31.8 C
Rajasthan
Thursday, June 8, 2023

Buy now

spot_img

इसलिए कहा जाता है Maharao Shekhaji को साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक

शेखावाटी क्षेत्र, शेखावत वंश के प्रवर्तक Maharao Shekhaji को नारी सम्मान व साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है| महाराव शेखाजी ने एक स्त्री की मान रक्षा के लिए अपने ही निकट सम्बन्धी गौड़ राजपूतों से पांच वर्ष तक चले खुनी संघर्ष में ग्यारह युद्ध किये थे और आखिरी युद्ध में विजय के साथ ही अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, इसी उत्सर्ग ने उन्हें नारी अस्मिता और सम्मान का प्रतीक बना दिया| ठीक इसी तरह अफगानिस्तान से भारत आये पठानों के बारह कबीलों को बसने के लिए अपने राज्य के बारह गांव और उन्हें अपनी सेना में रोजगार दिया| उन्हें अपना पगड़ी बदल भाई का दर्जा देकर साम्प्रदायिक सौहार्द की मिशाल कायम की| महाराव शेखाजी के इस सुकृत्य के चलते उन्हें साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है|

यही नहीं Maharao Shekhaji ने इन पठानों के साथ एक पांच सूत्री समझौता भी किया ताकि भविष्य में आपसी सौहार्द नहीं बिगड़ सके, जो उनकी दूरदर्शिता का परिचायक है| शेखाजी की राजधानी नाण अमरसर के पास अरडकी गांव के तकिये (मठ) में शेखबुरहान चिश्ती नाम के फ़क़ीर रहते थे| शेखबुरहान इस क्षेत्र में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने आये थे| उस काल दिल्ली में बहलोल लोदी का शासन था, लोदी ने अफगानिस्तान के पठानों को नौकरी के लिए अपने यहाँ आमंत्रित कर रखा था अत: अफगानिस्तान के पठान कबीलों का भारत में आना लगा रहता था| ये बारह कबीले भी इसलिए इधर आये थे| उन्हें पता चला कि पास ही फ़क़ीर रहते है तब वे उनके दर्शनार्थ रुके|

उसी काल Maharao Shekhaji द्वारा राज्य विस्तार से आशंकित आमेर के राजा चन्द्रसेन जी के साथ विवाद चल रहा था| दोनों पक्षों के मध्य सैनिक संघर्ष भी हो चुके थे और बड़े युद्ध की सम्भावना थी| शेखबुरहान यह सब जानते थे| जब पठानों के 12 कबीले उनके पास दर्शनार्थ आये तब शेखबुरहान ने शेखाजी को बुलाया और उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर अपनी ताकत बढाने की सलाह दी| आमेर से युद्ध की आशंका के चलते व राज्य विस्तार के Maharao Shekhaji को अपनी सैन्य ताकत बढाने की आवश्यकता थी, अत: उन्होंने शेख की सलाह मानी और पठानों के 12 कबीलों को 12 गांव दिए और कबीले के हजारों सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया| साथ धार्मिक आचार-विचारों की भिन्नता के कारण भविष्य में कभी कोई विवाद ना हो उसके लिए दोनों पक्षों के लिए आचार संहिता बनाई व दोनों पक्षों से पालन करने की शपथ दिलाई| ये आचार-संहिता इस प्रकार थी-

१. Maharao Shekhaji और उनके पुत्र बारह बस्तियों के इन पठानों को अपने भाई बंधुओं की भाँती मानेंगे| दुर्भाग्य वश दोनों जातियों में से यदि कोई किसी दूसरे के हाथों मारा जावे तो उस बैर का बदला लेने का विचार कोई भी जाति नहीं करेगी|

२. बारह बस्तियों के पठान हिन्दुओं के धार्मिक पशु गाय, बैल और पक्षी मोर को ना तो मारेंगे और ना ही खायेंगे|

३. शेखाजी के भोजनालय में जहाँ पठान भी भोजन करते थे- झटके का मांस नहीं आने देंगे बल्कि हलाल किया मांस काम में लेंगे| मुसलमानों के लिए निषिद्ध सूअर (जंगली सूअर) का मांस भी ग्रहण नहीं करेंगे|

४.पठानों का झंडा नीले रंग का था| अब चूँकि वे शेखाजी के जागीरदार व सैनिक बन चुके हैं, इसलिए अलग झंडा रखने का कोई औचित्य नहीं रह गया| अब वे शेखाजी के पीत ध्वज को ही अपना ध्वज मानेंगे और उसके नीचे रहकर निष्ठा से लड़ेंगे| किन्तु पठानों की भावनाओं का आदर करते हुए शेखाजी ने अपने पीत ध्वज के चौतरफा नीली पट्टी का फेंटा (लपेटा) रखकर पठानों के नील ध्वज की स्मृति को बनाये रखेंगे|

आज बेशक कोई बढती धार्मिक कटुता के चलते Maharao Shekhaji के उक्त निर्णय का किसी तरह विश्लेषण करे पर शेखाजी ने उस वक्त साम्प्रदायिक सौहार्द का परिचय देते हुए ऐसी व्यवस्था भी की कि भविष्य में साम्प्रदायिक सौहार्द ना बिगड़े और पठानों को अपनी सेना में शामिल कर अपनी शक्ति बढाई और 360 गांवों पर स्वतंत्र राज्य के रूप में शेखावाटी की स्थापना की, जिसे उनके योग्य उत्तराधिकारियों ने समय समय पर बढ़ाकर विस्तृत किया|

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,805FollowersFollow
20,900SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles