29.2 C
Rajasthan
Saturday, June 3, 2023

Buy now

spot_img

चितौड़ की रानी कर्मवती

सभी राजपूत रियासतों को एक झंडे के नीचे लाने वाले महाराणा सांगा Maharana Sanga के निधन के बाद चितौड़ Chittor की गद्दी पर महाराणा रतन सिंह बैठे. राणा रतन सिंह के निधन के बाद उनके भाई विक्रमादित्य चितौड़ के महाराणा बने. विक्रमादित्य ने अपनी सेना में सात हजार पहलवान भर्ती किये. इन्हें जानवरों की लड़ाई, कुश्ती, आखेट और आमोद प्रमोद ही प्रिय था. इन्हीं कारणों व इनके व्यवहार से मेवाड़ के सामंत खुश नहीं थे. और वे इन्हें छोड़कर बादशाह बहादुरशाह के पास व अन्यत्र चले गए. बहादुरशाह का भाई सिकन्दर सुल्तान बागी होकर राणा सांगा के समय चितौड़ की शरण में रहा था. उसने बहादुरशाह के खिलाफ संघर्ष हेतु चितौड़ के सेठ कर्माशाह से एक लाख रूपये की सहायता भी ली थी. जब बहादुरशाह ने रायसेन दुर्ग को घेरा तब चितौड़ की सेना ने उसकी सहायता की. इसी से नाराज होकर बहादुरशाह ने मुहम्मद असीरी, खुदाबखां को सेना सहित भेजकर 1532 ई. में चितौड़ पर आक्रमण किया व तीन दिन बाद ही खुद सेना सहित चितौड़ आ धमका.

चूँकि मेवाड़ का तत्कालीन शासक विक्रमादित्य अयोग्य शासक था. मेवाड़ के लगभग सभी सामंत उससे रूठे थे अत: जब मेवाड़ की राजमाता कर्मवती Karmvati जिसे कर्णावती Rani Karnavati के नाम से जाना जाता है को समाचार मिलते सेठ पद्मशाह के हाथों दिल्ली के बादशाह हुमायूं को भाई मानते हुए राखी भेजी और मुसीबत में सहायता का अनुरोध किया. हुमायूं ने राजमाता को बहिन माना और उपहार आदि भेंट स्वरूप भेजे व सहायता के लिए रवाना होकर ग्वालियर तक पहुंचा. तभी उसे बहादुरशाह का संदेश मिला कि वह काफिरों के खिलाफ जेहाद कर रहा है. तब हुमायूं आगे नहीं बढ़ा और एक माह ग्वालियर में रुक कर आगरा चला गया.

विक्रमादित्य ने बहादुरशाह से संधि करने के प्रयास किये पर विफल रहा. बहादुरशाह ने सुदृढ़ मोर्चाबंदी कर चितौड़ पर तोपों से हमला किया. उसके पास असंख्य सैनिकों वाली सेना भी थी. जिसका विक्रमादित्य की सेना मुकाबला नहीं कर सकती थी, अत: राजमाता कर्मवती ने सुल्तान के पास दूत भेजकर संधि की वार्ता आरम्भ की और कुछ शर्तों के साथ संधि हो गई. परन्तु थोड़े दिन बाद बहादुरशाह ने संधि को ठुकराते हुए फिर चितौड़ की और कूच किया.
राजमाता कर्मवती को समाचार मिलते ही, उसने सभी नाराज सामंतो को चितौड़ की रक्षार्थ पत्र भेजा – यह आपकी मातृभूमि, मैं आपको सौंपती हूँ, चाहे तो इसे रखो अन्यथा दुश्मन को सौंप दो. इस पत्र से मेवाड़ में सनसनी फ़ैल गई. सभी सामंत मातृभूमि की रक्षार्थ चितौड़ में जमा हो गये. रावत बाघसिंह, रावत सत्ता, रावत नर्बत, रावत दूदा चुंडावत, हाड़ा अर्जुन, भैरूदास सोलंकी, सज्जा झाला, सिंहा झाला, सोनगरा माला आदि प्रमुख सामंतों ने मंत्रणा कर महाराणा विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह जो उस वक्त शिशु थे को पन्ना धाय की देखरेख में बूंदी भेज दिया गया.

बहादुरशाह जनवरी 1535 ई. में चितौड़ पहुंचा और किला घेर लिया. उस वक्त अपने बागी सरदार मुहम्मद जमा के बहादुरशाह की शरण में आने से नाराज हुमायूं ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया. बहादुरशाह ने चितौड़ से घेरा उठाकर गुजरात बचाने हेतु प्रस्थान की सोची तभी उसके एक सरदार ने उसे बताया कि जब तक हम चितौड़ में काफिरों के खिलाफ जेहाद कर रहे है हुमायूं आगे नहीं बढेगा. हुआ भी ऐसा ही. हुमायूं सारंगपुर रुक गया और चितौड़ युद्ध के परिणामों की प्रतीक्षा करने लगा. आखिर मार्च 1535 इ. में बहादुरसेना के तोपखाने के भयंकर आक्रमण से चितौड़ की दीवारें ढहने लगी. भयंकर युद्ध हुआ. चितौड़ के प्रमुख सामंत योद्धाओं के साथ महाराणा सांगा की राठौड़ रानी जवाहरबाई ने पुरुष वेष में आश्वारूढ़ होकर युद्ध संचालन किया.
आखिर हार सामने देख राजपूतों Rajput warrior ने अपनी चिर-परिचित परम्परा जौहर और शाका करने का निर्णय लिया. 13 हजार क्षत्राणीयों ने गौमुख में स्नान कर, मुख में तुलसी लेकर पूजा पाठ के बाद विजय स्तंभ के सामने बारूद के ढेर पर बैठकर जौहर व्रत रूपी अग्निस्नान किया. जौहर व्रत की प्रज्वलित लपटों के सम्मुख राजपूतों ने केसरिया वस्त्र धारण कर, पगड़ी में तुलसी टांग, गले में सालिगराम का गुटका टांग, कसुम्बा पान कर, कर किले का दरवाजा खोल दुश्मन सेना पर टूट पड़े और अपने खून का आखिरी कतरा बहने तक युद्ध करते रहे. इस तरह चितौड़ का यह दूसरा जौहर-शाका सम्पन्न हुआ. कहा जाता है इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ था कि रक्त का एक नाला बरसाती नाले की तरह किले से बह निकला था.

इस तरह रानी कर्मवती ने अपने अयोग्य पुत्र के शासन व उस काल चितौड़ बनबीर जैसे षड्यंत्रकारियों के षड्यंत्र के बीच अपनी सूझ-बूझ, रणनीति और बहादुरी से चितौड़ के स्वाभिमान, स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. ज्ञात हो इसी रानी के शिशु राजकुमार उदयसिंह के प्राण बचाने हेतु पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान दे दिया था.

ठाकुर सवाई सिंह धमोरा की पुस्तक “चितौड़ के जौहर और शाके” के तथ्यों पर आधारित

Rani Karmawati of Mewar story in Hindi

Related Articles

5 COMMENTS

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-06-2015) को "तंबाखू, दिवस नहीं द्दृढ संकल्प की जरुरत है" {चर्चा अंक- 1993} पर भी होगी।

    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर…!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    • रानी पद्मावती पहले हुई, युद्ध में हारने व रत्नसिंह का कोई उत्तराधिकारी ना बचने पर उनके ही परिवार का हमीर बाद में चितौड़ की गद्दी पर बैठे, हमीर की आगे की पीढ़ियों में राणा सांगा हुए, कर्मवती राणा सांगा की रानी थी|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,795FollowersFollow
20,800SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles