राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र की अपनी विशिष्ठ सांस्कृतिक पहचान है इस क्षेत्र ने भारतीय सेना को सबसे अधिक वीर सैनिक दिए है यहाँ के लोग अपनी वीरता,कर्तव्यनिष्ठा के अलावा अपनी जिन्दादिली के लिए भी जाने जाते है और इसी जिन्दादिली का प्रमाण है कि फाल्गुन का महिना लगते ही पुरे शेखावाटी क्षेत्र में चंग (ढफ) पर थाप के साथ ही होली के गीतों की धमाल शुरू हो जाती है | गांव-गांव और हर शहर में शाम होते ही लोगों के झुंड के झुंड जुट जाते है और चंग (ढफ) पर थाप के साथ ही होली के गीतों में झूम उठते है यह क्रम होली आने तक चलता रहता है “होरियों” के नाम से प्रसिद्ध इन लोक गीतों को गाने की भी अपनी एक विशिष्ठ शैली होती है | अब फाल्गुन का महिना लग चुका है और शेखावाटी क्षेत्र में इन “होरियों” के लोक गीतों के कार्यक्रम शुरू हो चुके है, अब जब पुरा शेखावाटी क्षेत्र होली के लोक गीतों की मस्ती में झूम रहा है तो आप पीछे क्यों रहे, आईये रूप सिंह शेखावत और उनके साथी कलाकारों के साथ आप भी होली की इस धमाल में शामिल होकर मस्त हो जाईये | वैसे भी आज आपने ताऊ की शनिश्चरी पहेली में काफी दिमाग लगाया होगा सो अब कुछ मनोरंजन कर फ्रेश हो जाईये |
शेखावाटी ने हमें एक दोस्त भी दिया रतन सिंह शेखावत
बहुत सुन्दर है जी, धमाल का कमाल है कि अभी शेखावाटी मे रंग छाने लग जायेगा । अभी तो एक बार ओले गिरने से अस्थाई ठन्ड हो गयी है ।
भाई शेखावत जी बचपन की यादें ताजा कर दी. हम भी डफ़ या चंग ऐसी बजाते थे कि क्या बतायें? और साथ मे जो रात भर गाते थे उसका तो आनन्द ही अलग था.
दुसरे दिन स्कूल मे पंगा हो जाता था. रात भर उधम करना और स्कूल का काम करते नही थे. मास्टर जी बेंत सटकाते थे. फ़िर शाम हुई नही कि मंडली के छोरे अलग ही चंग बजाया करते थे. एक बडे लोगो का हुआ करता था.
फ़िर सांग निकाला करते थे. हमारी छो्टे बच्चों की टोल ने बदो की रौनक फ़िकी कर रखी थी. अब वो दिन कहां? और अब तो गांवों मे भी वो माहोल कहां रह गया है?
रामराम.
चालो दे्खण ने..
दोनो गाने मस्त है..
बहुत अच्छे लगे ये गीत….
बहुत ही सुंदर लगा, लेकिन आज के युग मे भी क्या यह सब होगा? शायद नही, पहले सीधे साधे ढंग से यह सब होता था, जिसे सभी मिल जुल कर सुनते थे,ओर सभी गीत ओर रागनिया एक मर्यादा मै ही गाई जाती थी,
बहुत सी यादे याद दिला दी आप ने धन्यवाद