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Friday, September 22, 2023

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आजाद भारत में कब तक विस्थापित रहेंगे महाराणा प्रताप ?

महाराणा प्रताप ने शक्तिशाली मुग़ल बादशाह अकबर से अल्प संसाधनों के सहारे स्वतंत्रता की रक्षा हेतु वर्षों संघर्ष किया, महल छोड़ जंगल जंगल भटके, सोने चांदी के बर्तनों में छप्पन भोग करने करने वाले महाराणा ने परिवार सहित घास की रोटियां खाई, पर अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया और लम्बे संघर्ष के बाद भी अपने से कई गुना शक्तिशाली अकबर की अधीनता नहीं स्वीकार की| उनके इसी संघर्ष का हवाला देते हुये कुछ दोहे सुनाकर क्रांतिकारी कवि केसरीसिंह बारहट ने १९०३ में लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दरबार में जाने से उदयपुर के तत्कालीन महाराणा फतेहसिंह को रोक दिया था –

पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |
(ईंसू) महाराणा’र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै ||

“भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की | मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके | इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है|”

यही कारण था कि देश की आजादी के आन्दोलन में स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्र्य चेता महाराणा प्रताप के संघर्षमय जीवन से प्रेरणा लेकर देश की स्वतंत्रता हेतु अपना सब कुछ बलिदान दे, स्वतंत्रता आन्दोलन को सफल बनाया| कितने ही स्वतंत्रता सेनानी अपने प्रेरणा स्रोत महाराणा का अनुसरण कर स्वतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पर हँसते हँसते चढ़ गये| आज भी जब देश की नई पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढाया जाता है तो महाराणा प्रताप को सर्वप्रथम याद किया जाता है, देश के नागरिकों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को राष्ट्रवादी प्रचारित करने के लिये भी मंच पर महाराणा का चित्र लगाया जाता है| राष्ट्रवाद का ढोंग रचने वाले लोग भी अपने आपको राष्ट्रवादी साबित करने के लिए अपने भाषणों में महाराणा प्रताप का नाम लेकर खूब गाल बजाते है|

स्वाधीनता के बाद राष्ट्र नायक महाराणा को कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा आदर देने हेतु देश के विभिन्न स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं लगाईं| उन प्रतिमाओं से आज भी देश की नई पीढ़ी राष्ट्र के स्वातंत्र्य संघर्ष में मर मिटने की प्रेरणा ग्रहण कर देश सीमाओं को सुरक्षित रखती है| देश की राजधानी दिल्ली में भी कई वर्षों पूर्व दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने इस महान राष्ट्र गौरव को सम्मान देने व उनकी स्मृति को चिरस्थाई बनाये रखने हेतु कश्मीर गेट स्थित अंतर्राज्य बस अड्डे का नामकरण महाराणा प्रताप के नाम पर किया गया| साथ ही अंतर्राज्य बस अड्डे के साथ लगे कुदसिया पार्क में महाराणा की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई| जो उधर से आते जाते हर राहगीर को दिखाई देती थी| इस तरह जीवन भर जंगल में रहकर स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहने वाले महाराणा प्रताप दिल्ली शहर में स्वातंत्र्य प्रेम का संदेश देने हेतु लोगों के बीच प्रतिमा के रूप में उपस्थित हुये|

पर महाराणा प्रताप को क्या पता था कि आजाद भारत में भी उन्हें फिर विस्थापित होना पड़ेगा ? उन्हें क्या पता था कि उनके नाम पर गाल बजाने वाले भी उनसे मुंह फेर लेंगे ? क्योंकि कश्मीरी गेट के पास बन रहे मेट्रो रेल के निर्माण के बीच में आने की वजह से उस मेट्रो रेल ने जिसने एक खास समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुए अपने निर्माण बजट में करोड़ों रूपये का इजाफा कर अपना निर्धारित रेल लाइन का रूट तक बदल दिया था ने महाराणा प्रताप की इस प्रतिमा को उखाड़ कर एक कोने में रख विस्थापित कर दिया जिसे राजस्थान व देश के अन्य भागों के कुछ राजपूत संगठनों व दिल्ली के ही एक विधायक के विरोध करने के बाद मूल जगह से दूर कुदसिया पार्क में अस्थाई चबूतरा बनाकर अस्थाई तौर पर स्थापित किया| पर आज प्रतिमा को हटाये कई वर्ष बीत जाने व मेट्रो रेल प्रशासन द्वारा प्रतिमा वापस लगाने की जिम्मेदारी लिखित में स्वीकार करने के बावजूद मेट्रो रेल प्रशासन ने इस प्रतिमा को सम्मान के साथ वापस लगाने की जहमत नहीं उठाई|

आज महाराणा प्रताप की प्रतिमा जहाँ अपने पुनर्वास के लिये मेट्रो रेल कार्पोरेशन के रहमोकरम पर बाट जोह रही है वहीँ उन कथित राष्ट्रवादियों, हिन्दुत्त्व वादियों और अपने उन वंशजों जो उनके नाम पर अपने गाल बजाते नहीं थकते, की और टकटकी लगाये कुदसिया पार्क के एक कोने में खड़ी अपने पुनर्वास का इंतजार कर रही है|

पर मुझे नहीं लगता कि महाराणा प्रताप की इस प्रतिमा को ससम्मान वापस प्रतिष्ठित करवाने हेतु वे कथित राष्ट्रवादी जो अपने भाषणों में महाराणा की वीरता के बखान कर गाल फुलाते नहीं थकते, वे कथित हिन्दुत्त्व वादी जो उन्हें हिंदुआ सूरज कह कर संबोधित करते है, उनके वे कथित वंशज होने का दावा करने वाले, जो उनके नाम पर आज भी अपना सीना तानकर चलते है, आगे आयेंगे|

क्योंकि कथित राष्ट्रवादियों को राष्ट्रवाद के नाम सिर्फ वोट चाहिये ताकि उन्हें सत्ता मिल जाये और वे अपना घर भरते रहे| उन्हें क्या लेना देना महाराणा प्रताप प्रतिमा से|

उन हिन्दुत्त्ववादियों को भी अपने हिंदुआ सूरज की प्रतिमा से क्या लेना देना ? क्योंकि महाराणा की प्रतिमा के विस्थापन से उनके धर्म पर कोई आंच थोड़ी ही आने वाली है ? क्योंकि उनकी नजर में हिन्दू धर्म पर आंच तब आती है जब पुलिस बलात्कार के आरोपी आसाराम जैसों के जेल में डाल देती है और इसे लोगों को बचाने के लिये वे हिन्दू धर्म पर आंच आने का प्रचार कर हंगामा कर सकते है|

उनके वंशज होने का ढोंग करने वाले राजपूत समाज को भी क्या लेना देना ? क्योंकि वे तो इस व्यवस्था में अपने आपको किसी लायक ही नहीं समझ रहे फिर उन्हें जय राजपुताना आदि नारे लगाने से फुर्सत मिले तब तो इस और नजर डाले|

राजस्थान के उन राजपूत संगठनों को भी महाराणा के स्वाभिमान से क्या देना देना ? क्योंकि उनका काम तो चुनावों में किसी दल के साथ राजपूत जाति के उत्थान के नाम पर जातीय वोटों का सौदा करना मात्र रह गया है|

और मेरा आंकलन सही नहीं है तो आइये हम सब मिलकर महाराणा प्रताप की प्रतिमा को ससम्मान वापस पुनर्स्थापित करने हेतु मेट्रो रेल प्रशासन पर दबाव बनाये और यह साबित कर दे कि – हम राष्ट्रवादी सिर्फ महाराणा के नाम पर गाल नहीं फुलाते, हम हिन्दुत्त्व वादी व जातिवादी संगठन सिर्फ वोटों से जुड़े मुद्दे ही नहीं उठाते, हम उनके वंशज होने का दावा करने वाले सिर्फ उनके नाम पर गर्व से सीना तानकर ही नहीं चलते, समय आने पर अपने व अपने प्रेरणा स्रोत के स्वाभिमान के लिये दिल्ली को भी हिला सकते है |

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16 COMMENTS

  1. मूर्तियों एवं नामकरणों से जनता उब सी गई है, अब तो इन्हें हटाने की सोचनी चाहिए…..

  2. इस मुद्दे पर आप लोगो को अपने साथ चड़ाई क्यों नहीं करते डिपार्टमेंट पर … ऐसे यह लोग कान न धरेंगे … 🙁

    महाराणा प्रताप को शत शत नमन |

  3. राजपुतों के नेता एक दुसरे पार्टी आदी से जुडे नही हैं और जो हैं भी वो अपने ही राज्य तक सिमीत हैं ईसलिए एसा हो रहा है और दुसरी बडी वजह है पैसे की कमी।

    राजनाथ सिंह आदी जो हैं भी वो सायद सिर्फ वोट मांगने के लिए हैं।

  4. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (3 से 9 जनवरी, 2014) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग – चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग – चिठ्ठा

  5. बुत बना लगाना एक चलन हो गया है पर राष्ट्र के अस्तित्व के लिए जो लोग कुर्बान हो गए उनकी मूर्तियां लगाना व उनको सम्मान देना बुरी बात नहीं.आज यही मूर्ति इंदिरा या राजीव गांधी की होती तो वापस लग भी जाती और न लगती तो हंगामा मच गया होता.एक समय के बाद पीढ़ियां अपने पुरखों व आदर्शों को भूल जाती है , भूल जाना लगती हैं.जो उचित नहीं. राणाप्रताप जैसे योद्धा को उचित सम्मान मिलना ही चाहिए.

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