Home Editorials कीटनाशक : मानव के लिए सबसे बड़ा खतरा

कीटनाशक : मानव के लिए सबसे बड़ा खतरा

8

गांव में बचपन से ही मोरों (Peacock)को देखा है| सुबह उठते ही मोरों की मधुर आवाज सुनाई देती थी| हवेली से बाहर निकलते ही प्रांगण में माँ सा, दादीसा या घर के अन्य बुजुर्गों द्वारा डाला दाना चुगते मोर-मोरनी नजर आते थे| मयूर (Peacock) को दाना चुगाने के लिए घर के छोटे बच्चों के हाथों में अनाज भरकर कटोरी दे मयूर के पास भेजते और जब बच्चे के हाथों मयूर दाना चुगते तो छुपकर फोटो लेने का आनंद ही कुछ और होता था| बच्चे भी अपने हाथों मोर को दाना चुगाने से बड़े खुश होते| खेतों में पंख फैलाकर नाचते मयूर को देखते ही बनता था| वर्षा ऋतू में तो मोरों की आवाजें सून बुजुर्ग वर्षा का अनुमान लगा लेते थे, यही नहीं कई बार रात में मोरों की क्रंदन आवाजें सून घर के बड़े बुजुर्ग आस-पास किसी अनहोनी की आशंका का अंदाजा लगा लिया करते थे|

मोरों द्वारा अपने पंख छोड़ने का बचपन में हम सभी साथियों को बेसब्री से इन्तजार रहता था| सुबह सुबह ही गांव के सारे बच्चे अपने अपने खेतों में मयूर पंख की तलाश में निकल जाते थे ताकि पंख एकत्र कर बेचकर पैसे कमाये जा सके| पंखों के बदले मिले पैसों से एक अलग ही आत्म संतोष मिलता था आखिर वो खुद की कमाई जो होती थी|

ऐसा नहीं है कि मयूरों से सब खुश ही रहते थे| उस वक्त हमारे यहाँ सिर्फ वर्षा ऋतू की फसलें ही होती थी| वर्षा के बाद जब फसल बोई जाती तब खेतों में मयूर बोये गए बीज को खा जाते थे| सो फसल बोने के बाद आठ-दस दिन तक सुबह सुबह सभी बच्चों की ड्यूटी खेतों में मोरों से फसल (Crop) की रखवाली के लिए लगती थी| बाद में जब फसल में अनाज के दाने पड़ते तब भी पकने तक कृषक मोरों सहित अन्य पक्षियों से फसल की रक्षा को तैनात रहते| फसलों को मोरों द्वारा नुकसान पहुंचाने के बावजूद मोर का राष्ट्रीय पक्षी वाला रुतबा व सम्मान कायम था| गांव में मोर के शिकार पर प्रतिबंध था| मोर का शिकार करने वाले को गांव में ग्रामीण दंड देते और उसे घृणा से देखते थे| गांव में सिर्फ एक बावरिया जाति का परिवार ही मोर का शिकार कर खाता था| जिसका गांव वाले पूरा ध्यान रखते थे कि वह मोर का शिकार ना कर पाये|

लेकिन अफ़सोस ! राष्ट्रीय पक्षी मोर को सरकार ही नहीं ग्रामीणों द्वारा इतना संरक्षण देने के बावजूद आज मेरे गांव में एक भी मोर मौजूद नहीं है| जिस मोर को दिखाकर गांवों में छोटे बच्चों का मन बहलाया जाता था, आज गांव में बच्चों को मोर का परिचय कराने के लिए सिर्फ मोरों के चित्र ही बचे है| मोरों को संरक्षण के साथ इतना सम्मान देने के बावजूद मोर नहीं बचे, और हमारा आधुनिक कृषि विकास मोरों को निगल गया|

दरअसल जब से किसान आधुनिक कीटनाशक (Modern Pesticides) से ट्रीटमेंट किया बीज बोने लगे वही मोरो के लिए काल साबित हुआ| कीटनाशक (Pesticides) लगा बीज खाने से गांव के सभी मोर एक के बाद बीमार होकर कालकलवित हो गए और आज गांव में एक भी मोर नहीं बचा| मोर ही नहीं तीतर जैसे पक्षी जो लोगों द्वारा शिकार कर खाने की पहली पसंद है भी इन कीटनाशक लगे बीजों को खाकर बीमार पड़ जाते है और उनका शिकार कर खाने वाले भी एक बार अस्पताल पहुँच गए थे| तब से लोग तीतर का शिकार करने से भी बचने लगे है|

जिस तरह से खेतों में किसान कीटनाशकों (Phorate, DAP, uria Pesticides)का उपयोग कर रहे है उसे देखते हुए अंदाज लगाया जा सकता है कि वो दिन दूर नहीं जब इनके साइड इफेक्ट से बीमार हुए इंसानों से अस्पताल भरे मिलेंगे| इसका उदाहरण बीकानेर के अस्पताल में व बीकानेर से भटिंडा के बीच चलने वाली रेलगाड़ी में देखा जा सकता है| इस रेलगाड़ी में आपको कैंसर मरीज, उनके तीमारदार या फिर उन मरीजों से मिलने वाले यात्री ही मिलेंगे| स्थानीय निवासियों ने तो उस रेल का नाम ही कैंसर एक्सप्रेस रख दिया है| और ये सभी कैंसर मरीज पंजाब के खेतों में भारी मात्रा में इस्तेमाल किये कीटनाशकों व नहरों में पंजाब की फैक्ट्रियों से निकलने वाले रसायनयुक्त प्रदूषित पानी के मिलने से कैंसर से ग्रसित हुए होते है| जिनकी संख्या देखकर मन में आशंका उठती है कि यदि इसी प्रकार हम जहरीले कीटनाशक प्रयोग करते रहे तो वो बिना किसी महायुद्ध के ही हम मानव सभ्यता खो बैठेंगे|

फसलें ही नहीं, पशुओं का चारा घास भी इन कीटनाशकों की पूरी जद में है| आज हर किसान बीज के साथ फोरेट Phorate नामक घातक कीटनाशक बोता है| जिसका असर उस जमीन, उस फसल व वहां उगे घास में 45 दिन तक रहता है| यदि 45 दिन के भीतर कोई पशु वहां उगी घास Grass को खा ले तो फोरेट Phorate का जहर पशु के शरीर में अवश्य जाएगा और अपना साइड इफेक्ट उसे बीमार करके दिखाया| यही नहीं उस पशु का दूध भी दूषित ही होगा और वह पीने वाले को नुकसान पहुंचाएगा जिसके जहरीले परिणाम देर सवेर जरुर दिखाई देंगे|

इन कीटनाशकों के प्रयोग से ज्यादा फसल Crop लेकर मुनाफा कमाने के चक्कर में किसान तो इसका जिम्मेदार है ही, कीटनाशक बेचने वाले सबसे ज्यादा जिम्मेदार है| अक्सर अनपढ़ किसान कीटनाशक प्रयोग करने की विधि व मात्रा आदि की जानकारी दुकानदार से ही लेते है और कीटनाशक बेचने वाले दुकानदार ज्यादा बिक्री से मुनाफा कमाने के चक्कर में किसानों को अनचाहा कीटनाशक तो बेचते ही है साथ ही आवश्कता से अधिक कीटनाशक की मात्रा इस्तेमाल करने की सलाह देते है| ताकि उनकी बिक्री बढे और वे ज्यादा मुनाफा कमायें|

अत: मुनाफा कमाने के चक्कर में स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले इस खेल पर नियंत्रण की आवश्यकता है वरना वो दिन दूर नहीं जब इन कीटनाशकों के अति इस्तेमाल के चलते इनके साइड इफेक्ट से बीमार लोगों से अस्पताल भरे मिलेंगे या फिर जिस तरह मेरे गांव से मोर ख़त्म हुए वैसे कभी मानव भी ना बचे|

pesticides effects on human health, Phorate, DAP, Uria

8 COMMENTS

  1. आपका कहना सही है.

    मुझे भी कई बार अनुभव हुआ है कि कुछ ब्रांड के अनाज और दलहनों को खाने के बाद कुछ समय तक फ़ीलिंग कुछ अजीब होते रहती है तो इसके पीछे उनमें प्रयुक्त कीटनाशक ही हैं. और आजकल तो कोढ़ में खाज स्वरूप – अनाजों व दलहनों में कीड़े न पड़ें (क्योंकि कीड़े लगे अनाज कोई नहीं खरीदता) इस लिहाज से व्यापारीगण उनमें भी कीटनाशक मिला रहे हैं!

  2. कुछ साल पहले ऐसा ही हमारे गाँव में हुआ लेकिन आज गाँव वालों के प्रयास से मोरों की प्रजाति काफी फल फूल रही है. कीटनाशक एक गंभीर समस्या है जिससे सभ्यता भी खतरे में पड़ सकती है. खेतों में देशी खाद का प्रयोग करना चाहिए इसके लिए जागरूकता जरूरी है. अच्छी पहल और सार्थक
    रचना 🙂

    स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर  रंगरूट

  3. यह कीटनाशक सभी प्राणियों के लिए खतरा है , यदि हम अब भी नहीं सम्भले तो यह मानव सभ्यता के लिए बड़े खतरे का संकेत है

  4. मूंगफली के बीजों को जटायु या अन्य जहर से उपचारित कर के बीजने से बीकानेर एरिया में लोमड़ी एवं खरगोश लगभग ख़त्म हो चुके हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Exit mobile version