महारानी ब्रजकुंवरी जिसे कहीं कहीं ब्रजदासी नाम से भी संबोधित किया है, जयपुर के लवाण ठिकाने के राजा सुरजराम की पुत्री थी| लवाण आमेर के राजा भगवंतदास के अनुज राजा भगवानदास की संतति परम्परा का ठिकाना था| लवाण परिवार सदैव से ही धार्मिक प्रवृति का रहा है| इस परिवार की कन्याएं बड़ी धर्म प्रवण और भक्त हृदया हुई है| इनका पाणिग्रहण संस्कार किशनगढ़ के राठौड़ नरेश राजसिंह के साथ हुआ था| महारानी ब्रजकुंवरी भगवान् कृष्ण की भक्त थी| इन्होने श्रीमद भागवत का संस्कृत से ब्रजभाषा में छंदोबद्ध अनुवाद किया था| यह अनुवाद ग्रंथ “ब्रजरासी भागवत” के नाम से प्रसिद्ध है| कवयित्री ने दोहा, चौपाई और छप्पय आदि छन्दों में अनुवाद किया था| अनुवाद की भाषा सरल और सहज बोधगम्य है| यहाँ ब्रजदासी भागवत के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे है-
दोहा-
श्री गुरुपद बंदन करूं, प्रथमहि करूं उछाह|
दम्पति गुरु तिहुं की कृपा, करो मौ चाह||
बार बार वंदन करौ, श्री व्रषभान कुमारि|
जय जय श्री गोपाल जु, कीजै कृपा मुरारि||
कियो प्रकट श्री भागवत्, व्यास रूप भगवान्|
यह कलि तम निवार हित, जगमगात ज्यों भान||
कह्यो चहत श्री भागवत, भाषा बुद्धि प्रमान|
करि गहि मुहि सामर्थ गहि, देहै कृपानिधान||
चौपाई –
व्यास भागवत आरम्भ मांही, प्रभु को आन हृदय सरसांही|
सेसो वचन कहत मुनि आनी, प्रभु सौं परस प्रेम उर ठानी||
परम प्रेम परमेश्वर स्वामी, हम तिही ध्यान धरत हिय ठानी|
यहै त्रिविध झूंठो संसारा, भांति भांति बहु विधि निरधारा||
अरु सांचे सो देत दिखाई, सो सतिता प्रभु ही की छाई|
जैसे रेत चमक मृग देखें, जल को भ्रम मन मांहि संपेखे||
जल भ्रम रेत ही सत्या, भ्रम सों दीस परत जल छत्या|
जल भ्रम कांच मांहि ज्यों होता, सो झूंठो सति कांच उदोता||
ब्रजकुमारी के पति महाराजा राजसिंह स्वयं ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि, गद्यकार और परम वैष्णव थे| बाहू विलास और रस पाय नामक उनकी दो कृतियाँ साहित्य जगत में विख्यात है| उनके आराध्य नगधर (गिरिधारी) थे|
लेखक : श्री सौभाग्यसिंह शेखावत,भगतपुरा
राजपूत नारियों की साहित्य साधना श्रंखला की अगली कड़ी में राघोगढ़ की रानी सुन्दर कुंवरि राठौड़ का परिचय प्रकाशित किया जायेगा| ज्ञात हो कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह राघोगढ़ के पूर्व राजघराने के वर्तमान उत्तराधिकारी है|
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राजस्थान का यह पक्ष सबसे छिपा हुआ छा अब तक..सामने लाने का आभार..
महिलाएं भी किसी युग में कम नहीं रही हैं ..
जानकारी अच्छी लगी ..
आप इतिहास के एक ऐसे पक्ष से रूबरू करवा रहे है जो इतिहासकारों की लेखनी से उपेक्षित रहा
Jai rani braj kunwari bakawat or rathorni ki..hamare rajastjan ki esi kai bate abhi tak agyaat h…apne hame yah bataya uske leye dhanaybaad
Yah jankari achi lagi
danyawad sir lekin apse rajpoot kshtraniyo ke bare me or jankari chahiye jo itni mahan thi.