शादी विवाह एक ऐसी परंपरा है जहाँ केवल स्त्री-पुरुष का मिलन ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन भी होता है| हिन्दू धर्म में अलग-अलग क्षेत्रों में विवाह संस्कारों की अलग-अलग विधि पाई जाती है, पर अक्सर सुनने को मिलता है कि “सात फेरे” एक ऐसी रस्म है जिसके बिना किसी भी क्षेत्र में विवाह पूर्ण नहीं माना जाता|
वर्ष 1985 में ‘घर-द्वार’ फिल्म में एक गीत फिल्माया गया था “सात फेरों के सातों वचन…”,अगर इसी गीत को कुछ इस प्रकार गाया जाए “चार फेरों के सातों वचन...” तो थोड़ा अजीब नहीं लगेगा?
यूँ तो बचपन से बहुत सी शादियाँ देखी पर कभी ध्यान ही नहीं दिया कि हमारे यहाँ सात नहीं सिर्फ चार फेरे ही होते है| जब कुछ दिनों पहले मेरी सहेली की शादी थी राजस्थान में तब मैंने देखा कि उसके सिर्फ चार फेरे हुए थे, तब से मन में यह जानने की जिज्ञासा हुई कि आखिर ऐसा क्यूँ? सात फेरों की जगह सिर्फ चार फेरे ही क्यों ?
कुछ लोगों से पूछा कि उनकी शादी में कितने “फेरे” हुए? तो किसी ने कहा -चार, तो किसी ने कहा – ‘फेरे तो सात ही होते है, सात फेरों के बिना विवाह अधुरा होता है|’ गांव व घर के बुजुर्गों से पूछा तो उन्होंने बताया कि-“हमारे राजपूत समाज में शादी में चार ही फेरे होते है इन चार फेरों में से तीन में दुल्हन आगे तथा एक में दूल्हा आगे रहता है| ये चार फेरे चार पुरुषार्थो-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं| यही बात शास्त्रों में भी लिखी है|”
साथ ही बुजुर्गों से ही राजपूत समाज में चार ही फेरे क्यों होते है के सम्बन्ध में एक मान्यता के बारे में भी सुनने को मिला| मान्यतानुसार राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबू जी राठौड़ का जब विवाह हो रहा था और फेरों की रस्म चल ही रही थी उन्होंने तीन ही फेरे ही लिए थे जिसमें वधु आगे थी कि उसी समय उन्हें एक सूचना मिली कि एक वृद्ध महिला की गायें लुटेरे लुट कर ले जा रहे है| उस वृद्धा ने अपनी बहुत ही अच्छी नस्ल की एक घोड़ी पाबूजी राठौड़ को इस शर्त पर दी थी कि जब उसके पशुधन की सुरक्षा के लिए कभी जरुरत पड़े तो वे तुरंत हाजिर होंगे अत: पाबू जी राठौड़ ने अपना वो वचन निभाने के लिए बीच फेरों में ही पशुधन की रक्षा के लिए जाने का निर्णय लिया और चौथे फेरे में आगे होकर फेरों की रस्म को चार फेरों में पूर्ण कर दिया और उसी वक्त पाबू जी गठजोड़े को छोड़कर युद्ध के लिए निकल पड़े| और उस वृद्धा के पशुधन की रक्षार्थ लुटेरों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे|
पाबू जी द्वारा अपने विवाह में फेरों के उपरांत बिना सात फेरे पूरे किये ही बीच में उठकर गोरक्षा के लिए जाने व अपना बलिदान देने के बाद राजस्थान में राजपूत समुदाय में अब भी विवाह के दौरान चार फेरों और सात वचनों कि परंपरा है| ऐसी मान्यता कुछ बुजुर्ग लोग बताते है|
अब सात की जगह चार फेरों का वास्तविक कारण तो बहुत सारे है पर हाँ आज भी राजस्थान में राजपूत समाज में सात की जगह चार फेरों व सात वचनों के साथ ही विवाह की रस्म पूरी की जाती है| इंटरनेट पर इस संबंध में और जानकारी लेने पर पता चला कि देश के और भी राज्यों में सात की जगह चार,पांच फेरों की रस्में निभाई जाती है| साथ ही वैदिक काल में भी चार फेरों से विवाह पूर्ण कराने का वर्णन मिलता है|
राजपूत महिलाएं भी फेरों की रस्म के समय जो गीत गाती है उनमें सिर्फ चार फेरों का ही जिक्र होता है-
“पैलै तो फेरै लाडली दादोसा री पोती
दुजै तो फेरै लाडली बाबोसा री बेटी
अगणे तो फेरै काकां री भतीजी
चौथै तो फेरै लाडली होई रे पराई |”
यदि आपके पास भी इस संबंध में ज्यादा जानकारी हों तो कृपया टिप्पणी के माध्यम से इस फेरों की इन परम्पराओं पर प्रकाश डालने का कष्ट करें|
राजुल शेखावत
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वीरों के सम्मान में चार भी लिये जा सकते हैं।
हमारे हिंदु समाज मे भी चार ही होते हैं हमारे भी चार ही हुये थे जिज्ञासा हमारी भी रही कि आखिर ऐसा क्यों ?
अब तो पता चल गया होगा।
रोचक जानकारी.
घुघूतीबासूती
🙂
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1. अपने ब्लॉग पर फोटो स्लाइडर लगायें
Rajput samaj or isase sambandhit reeti riwajo wale samaj ,jese CHARAN ,rajpurot aadi me bhi char fere hi liye jate he ….kyoki esi manyata he ki baki k teen fere swarg me liye jate he.
achchi jankari. aapko bahut-bahut badhai
vaise govt. abhi ek bill la rahi hai jiske anusar ratri me vivah band ho jayenge or din me hi shadiyan hongi? kya aapko nahi lagta ki is par likha jana chahiye.
एक और मान्यता है की जब तक तीन फेरे होते है तब तक न तो वधु वर की पत्नी हो सकती है, और न ही वर वधु का पति ! यानि की तीन फेरो तक तो दोनों के अलग -अलग तीन तीन फेरे माने जाते है यानि की 3+3
=6 और जब चोथा फेरा होता है तो दोनों एक दुसरे के हो जाते है जो की 1 फेरा माना जाता है इस तरह से 7 फेरो का महत्त्व भी माना जाता है !
prithvisointra Hukum Bahut sundar
फ़ेरे 4 ही होते हैं जो पुरुषार्थ चतुष्टय को इंगित करते हैं।
4फेरे व 7 वचन ही होते है जो परम्परा पूर्वज बना कर गये है उनको ही निभाना चाहिये
Thanks to all to .
Bahut sundar jankari aap ne di
हमारे समाज में भी चार फेरे होते हैं परन्तु तीन फेरे मंडप के बाहर भी होते हैं इस तरह कुल सात हो जाते हैं