माना कि ये उस मालिक का दस्तूर है
कुछ पल सब कुछ है
कुछ पल देखो तो कुछ भी नहीं
कल जो दिल के करीब था, आज भी है
अब, सात समुद्र पार है
कल जो अपना था वो आज कहीं नहीं
ओह ! हम बहक गए थे किसी की बातों से
कैसे कटेगी ज़िन्दगी
मत पूछो जिसकी हमें खबर नहीं
चाँद महका था अमावस की रातों के बाद
वो कौनसी थी रात थी
मुझसे मत पूछो अब कुछ याद नहीं
उसने न जाने अनेकों नाम लिख दिए थे
अपने दिल पे
मेरा नाम याद रहे, यह जरूरी तो नहीं
दो रोज़ का हंसना हंसाना, गुनगुनाना
हसीं वादियों में
अब वो सर्द राते परायी है मेरी नहीं
भूली बिसरी यादों, दिल में बसेरा मत करो
वो जो निकला बेवफा
उस दोस्त का नाम दोहराना कोई ज़रूरी तो नहीं
लेखिका – कमलेश चौहान (गौरी)
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