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दोय साढू

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श्री सौभाग्य सिंह जी की कलम से…….

नबाब रहीम खानखानौ (Navab Rahim Khankhana) आवभगत अर दातारगी में हिन्दुस्तानी मुसलमानां, बादसाहां, अमीर उमरावां में सिरै हुवौ। मुगलां री तवारीखां में उणरै जोड़ रौ दातार खोज्या भी नीं लाधै। बात री बात में एक-एक लाख रिपिया देवणियौ बीजौ विरळौ इज मिळै। कवियां, चारणां, भाटां, पिंडतां रौ खानखानौ प्रागवड़, कल्पव्रछ नै सांप्रतेख कामधेन इज हौ। उणां री दातारगी री बातां बीरबळ रा चुटकलां री भांत राज-समाज में चालै। भाट, चारण, कवीसरां रा एक-एक छंद माथै लाख-लाख रा देवाळ राजा भोज धारा नगरी रा धणी रै पछै अब्दुलरहीम खानखानौ इज गिणती में आवै।

अेक बार दूर देस रौ एक भूखौ बिरामण ऊभाणां पगां, फाटा लीरक-लीर घाबा में नबाब खानखाना रै द्वार माथै आयौ। पहरादारां उण नै बा’र री डयौढ़ी माथै इज थाम दियौ। बिरामण कैयौ- आगै तो मतां जावण दौ, पण थां जाकर नबाब सा’ब नै कैय तौ देवौ कै थांरौ साढू मिळण तांई आयौ है अर उणरी जोड़ायत थांरी साळी भी उण रै साथै है। द्वार रूखाळो बिरामण कैयौ ज्यूं री ज्यूं जाय नै खानखाना आगै गुदराई। खानखानौ उण नै तेड़ नै आपरै गौडै बुलवायौ। फाटा लतां, संग्याहीण उण दलिद्री नै कन्नै बैसाय नै पूछियौ-थांरौ म्हांरौ किण भांत रौ रिस्तौ है ?

उण अरज किवी- बिपती अर संपती दोनूं सगी बै’णां है। पैहली म्हांरा घर में गोडा ढाळिया बैठी है अर दूजी आपरै घर में बिराजै है! इण वास्ते थांरौ अर म्हारौ साढू रौ साख है। नबाब हंस पड़ियौ। घणौ राजी हुवौ। उणनै खिल्लत पहराई, सोनैली साजत रौ घोड़ौ बखसियौ अर अेक लाख रोकड़ देय नै वहीर कियौ।

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