जयसिंह गुजरात के राजा थे। गुजरात के सोलंकी राजाओं में वे सबसे अधिक प्रतापी राजा हुए| इनका प्रसिद्ध विरुद “सिद्धराज” था जिससे वे सिद्धराज जयसिंह नाम से अधिक विख्यात है। यह राजा कर्ण सोलंकी के पुत्र थे। वि.सं. ११५० (ई.स. १०९३) में सिद्धराज गद्दी पर बैठे। इनका शासन काल वि.सं. ११९९ (ई.स. ११४२) तक रहा।
जिस समय जयसिंह सोमनाथ की यात्रा पर गये थे तब मालवा के परमार राजा नरवर्मा ने गुजरात पर चढाई कर दी और राजधानी अणहिलवाड़ा-पाटन को लूटा। इस युद्ध के वैर में जयसिंह ने मालवे पर चढाई की, दोनों ओर से बारह वर्ष तके युद्ध हुआ। इस लड़ाई मे नरवर्मा का देहान्त हुआ और उसके पुत्र यशोवर्मा के समय इस युद्ध की समाप्ति हुई। अन्त में यशोवर्मा परास्त हुआ, उसे बन्दी बनाया गया। मालवा पर कुछ समय तक सोलंकियों का अधिकार रहा। मेवाड़ का प्रसिद्ध चित्तौड़ तथा उसके आस-पास का मालवे से मिला हुआ प्रदेश, जो मुंज के समय से मालवा के परमारों के राज्य में चला गया था, अब जयसिंह के अधीन हुआ। ये क्षेत्र जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल तक गुजरात के सोलंकियों के अधीन रहे, परन्तु कुमारपाल के अयोग्य उत्तराधिकारियों के समय में फिर स्वतन्त्र हो गए।
बागड़ (बाँसवाड़ा) के क्षेत्र पर उन दिनों हुणों का आधिपत्य था। हूण एक प्राचीन क्षत्रिय जाति थी, जिसने भारतीय इतिहास व मध्य एशिया की राजनीति को प्रभावित किया था। जयसिंह ने इन हुणों को परास्त किया। इस तरह से भारत में हुणों की अन्तिम लड़खड़ाती हुई शक्ति का नाश हुआ। यह क्षेत्र जयसिंह के अधीन हो गया ।
आबू के परमार और जालौर के चौहाणों ने भी गुजरात की अधीनता स्वीकार कर ली थी। उन्होंने सोरठ पर चढ़ाई कर गिरनार के चूड़ासमा राजा खंगार (द्वितीय) को परास्त किया। बर्बर आदि जंगली जातियों को अपने अधीन बनाया। अजमेर के चौहाण राजा अर्णोराज पर विजय प्राप्त की, परन्तु पीछे समझौता कर लिया। जयसिह ने अपनी पुत्री कांचन देवी का विवाह अर्णोराय से कर दिया, जिससे सोमेश्वर का जन्म हुआ।
सिद्धराज जयसिंह बड़े ही प्रतापी, लोकप्रिय, न्यायप्रिय और विद्यारसिक शासक थे। वे जैनों का विशेष सम्मान करते थे। वह स्वयं भी जैन धर्म के अनुयायी थे। उसके दरबार में कई विद्वान रहते थे, प्रसिद्ध विद्वान जैन आचार्य हेमचन्द्र उसके दरबार की शोभा बढ़ाते थे।
लेखक : छाजूसिंह, बड़नगर