मारवाड़ राज्य के धुंधल गांव के एक सीरवी किसान के खेत में एक बालश्रमिक फसल में सिंचाई कर रहा था पर उस बालक से सिंचाई में प्रयुक्त हो रही रेत की कच्ची नाली टूटने से नाली के दोनों और फैला पानी रुक नहीं पाया तब किसान ने उस बाल श्रमिक पर क्रोधित होकर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उसे टूटी नाली में लिटा दिया और उस पर मिट्टी डालकर पानी का फैलाव रोक अपनी फसल की सिंचाई करने लगा|
उसी वक्त उस क्षेत्र के बगड़ी नामक ठिकाने के सामंत ठाकुर प्रतापसिंह आखेट खेलते हुए अपने घोड़ों को पानी पिलाने हेतु उस किसान के खेत में स्थित कुँए पर आये तब उनकी नजर खेत की नाली में मिटटी में दबे उस युवक पर पड़ी तो वे चौंके और उसे मिटटी से निकलवाकर अपने साथ सोजत ले आये व उसकी शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की| यहीं उस बालक का जीवन एक नई दिशा की और बढ़ने लगा और कालांतर में वही युवक पढ़ लिखकर अपनी योग्यता, वीरता, बुद्धिमता व अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर राजस्थान का एक परम तेजस्वी कवि के रूप में विख्यात हुआ, तथा जिस तरह से उस कवि को उस वक्त कविता के नाम पर जितना धन, यश, और सम्मान मिला उसे देखते हुए राजस्थान के इतिहासकार, साहित्यकार, कवि उस तेजस्वी कवि के महत्व की तुलना हिंदी के कवि भूषण से करते हुए उसे भूषण से भी बढ़कर बतातें है|
जी हाँ ! मैं बात कर रहा हूँ जसोल- मालाणी के पास आढ़ा नामक गांव में चारण जाति की आढ़ा शाखा के मेहा जी चारण के घर १५३५ ई. में जन्में महाकवि दुरसा आढ़ा की| दुरसा आढ़ा जब छ: वर्ष के थे तब ही उनके पिता ने सन्यास ले लिए था अत: पिता की अनुपस्थिति में घर चलाने हेतु बचपन में ही उन्हें मजबूरी में एक किसान के खेत में बालश्रमिक के तौर के पर कार्य करना पड़ा जिसका जिक्र मैं ऊपर कर चूका हूँ|
दुरसा जब पढ़ लिखकर योग्य हो गए तो वे सिर्फ एक श्रेष्ठ कवि ही नहीं थे, उनकी तलवार भी उनकी कलम की तरह ही वीरता की धनी थी, उनकी बुद्धिमता को देखते हुए बगड़ी के सामंत ठाकुर प्रताप सिंह ने उन्हें अपना प्रधान सलाहकार व सेनापति नियुक्त किया व पुरस्कार स्वरूप धुंधाला व नातलकुड़ी नामक दो गांवों की जागीर भी प्रदान की|
ई.सन १५८३ में एक बार अकबर ने सिरोही के राव सुरताणसिंह के खिलाफ जगमाल सिसोदिया (मेवाड़) के पक्ष में सेना भेजी, मारवाड़ राज्य की सेना ने भी जगमाल के पक्ष में सुरताण सिंह के खिलाफ चढ़ाई की उस सेना में बगड़ी ठाकुर प्रतापसिंह भी दुरसा आढ़ा सहित युद्ध में भाग लेने गए| आबू के पास दताणी नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का मुकाबला हुआ जिसमें अपने युद्ध कौशल को प्रदर्शित करते हुए दुरसा आढ़ा घायल हो गये, संध्या समय जब सुरताण अपने सामंतों सहित युद्ध भूमि का जायजा लेते हुए अपने घायल सैनिकों को संभाल रहा था तभी उसके सैनिकों को घायलावस्था में दुरसा मिला वे उसे मारने ही वाले थे कि दुरसा ने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह एक चारण है और प्रमाण के तौर पर उसनें तुरंत उस युद्ध में वीरता दिखा वीरगति को प्राप्त हुए योद्धा समरा देवड़ा की प्रशंसा में एक दोहा सुना डाला|
राव सुरताणसिंह ने उसके दोहे से प्रसन्न हो और चारण जाति का पता चलने पर घायल दुरसा को तुरंत अपने साथ डोली में डाल सिरोही ले आये और उनके घावों की चिकित्सा कराई, ठीक होने पर राव सुरताणसिंह ने दुरसा की प्रतिभा देखते हुए अपने यहाँ ही रोक लिया उन्हें अपने किले का पोलपात बनाने के साथ ही एक करोड़पसाव का इनाम देने के साथ पेशुआ, जांखर, ऊड वा साल नामक गाँव दिए| उसके बाद दुरसा सिरोही में ही रहे|
महाकवि दुरसा ने तत्कालीन मुग़ल शासकों की राजनैतिक चालों को समझ लिया था और वे अपनी कविताओं के माध्यम से शाही तख़्त को खरी खोटी सुनाने से कभी नहीं चुकते थे| राजस्थान में राष्ट्र-जननी का अभिनव संदेश घर घर पहुँचाने हेतु उन्होंने यात्राएं की उसी यात्रा में जब वे मेवाड़ पहुंचे तो महाराणा अमर सिंह ने बड़ी पोल तक खुद आकर दुरसा का भव्य स्वागत किया| राजस्थान का सामंतवर्ग दुरसा आढ़ा की नैसर्गिक काव्य प्रतिभा के साथ उनकी वीरता पर भी समान रूप से मुग्ध था यही कारण था कि राजस्थान के राजा महाराजा उनका दुरसा का समान रूप से आदर करते थे|
राजाओं द्वारा प्राप्त पुरस्कार को यदि काव्य-कसौटी माना जाय तो इतिहासकार कहते है कि दुरसा जैसा कवि अन्यत्र दुष्प्राप्य है| महाकवि दुरसा के स्फुट छंदों में दृढ़ता, सत्यप्रियता एवं निर्भीकता का स्वर स्पष्ट सुनाई देता है| स्फुट छंदों व प्रयाप्त मात्रा में उपलब्ध फुटकर रचनाओं के अलावा दुरसा द्वारा रचित तीन ग्रंथों का उल्लेख प्राय: किया जाता है- “विरुद छहतरी, किरतार बावनी और श्री कुमार अज्जाजी नी भूचर मोरी नी गजगत|”
कवि दुरसा ने दो विवाह किये थे और अपनी छोटी पत्नी से उन्हें विशेष प्रेम था| दोनों पत्नियों से उन्हें चार पुत्र- भारमल, जगमाल, सादुल और किसना प्राप्त हुए| बुढापे में उनके जेष्ठ पुत्र ने उनसे संपत्ति को लेकर विवाद किया तब उन्होंने कहा- एक तरफ मैं हूँ दूसरी और मेरी संपत्ति, जिसको जो लेना हो ले ले| यह सून पहली पत्नी से उत्पन्न सबसे बड़े पुत्र भारमल ने उनकी संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया, बची खुची संपत्ति के साथ छोटी पत्नी के बेटे किसना ने पिता के साथ रहना स्वीकारा अत: दुरसा अपनी वृद्धावस्था में मेवाड़ महाराणा द्वारा दिये गांव पांचेटिया में अपने अंतिम दिन व्यतीत करते हुए १६५५ ई. में स्वर्गवासी हो गये|
अचलगढ़ के एक देवालय में कवि दुरसा आढ़ा की एक पीतल की मूर्ति भी स्थापित है जिस पर १६२८ ई. का एक लेख उत्कीर्ण है| किसी कवि की पीतल की मूर्ति का निर्माण की जानकारी इससे पूर्व कभी नहीं मिली|
महाकवि दुरसा की नजर में घोर अंधकार से परिपूर्ण अकबर के शासन में जब सब राजा ऊँघने लग गए किन्तु जगत का दाता राणा प्रताप पहरे पर जाग रहा था| राणा प्रताप के प्रण, पराक्रम व पुरुषार्थ पर मुग्ध कवि ने लिखा-
अकबर घोर अंधार, उंघाणा हींदू अवर|
जागै जगदातार, पोहरै राण प्रतापसी||
सिरोही के राव सुरताणसिंह की प्रशंसा में –
सवर महाभड़ मेरवड़, तो उभा वरियाम|
सीरोही सुरताण सूं, कुंण चाहै संग्राम ||
आगरा के शाही दरबार में एक मदमस्त हाथी को कटार से मारने वाले वीर रतनसिंह राठौड़ (जोधा) की प्रशंसा में कवि ने कहा-
हुकळ पोळी उरड़ियों हाथी, निछ्टी भीड़ निराळी |
रतन पहाड़ तणे सिर रोपी, धूहड़िया धाराळी ||
पांचू बहंता पोखे, सांई दरगाह सीधे|
सिधुर तणों भृसुंडे सुजड़ी, जड़ी अभनमे जोधे||
देस महेस अंजसिया दोन्यौ, रोद खत्री ध्रम रीधो|
बोहिज गयंद वखाणे आंणे, डांणे लागे दीधो ||
महाकवि व् वीर दुरसा के बारे में जानकारी उपलब्द करवाने पर आभार ।
बहुत ही जानकारी परक आलेख, आभार आपका.
रामराम.
महाकवि दुरसा आढ़ा जी के विषय में बेहतरीन जानकारी प्रस्तुत करने के लिए आपका सहर्ष धन्यवाद सर।।
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दुरसा आढ़ा जी के विषय में बेहतरीन जानकारी ….
यह जानकारी पहली बार मिली . . .
आभार !
रोचक जानकारी, पहली बार पढ़ा।
DURSAJI KE GAVO KE NAME ME AAP NE VASAL LIKEHA HE YE VASAL NAHI VARAL HE
यह आढ़ा शायद हमारे गाँव के पास वाला गांव है जिसे आम बोल चाल में आढ़ा कहते है लेकिन सही नाम असाड़ा है। यह गाँव जसोल और मूठली के बिच में मूठली से पांच किमी दूर है।
बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हुई।
हार्दिक आभार
बहुत बहुत आभार…. पहली बार पढा ….
राजस्थान का वह कवि जिसकी पीतल की मूर्ति अचलगढ़ के अचलेश्वर मंदिर में विद्यमान है , वे कौनसे है
उत्तर में muhnod neensi sahi hai kay ya
Dursa aada hai
Dursa aada