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Tuesday, June 6, 2023

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राजा मानसिंह आमेर और सनातन धर्म

आमेर के इतिहास प्रसिद्ध राजा मानसिंह सनातन धर्म के अनन्य उपासक थे. वे सनातन धर्म के सभी देवी और देवताओं के भक्त थे व स्वधर्म में प्रचलित सभी सम्प्रदायों का समान रूप से आदर करते थे| उनकी धार्मिक आस्था पर भले ही समय समय पर किसी सम्प्रदाय विशेष का प्रभाव रहा हो, पर वे हमेशा एक आम राजपूत की तरह अपने ही कुलदेवी, कुलदेवता व इष्ट के उपासक रहे| अपनी दीर्घकालीन वंश परम्परा के अनुरूप राजा मानसिंह ने सभी सम्प्रदायों के संतों का आदर किया पर उनके जीवन पर रामभक्त संत दादूदयाल का सर्वाधिक प्रभाव रहा. यद्धपि राजा मानसिंह सनातन धर्म के दृढ अनुयायी रहे फिर भी वे धर्मान्धता और अन्धविश्वास से मुक्त धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे. जिसकी पुष्टि रोहतास किले में एक पत्थर पर उनके द्वारा उत्कीर्ण करवाई एक कुरान की आयात से होती है, जिसमें कहा गया है कि- “धर्म का कोई दबाव नहीं होता, सच्चा रास्ता झूठे रास्ते से अलग होता है|”राजा मानसिंह के काल में अकबर ने धर्म क्षेत्र में नया प्रयोग किया और अपने साम्राज्य में एक विश्वधर्म की स्थापना के लिए “दीने इलाही” धर्म विकसित किया| राजा मानसिंह अकबर के सर्वाधिक नजदीकी व्यक्ति थे, फिर भी अकबर की लाख कोशिशों के बाद भी वे अपने स्वधर्म से एक इंच भी दूर हटने को तैयार नहीं हुये| अकबर के दरबारी इतिहासकार बदायुनी का कथन है कि “एक बार 1587 में जब राजा मानसिंह बिहार, हाजीपुर और पटना का कार्यभार संभालने के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे तब बादशाह ने उसे खानखाना के साथ एक मित्रता का प्याला दिया और दीने इलाही का विषय सामने रखा| यह मानसिंह की परीक्षा लेने के लिए किया गया| कुंवर ने बिना किसी बनावट के कहा अगर सेवक होने का मतलब अपना जीवन बलिदान करने की कामना से है तो मैंने अपना जीवन पहले ही अपने हाथ में ले रखा है| ऐसे में और प्रमाण की क्या जरुरत| अगर फिर भी इस बात का दूसरा अर्थ है और यह धर्म से सम्बन्धित है तो मैं निश्चित रूप से हिन्दू हूँ|”

इस तरह राजा मानसिंह ने अकबर द्वारा मित्रतापूर्वक धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव ठुकरा कर अपने स्वधर्म में अप्रतिम आस्था प्रदर्शित की| रॉयल ऐशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल के जरनल में मि. ब्लौकमैन ने अपने लेख में लिखा है- “अकबर के अनुयायी मुख्यरूप से मुसलमान थे| केवल बीरबल को छोड़कर जो आचरणहीन था, दूसरे किसी हिन्दू सदस्य का नाम धर्म परिवर्तन करने वालों में नहीं था| वृद्ध राजा भगवंतदास, राजा टोडरमल और राजा मानसिंह अपने धर्म पर दृढ रहे यद्धपि अकबर ने उनको परिवर्तित करने की चेष्टा की थी|

राजा मानसिंह ने सनातन धर्म शास्त्रों के साथ साथ कुरान का भी गहन अध्ययन किया था और उसकी मूलभूत बातों से वे परिचित थे| मुंगेर में दौलत शाह नाम के एक मुस्लिम संत ने भी राजा मानसिंह को इस्लाम की शिक्षाओं से प्रभावित कर उनका धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश की पर राजा मानसिंह मानते थे कि परमात्मा की मोहर सबके हृदय पर है| यदि किसी की कोशिश से मेरे हृदय का वह ताला हटा सकती है तो मैं उसमें तत्काल विश्वास करने लग जावुंगा| यानी वह किसी भी धर्म को तभी स्वीकार करने को तैयार है बशर्ते वह धर्म उनके मन में सत्यज्ञान का उदय कर सके| इस तरह अकबर के साथ कई मुस्लिम सन्तों की चेष्टा भी राजा मानसिंह की स्वधर्म में अटूट आस्था को नहीं तोड़ सकी| राजा के निजी कक्ष की चन्दन निर्मित झिलमिली पर राधाकृष्ण के चित्रों का चित्रांकन राजा मानसिंह की सनातन धर्म में अटूट आस्था के बड़े प्रमाण है| आमेर राजमहल में राजा मानसिंह का निजी कक्ष में विश्राम के लिए अलग कक्ष व पूजा के लिए अलग कक्ष व पूजा कक्ष के सामने एक बड़ा तुलसी चत्वर, राजमहल के मुख्य द्वार पर देवी प्रतिमा राजा मानसिंह के धार्मिक दृष्टिकोण को समझने के लिए काफी है|

राजा मानसिंह ने अपने जीवनकाल में कई मंदिरों का निर्माण, कईयों का जीर्णोद्धार व कई मंदिरों के रख रखाव की व्यवस्था कर सनातन के प्रचार प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई| यही नहीं राजा मानसिंह ने सनातन मंदिरों के लिए अकबर के खजाने का भरपूर उपयोग किया और दिल खोलकर अकबर के राज्य की भूमि मंदिरों को दान में दी| बनारस में राजा मानसिंह ने मंदिर व घाट के निर्माण पर अपने एक लाख रूपये के साथ अकबर के खजाने से दस लाख रूपये खर्च कर दिए थे, जिसकी शिकायत जहाँगीर ने अकबर से की थी, पर अकबर ने उसकी शिकायत को अनसुना कर मानसिंह का समर्थन किया|राजा मानसिंह ने अपने राज्य आमेर के साथ साथ बिहार, बंगाल और देश के अन्य स्थानों पर कई मंदिर बनवाये| पटना जिले बरह उपखण्ड के बैंकटपुर में राजा मानसिंह ने एक शिव मंदिर बनवाया और उसके रखरखाव की समुचित व्यवस्था की जिसका फरमान आज भी मुख्य पुजारी के पास उपलब्ध है| इसी तरह गया के मानपुर में भी राजा ने एक सुन्दर शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे स्वामी नीलकंठ मंदिर के नाम से जाना जाता है| इस मंदिर में विष्णु, सूर्य, गणेश और शक्ति की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई थी| मि. बेगलर ने बंगाल प्रान्त की सर्वेक्षण यात्रा 1872-73 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि- “राजा मानसिंह ने बड़ी संख्या में मंदिर बनाये और पुरानों का जीर्णोद्धार करवाया| ये मंदिर आज भी बिहार में बंगाल के उपखंडों में विद्यमान है| रोहतास किले में भी राजा मानसिंह द्वारा मंदिर बनवाये गए थे|

मथुरा के तत्कालीन छ: गुंसाईयों में से एक रघुनाथ भट्ट के अनुरोध पर राजा मानसिंह ने वृन्दावन में गोविन्ददेव का मंदिर बनवाया था| आमेर के किले शिलादेवी का मंदिर भी राजा मानसिंह की ही देन है| शिलादेवी की प्रतिमा राजा मानसिंह बंगाल में केदार के राजा से प्राप्त कर आमेर लाये थे| परम्पराएं इस बात की तस्दीक करती है कि राजा मानसिंह ने हनुमान जी की मूर्ति को और सांगा बाबा की मूर्ति को क्रमश: चांदपोल और सांगानेर में स्थापित करवाया था| आज भी लोक गीतों में गूंजता है- आमेर की शिलादेवी, सांगानेर को सांगा बाबो ल्यायो राजा मान|

आमेर में जगत शिरोमणी मंदिर का निर्माण कर उसमें राधा और गिरधर गोपाल की प्रतिमाएं भी राजा मानसिंह द्वारा स्थापित करवाई हुई है| मंदिर निर्माणों के यह तो कुछ ज्ञात व इतिहास में दर्ज कुछ उदाहरण मात्र है, जबकि राजा मानसिंह ने सनातन धर्म के अनुयायियों हेतु पूजा अर्चना के के कई छोड़े बड़े असंख्य मंदिरों का निर्माण कराया, पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया और कई मंदिरों के रखरखाव की व्यवस्था करवाकर एक तरह से सनातन धर्म के प्रसार में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई|

पर अफ़सोस जिस राजा मानसिंह ने सनातन धर्म के प्रसार से इतना सब कुछ किया आज उसी राजा मानसिंह को वर्तमान हिन्दुत्त्ववादी कट्टर सोच के लोग अकबर का चरित्र हनन करते समय मानसिंह का भी चरित्र हनन कर डालते है| मानसिंह ने राणा प्रताप के खिलाफ युद्ध लड़ा, उसके लिए वे राणा के दोषी हो सकते है, लेकिन मानसिंह ने अकबर जैसे विजातीय के साथ अपने पुरखों द्वारा उस समय की तत्कालीन आवश्यकताओं व अपने राज्य के विकास हेतु की गई संधि को निभाते हुये, उसी की सैनिक ताकत से हिदुत्त्व की जो रक्षा की वह तारीफे काबिल है। लेकिन अफसोस वर्तमान पीढी बिना इतिहास पढ़े देश की वर्तमान परिस्थियों से उस काल की तुलना करते उनकी आलोचना करने में जुटी रहती है|

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4 COMMENTS

  1. राजा मान सिंह के बारे मे बहुत ही शानदार एवं तथ्यपूर्ण सामग्री उपलब्ध कराने के लिए साधु वाद । आपकी बात को पूर्ण करता हूँ । जयपुर के लोक गीत के उल्लेख से ‘ सांगानेर को सांगो बाबों , जयपुर को हनमान ,आमेर की सिल्ला देवी ल्यायों राजा मान । जितना मर्जी इतिहासकारों ने अपनी पेट पूजा के लिए इतिहास के साथ तोड़ मरोड़ की हो ओर राजा मानसिंह के बारे मे सही सूचनाओं से वंचित रखा हो परंतु यह सच है की तत्कालीन जनता जो उस काल की खुद गवाह होती है वह सबूत छोड़ जाती है अपने गीतों कहावतों के माध्यम से ऐसी ही एक कहावत जयपुर मे प्रससिद्ध है ” जननी जण तो ऐसों जण जयसो मान मरद्द काबुल खाण्डो पखालियों सागर पाड़ी हद्द। यह सभी लोग जानते है की पूरे भारत मे मुगलों के खजाने से जयपुर के राजाओं ने एक से बड़ कर एक मंदिर बनाए साथ ही पूरे भारत की सिद्ध मूर्तियों को अऔरंगजेब के समय सुरक्शित रूप से आमेर/ जयपुर पहुंचाया । एक ओर जबर्दस्त जानकारी आप के साथ साझा करना चाहूँगा की मीरा जिस मूर्ति की पूजा किया करती थी वह भी चित्तौड़ से पुजारियों सहित आमेर ला कर जगत शिरोमणि मंदिर मे स्थापित कराई भगवा साथ ही मीरा बाई की मूर्ति भी स्थापित कराई जो शायद पूरे भारत मे भगवान कृषण एवं मीरा की मूर्ति वाला एकमात्र मंदिर होगा । राणा प्रताप एवं मान सिंह के बीच भी बहुत मधुर संबंध थे तथा अकबर के साथ माँसिंह की कूट नैतिक मैत्री के बाद भी दोनों राजपूताने को एक करने के लिए प्रयासरत रहे ओर मिलते रहते थे । मान सिंह ने अकबर के साथ कडा विरोध व्यक्त किया था जब मुगलों ने महरण प्रताप की पत्नी जयवनता बाई की हत्या करवा दी थी । विरोध स्वरूप मान सिंह जी ने राणा प्रताप के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अकबर को माना कर दिया था । अकबर ने मानसिंह के पिता भगवान दास को शिकायत कर कुँवर को मनाने की बात कही थी । जब मानसिंह ओर राणा प्रताप का आपसी प्रभाव किसी तरह कम नहीं हुआ तो अकबर ने राजा भगवान दास को डावात पर आमत्रित किया उन्हे मदिरा पान कराया गया तथा उस दौरान अकबर ने भगवान दास को कहा की आप की अंगुली मे जो अंगूठी है जिसे आप कभी नहीं उतारते वह हमे बहुत प्रिय है दे दीजिये । भगवान दास का जवाब था की यह उतार नहीं सकती पर अकबर के जिद करने पर भगवान दास ने अपनी अंगूली काट कर अंगूठी अकबर को दे दी । अकबर ने मदिरा मे मत्त भगवान दास को बंदी बना कर छुपा दिया तथा अकबर द्वारा मानसिंह को बताया गया की आप के पिता पर राणा प्रताप द्वारा हमला कर मार दिया गया है तथा प्रमाण स्वरूप भगवान दास की वही अंगूठी मानसिंह को दिखाई गयी । तब पहली बार मानसिंह राणा प्रताप के विरुद्ध हुए ओर युद्ध के लिए भी तयार हुए । अकबर को इस के बाद भी तसल्ली नहीं थी उसे दर था की युद्ध के दौरान जब दोनों आमने सामने होंगे तो हो सकता है भेद खुल जाये इस लिए युद्ध मे यह व्यवस्था की गयी थी की राणा प्रताप ओर मान सिंह का आमना सामना कम से कम हो ओर जब दोनों नजदीक या आमने सामने हो तो इतना शोर / कोलाहल किया जाए की दोनों एक दूसरे से बात ना कर सके । परंतु कमाल देखिये चाटुकार इतिहास कारों का की ऐसी बातें प्रकाश मे नहीं लायी गयी ओर 2 बड़े राज घराने वर्षों तक एक दूसरे के खून के प्यासे बने रहे ओर जाब वर्षों बाद कुछ तथ्यों की जान कारी हुई तो उदयपुर के राजा राज सिंह के समय जयपुर ओर उदयपुर के बीच विवाह संबंध कायम हुए । इतिहास कारों की ध्रस्तता देखिये की बहुत कम लोग यह जान ते है की महारणा प्रताप की सौतेली मा अकबर मे मिली हुई थी उसका पुत्र जगमाल ओर शक्ति सिंह अकबर के साथ थे अकबर के कह ने पर जगमाल ने महारणा प्रताप के विरूद्ध युद्ध भी किया था । मान सिंह ने शक्ति सिंह को प्रेरित भी किया था की वो युद्ध मे राणा प्रताप का साथ दे । जो उस ने राणा प्रताप के घायल होने पर व्यक्त किया परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी । मई बहुत धन्यवाद दूँगा “भारत के वीर पुत्र महारणा प्रताप सीरियल बनाने वाले निर्माता का जिनहोने बहुत अनुसंधान कर के राणा प्रताप की देश भक्ति को तो दिखाया पर बहुत से तथ्यों को भी स्पस्त किया । सीरियल मे काही भी जोधा नाम का उल्लेख नहीं किया वरन जिस लड़की के साथ अकबर की शादी हुई थी उसका उल्लेख किया गया । एक बार केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के साथ मेरी इस संबंध मे बड़ी लंबी चर्चा हुई ओर वे बड़े प्रभावित भी हुए । अंत मे उन्होने कहा की केवल एक बात बताइये की क्या मान सिंह के बाद भी जयपुर/ राजस्थान मे मान सिंह नाम रखे जाते हैं ? जब उन्हे बताया गया की मान सिंह के बाद सैकड़ो मान सिंह हु ए हैं ओर आज भी यह नाम रखा जाता है ओर गौरव से लिया भी जाता है तो उनका जवाब था अब सबूत नहीं चाहिए उस समय की जण ता ओर वरमान परम्पराएँ बहुत सी बातों के स्वयं प्रमाण होते है जैसे आज भी कोई केकई नाम नहीं रख ता।

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