माण्डण का युद्ध (Mandan near Rewari and Narnol) सं. 1822 वि. (सन् 1775 ई.) में लड़ा गया था, जिसकी स्मृति प्रत्येक शेखावत घराने में आज भी ताजा बनी हुई है। विशेष रूप से झुंझुनू और उदयपुरवाटी परगनों का प्रत्येक Shekhawat परिवार इस बात का दावा करता है कि उसका कोई एक पुरुखा माण्डण के युद्ध Mandan-Yuddh में अवश्य लड़ा था। अधिकांश कुटुम्बों के योद्धाओं ने माण्डण के समरांगण में प्राणों की आहुतियाँ देकर अपने वंशजों को ऊँचा मस्तक रखने का गौरव प्रदान किया था। कहा जाता है- माण्डण के उस रक्तरंजित युद्ध में सैकड़ों ऐसे नवयुवा वीरों ने अपना रक्त बहाया था, जो उसी समय विवाह करके अपनी नव वधुओं के साथ घरों को लौटे थे और जिनके मंगल सूचक डोरड़े (विवाह के समय हाथ की कलाई पर बांधा जाने वाला रक्षा सूत्र) विधिवत खोले ही नहीं जा सके थे।
यह युद्ध उस वक्त लड़ा गया जिस युग के फूट से जर्जरित राजपूत समाज में जन्में और षड्यंत्रों से दूषित राजनीतिक वातावरण में पले उन शेखावत योद्धाओं ने किस प्रकार एक दिल दिमाग होकर अपनी मान मर्यादा और भूमि व स्वतंत्रता की रक्षार्थ दिल्ली के सम्राट की शक्तिशाली सेना से टक्कर ली और अपने प्राणों की बाजी लगाकर-माण्डण के रणक्षेत्र को रक्त से आप्लावित कर अनेक घटकों से बनी शाही सेना को हराने में वे समर्थ हुये। इस युद्ध में जयपुर की सेना के साथ ही भरतपुर की जाट सेना ने शेखावतों के सहयोगार्थ युद्ध लड़ा और वीरता प्रदर्शित की थी|
पर अफ़सोस इस युद्ध के बारे में इतिहास में कहीं ज्यादा जानकारी नहीं थी, एक तरह से शेखावतों के साथ शेखावाटी के सभी जातियों के वीरों द्वारा अपनी स्वतंत्रता के लिए दिए इस बलिदान की यह घटना इतिहास में दफ़न हो गई| जिस किसी इतिहास में इस महत्त्वपूर्ण युद्ध के बारे में जानकारी दी गई वो काफी कम या गलत थी| इस युद्ध का युद्ध का प्रामाणिक हाल न मिलना, इतिहासानुरागियों और शोधकों के लिये खटकने वाली वस्तु थी। इसी कमी को पूरा करने के लिए इतिहासकार देवीसिंह मंडावा, ठा. सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़, ठा. सौभाग्यसिंह, भगतपुरा आदि प्रयासरत थे| आखिर ठाकुर सुरजनसिंह जी शेखावत इस युद्ध का प्रमाणिक इतिहास खोजने में सफल रहे| ठा. सुरजनसिंह जी शेखावाटी की इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना पर अनायास ही प्रमाणिक शोध सामग्री मिलने पर अपनी पुस्तक “मांडण-युद्ध” में लिखते है-
“शेखावत इतिहास विषयक सामग्री संकलन करने हेतु सन् 1968 ई. के दिसम्बर मास में बिसाऊ Bissau जाना हुआ। वहाँ बिसाऊ के ठाकुर रघुवीर सिंह के, जिनका सन् 1971 में स्वर्गवास हो चुका है, सौजन्य से उनका पुराना रेकार्ड रूम और संग्रहालय देखने का सुअवसर मिला। वहां एक बस्ते में कुछ हस्तलिखित गुटके बंधे हुये थे। सभी गुटके सुन्दर व साफ अक्षरों में लिखे हुये पढ़ने में आने जैसे थे। उसी बस्ते में एक छोटा हस्तलिखित गुटका ऐसा भी था जो पढ़ने में बिल्कुल नहीं आ रहा था। महाजनी घसीट में लिखा, बिना मात्रा के अक्षरों से युक्त जगह-जगह कटाफटा वह गुटका बिल्कुल बेकार सा मालूम हो रहा था। उसको अनुपयोगी समझकर अलग छांट दिया गया। मैंने उस गुटके को पढ़ने का प्रयास किया। कई अक्षरों को जोड़कर अनुमान से मात्रायें लगाकर जब उसे पढ़ा गया तो उसमें ऐतिहासिक व्यक्तियों और प्रमुख स्थानों के अनेक नाम पढ़े जाने पर मेरी जिज्ञासा उसे पूरा पढ़ने की बढी और मैंने उसी समय उस गुटके को किसी भी प्रकार पूरा पढ़ने का निश्चय कर लिया। उक्त गुटका मैं अपने साथ झाझड़ लेता आया और उसे पढ़ने का प्रयत्न जारी रखा। बारबार प्रयत्न करने पर अक्षर चल निकले। अक्षरों की आकृति एवम् मोड़ समझ में आ जाने पर मैने उसे दुबारा पढ़ना आरम्भ किया। दो चार छन्द पढ़ जाने पर ही ऐसा प्रतीत होने लगा मानो यदुनाथ सरकार के ‘मुगल साम्राज्य का पतन’ नामक ग्रन्थ से ही कोई घटनाक्रम पढा जा रहा हो । सारा गुटका पढ़ जाने पर उसमें लिखित अमूल्य ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त करके मुझे अपार हर्ष हुआ। गुदड़ी में छिपी लाल मुझे मिल चुकी थी। माण्डण युद्ध के पूर्वाऽपर के जानने के लिये कुंवर देवीसिंह मंडावा और मैं वर्षों से प्रयत्नशील थे।
अनायास ही माण्डण का युद्ध विषयक वे सारे तथ्य क्रमबद्ध रूप से इस गुटके से मिल गये। ‘ख्याल’ की तर्ज पर रचा गया यह माण्डण का युद्ध का वर्णन था, जिसमें युद्ध की पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डालते हुये-युद्ध का सांगोपांग वर्णन किया गया था। ‘ख्याल’ की तर्ज पर रची गई यह रचना यद्यपि साहित्यिक दृष्टि से उच्चस्तरीय नहीं है किन्तु उसमें अमूल्य और अप्राप्य ऐतिहासिक तथ्य भरे होने से वह बड़े महत्व की है। मात्रा रहित घसीट अक्षरों में लिखे गये एवम् अशुद्ध छन्दों में आबद्ध वे बहुमूल्य ऐतिहासिक तथ्य-जीर्णशीर्ण पुराने भद्दे पात्र में भरी स्वर्ण मुद्राओं की भांति दमक रहे हैं। उसका शीर्षक है:-‘‘अथ माण्डण का झगड़ा लिख्यते।’’
एक साधारण कम पढ़े लिखे व्यक्ति द्वारा जो साहित्यकार भी नहीं था, द्वारा रचित इस रचना द्वारा इतनी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी मिलने पर ठाकुर सुरजनसिंह जी लिखते है-‘रचना के साहित्यिक स्तर को देखने से ऐसा विदित होता है कि रचनाकार साहित्य और छन्द शास्त्र का पूर्ण ज्ञाता नहीं था, इसकी रचना में काव्य दोष भरपूर हैं। छन्द रचना में छन्द शास्त्र के नियमों के पालन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। हस्व दीर्ध की अशुद्धियों के लिये तो लेखन दोष के कारण कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कविता में दृश्य त्रुटियों के लिये, यह भी शंका व्यक्त की जा सकती है कि रचना के लेखक ने-जो साधारण पढ़ा लिखा और बिना मात्रा लगाये ही लिखने का आदि था- लिखने में गलतियां की हों और उसी के लेखन दोष से कविता का स्तर गिर गया हो उस समय में घटित ऐतिहासिक घटनाओं की पूर्ण जानकारी रखते हुये भी मीठुलाल अपनी रचना में स्पष्ट और सुन्दर ढंग से उनकी अभिव्यक्ति करने में असमर्थ रहा है।”
Mandan yuddh history in hindi
Jai Rajputana..Jai maa Bhawani ..Jai Shri Jhujhar ji Maharaj..