30.3 C
Rajasthan
Wednesday, June 7, 2023

Buy now

spot_img

जब राजा मानसिंह आमेर ने लंका विजय की ठानी

Raja Mansingh Amer History in Hindi
अफगानिस्तान के जिन कबीलों को वर्तमान विश्व महाशक्ति अमेरिका और सोवियत रूस अपने अत्याधुनिक हथियारों के बल पर हराना तो दूर, झुका तक नहीं सके, उन्हीं अफगानिस्तान के शासकों, कबीलों को आमेर के Raja Man Singh ने नाकों चने चबवा दिए थे|
सन 1585 में काबुल के शासक मिर्जा हकीम को युद्ध में परास्त करने के बाद राजा मानसिंह ने खैबर दर्रे और राजमार्गों को लूटने वाले दुर्दान्त अफगान कबीलों को कुचल कर अफगानिस्तान में शांति की स्थापना की| अफगानिस्तान बर्फ के पहाड़ों से घिरा हुआ है और राजस्थान जैसे गर्म प्रदेश में रहने वाले सैनिकों के बलबूते राजा मानसिंह ने मौसम की प्रतिकूल परिस्थितयों के बाद भी उस क्षेत्र के पठानों को कुचल कर उनके शस्त्र बनाने वाले कारखाने नेस्तानाबूद किये| इन्हीं शस्त्र कारखानों से भारत के आक्रमणकारियों को हथियार मिलते थे| विदेशी आक्रमणकारी इन्हीं हथियारों के बल पर भारत को लूटने के साथ यहाँ जबरन धर्म-परिवर्तन कराते थे| यदि मानसिंह ने इन्हें नेस्तानाबूद नहीं किया होता तो आज भारत का भी इस्लामीकरण हो चुका होता|

अफगान के जिन कबीलों को महाशक्ति अमेरिका काबू नहीं रख सकी, उन्हें मौसम की विपरीत परिस्थितियों में काबू करने वाले राजा मानसिंह के शौर्य के पैमाने की कल्पना कर सकते है कि उनकी वीरता और साहस कितने उच्च दर्जे का था|

उस ज़माने में राजा मानसिंह एक मात्र ऐसे सेनापति थे जो बर्फीली पहाड़ियों, घनघोर जंगलों, पहाड़ों और जल युद्ध में दक्षता रखते थे| राजा मानसिंह ने पंजाब, अफगानिस्तान, उड़ीसा, बिहार, बंगाल आदि कई क्षेत्रों में सफल सैन्य अभियान चलाये और वहां सफलता प्राप्त की| राणा प्रताप जैसे उच्च श्रेणी के वीर को भी हल्दीघाटी युद्ध में मानसिंह के आगे मैदान छोड़ना पड़ा| जबकि इतिहास साक्षी है हल्दीघाटी युद्ध के बाद मुग़ल सेना महाराणा प्रताप का बाल भी बांका ना कर सकी और हर मुटभेड़ में हारने के बाद मुग़ल सेना दिवेर युद्ध में महाराणा के सामने बुरी तरह हार कर भागी| स्वयं अकबर भी मेवाड़ से असफल होकर वापस लौटा था|

अपने जीवन में 123 युद्ध जिसमें 77 बड़े युद्ध लड़कर जीतने वाले राजा मानसिंह ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में विजय पाने के बाद अपने पूर्वज श्रीराम का अनुसरण करते हुए लंका पर चढ़ाई कर उसे विजय करने का विचार किया और लंका विजय की योजना बनाने का कार्य आरम्भ किया| राजा मानसिंह की लंका विजय की योजना के बारे में एक चारण कवि को पता चला तो उसने राजा मानसिंह के इस अभियान को रोकने के लिए एक सौरठे की रचना कर राजा मानसिंह को सुनाया-

रघुपति दीन्हों दान, विप्र विभीषण जानके|
मान महिपत मान, दियौ दान मत लीजै||

अर्थात्- भगवान राम ने विभीषण को ब्राह्मण जानकर लंका दान में दी थी| अत: हे राजा मान ! उनका दिया दान वापस मत लो|
कवि का उक्त सौरठा सुनने के बाद राजा मानसिंह ने लंका विजय का अपना अभियान रोक दिया|

History of jaipur in hindi
raja mansingh history in hindi
raja mansingh ka lanka abhiyan

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,803FollowersFollow
20,800SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles