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अलवर की साहित्य साधक महारानी आनंद कुंवरी राणावत

राजस्थान की राजकुलीन महिला कवयित्रियों में महारानी आनंद कुंवरी का उल्लेखनीय स्थान है| यह महारानी शाहपुरा (मेवाड़) राज्य के राजधिराज माधव सिंह की बहन, राजाधिराज अमरसिंह की राजकुमारी थी और कछवाहों की अलवर रियासत के महाराजा विजयसिंह के साथ विवाही थी| महाराजा विजयसिंह का शासनकाल 1871 से 1914 विक्रमाब्द है| यही अवधि महारानी के काव्य सर्जन की मानी जा सकती है| महाराजा विजयसिंह स्वयं भी अच्छे कवि थे| उनकी द्वितीय महारानी रूपकुंवरी राजावत और प्रविनारय पातुर भी काव्य रचना करती थी| महाराजा के पुत्र शिवदान सिंह सर्जित काव्य तो साहित्य जगत में चर्चित भी है| इस प्रकार कहने का प्रयोजन यह है कि अलवर का राजपरिवार साहित्य तथा संगीतकारों का आश्रय स्थल था|

महावीर आनंद कुमारी प्रणीत “आनंद सागर” विभिन्न राग-रागनियों में रचित १०५ पदों का संग्रह है| आनंद सागर में मर्यादा पुरुषोतम श्री रामचंद्र और लोक लीला नायक श्री कृष्णचन्द्र की जीवन लीलाओं का आख्यान है| कृति की भाषा ब्रज है तथा विषय वात्सल्य, श्रृंगार, भक्ति,प्रेम शरणागति, क्षमा, दया आदि भावों से ग्रंथित है|

श्री कृष्ण जन्म की सूचना प्राप्त कर बाबा नंद के घर ब्रज-बालाओं का दर्शनार्थ तांता लग गया है| गोपिकाएँ सुन्दर वस्त्राभूषण धारण कर श्री कृष्ण के मुखारबिन्द के दर्शन तथा बधाई देने के लिए उतावली-बावली सी बनी उमड़ गई है| एक बधाई पद बरवा रागनी में इस प्रकार रचित है-

पुत्र जन्म उत्सव सुनि भारी भवन आवत ब्रिज नारी|
लहंगे महंगे मांलन के सूचि कुचि कंचुकि सिरन सुभ सारी||
बेदी भाल खौर केसर की नथ नकबेसर मांगी संवारी||१||
अलकै लखि अलि अवलि लजावत काजर काजर रेख दिए कारी|
हार हमेल हिमन बिच राजत अमित भांति भुसित सुकामारी ||२||
चाल गयंद चंद से आनन् लखि लाजति रति अमित विचारी|
मंगल मूल बस्ति सजि सुन्दरि कर कमलन लिए कंचन थारी||३||
गावति गीत पुनीत प्रीति युत आई जिहां जिहां भवन खरारी |
आनंद प्रभु को बदन देखि सब दैहि नौछावर वित्त विसारी||४||
लीलाधाम श्री कृष्णचन्द्र की जन्म-बधाई के एक अन्य पद में राजकुमार के जन्मोत्सव पर आयोज्य बधाई समारोह का चलचित्र लेखिका की रचना में साकार हो उठा है| वर्णन रजवाडी समारोहों की स्मृति ताजा कर देता है—

पुत्र जन्म भयो सुनि जाचक जन नंद महर धरि आये|
अमित भांति करि वंश प्रशंसा बाजे विविध बजाये ||
परम पुनीत अवनि अस्थित व्है विपुल बधाई गाये|१||
रीझत सब नर नारि नौछावर दें निज चित्त भुलाये|
सिव ब्रह्मादिक सव सुर सुरतरु मेघ झरलाये||२||
नभ अरु नगर भई जय जय धुनि मुनि सुख होत सवाये|
द्वार द्वार बाजत निसानं बर गावत नारि बधाये||३||
बहु पर भूषण द्रव्य दान तैं जानकि लेत अधाये|
रहौ सदा आनंद नद सुन कहि निज सदन सिधाये||४||
भाषा, पद-योजना, विषय और वर्णन वैदग्ध संत प्रवर सूरदास के कृष्ण भक्ति पदों से समता करते है| लेखिका की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति और दीं भाव अनेक पदों के विषय बने है| उस सर्वशक्तिमान के अलावा भक्त का उद्दारक और कौन है जिसके दरबार में भक्त के तारण की गुहार की जा सके-

तुम बिन को भव विपति नसावै|
कौन देव दरबार जाय तहां आरत अरज लगावै ||१||
को दलि दोस दीन के पल मै परम पुनीत कहावै|

मोसे पतितन को आनंद प्रभु हरि बिन को अपनावै||२||
इस प्रकार आनंद कुंवरी ब्रजभाषा की एक उच्च कोटि की कवयित्री सिद्ध होती है|

लेखक : सौभाग्यसिंह शेखावत,भगतपुरा

राजपूत नारियों की साहित्य साधना श्रंखला की अगली कड़ी में जोधपुर की रानी प्रताप कुंवरि भटयानी और ईडर की रानी रत्न कुंवरि भटयानी के बारे में जानकारी दी जायेगी|

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5 COMMENTS

  1. करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!

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