राव मालदेव के छटे नंबर के पुत्र थे | उनका जन्म वि.स.१५९८ श्रावण शुक्ला अष्टमी (३० जुलाई १५४१ई.) को हुआ था | हालंकि इन्हें मारवाड़ राज्य की सिवाना जागीर दे दी गयी थी पर राव मालदेव ने इन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुना था | राव मालदेव की मृत्यु के बाद राव चंद्रसेन सिवाना से जोधपुर आये और वि.स.१६१९ पोष शुक्ल षष्ठी को जोधपुर की राजगद्दी पर बैठे | हालाँकि अपने भाइयों में ये छोटे थे पर उनके संघर्षशील व्यक्तित्व के चलते राव मालदेव ने अपने जीते जी इन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था |

राव चंद्रसेन के जोधपुर की गद्दी पर बैठते ही इनके बड़े भाइयों राम और उदयसिंह ने राजगद्दी के लिए विद्रोह कर दिया था | राम को चन्द्रसेन ने सैनिक कार्यवाही कर मेवाड़ के पहाड़ों में भगा दिया तथा उदयसिंह जो उसके सहोदर थे को फलौदी की जागीर देकर संतुष्ट किया | राम ने अकबर से सहायता ली और अकबर की सेना मुग़ल सेनापति हुसैनकुली खाँ के नेतृत्व में राम की सहायतार्थ वि.स.१६२१ में जोधपुर पहुंची और जोधपुर के किले मेहरानगढ़ को घेर लिया | आठ माह के संघर्ष के बाद राव चंद्रसेन ने जोधपुर का किला खाली कर दिया और अपने सहयोगियों के साथ भाद्राजूण चला गया | और यहीं से उसने अपने राज्य मारवाड़ पर नौ वर्ष तक शासन किया | भाद्राजूण के बाद वह सिवाना आ गया |

वि.स.१६२७ भाद्रपद शुक्ला दसमी को अकबर जियारत करने अजमेर आया वहां से वह नागौर पहुंचा जहाँ सभी राजपूत राजा उससे मिलने पहुंचे ,राव चंद्रसेन भी नागौर पहुंचा पर वह अकबर की फूट डालो नीति देखकर वापस लौट आया | उस वक्त उसका सहोदर उदयसिंह भी वहां उपस्थित था जिसे अकबर जोधपुर के शासक के तौर पर मान्यता दे दी | वि.स.१६२७ फाल्गुन बदी १५ को मुग़ल सेना ने भाद्राजूण पर आक्रमण कर दिया, पर राव चंद्रसेन वहां से सिवाना के लिए निकल गया | सिवाना से ही राव चंद्रसेन ने मुगल क्षेत्रों,अजमेर,जैतारण,जोधपुर आदि पर छापामार हमले शुरू कर दिए | राव चंद्रसेन ने दुर्ग में रहकर रक्षात्मक युद्ध करने के बजाय पहाड़ों में जाकर छापामार युद्ध प्रणाली अपनाई | अपने कुछ विश्वस्त साथियों को किले में छोड़ खुद पिपलोद के पहाड़ों में चला गया और वही से मुग़ल सेना पर आक्रमण करता उनकी रसद सामग्री आदि को लुट लेता | बादशाह अकबर ने उसके खिलाफ कई बार बड़ी बड़ी सेनाएं भेजी पर अपनी छापामार युद्ध नीति के बल पर राव चंद्रसेन अपने थोड़े से सैनिको के दम पर ही मुग़ल सेना पर भारी पड़ता | वि.स.१६३२ में सिवाना पर मुग़ल सेना के आधिपत्य के बाद राव चंद्रसेन मेवाड़,सिरोही,डूंगरपुर और बांसवाडा आदि स्थानों पर रहने लगा | कुछ समय बाद वह फिर शक्ति संचय कर मारवाड़ आया और वि.स.१६३६ श्रावण में सोजत पर अधिकार कर लिया | उसके बाद अपने जीवन के अंतिम वर्षों में राव चंद्रसेन ने सिवाना पर भी फिर से अधिकार कर लिया था | अकबर उदयसिंह के पक्ष में था फिर भी उदयसिंह राव चंद्रसेन के रहते जोधपुर का राजा बनने के बावजूद भी मारवाड़ का एकछत्र शासक नहीं बन सका | अकबर ने बहुत कोशिश की कि राव चंद्रसेन उसकी अधीनता स्वीकार कर ले पर स्वतंत्र प्रवृति वाला राव चंद्रसेन अकबर के मुकाबले कम साधन होने के बावजूद अपने जीवन में अकबर के आगे झुका नहीं |और उसने अकबर के साथ विद्रोह जारी रखा |

वि.स.१६३७ माघ सुदी सप्तमी,११ जनवरी १५८१ को मारवाड़ के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का सारण सिचियाई के पहाड़ों में ३९ वर्ष की अल्पायु में स्वर्गवास हो गया | इस वीर पुरुष की स्मृति में उसके समकालीन कवि दुरसा आढ़ा की वाणी से निम्न शब्द फुट पड़े –

अणदगिया तूरी ऊजला असमर,चाकर रहण न डिगियो चीत |
सारा हींदूकार तणे सिर पाताळ ने, “चंद्रसेण” प्रवीत ||

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