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Friday, June 9, 2023

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लोक देवता गोगाजी

लोक देवता गोगाजी ‘पीर के रूप में समूचे भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं। चौहान वंश में “धंधरान धंगजी’ नामक शासक हुए जिन्होंने धांधू (जिला-चुरू) नगर बसाया था। राणा धंग के दो रानियां थी। पहली रानी से दो पुत्र हर्ष और हरकरण तथा एक पुत्री जीण हुए। सीकर से 10 कि.मी. दूर दक्षिण पूर्व में हर्ष एवं जीण की पहाड़ियाँ इनकी तपोभूमि रही है। यह स्थान जीणमाता के रूप में पूजनीय है।दूसरी रानी से तीन पुत्र हुए कन्ह, चन्द और इन्द। धंग की मृत्यु के पश्चात् कन्ह; कन्ह के बाद उसका पुत्र अमरा उत्तराधिकारी हुआ। अमरा के पुत्र झेवर (जेवर) हुआ। अमरा ने अपने युवा पुत्र की सहायता से ‘ददरेवा को अपनी नई राजधानी बनाया।

महाकवि बांकीदास ने गोगाजी को झेवर का पुत्र बताया है। डॉ. तेस्सीतोरी ने भी जोधपुर में एक प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ को देखकर उद्धरण दिया है कि ‘चवांण जेवर तिणारी राणा खेताब थी गढ ददरवै राजधानी थी।”

गोगाजी की माता का नाम बाछल था। बाछल के कई वर्षों तक संतान नहीं हुई। उन्हें गुरु गोरखनाथ ने आशीर्वाद दिया और फलस्वरूप बाछल की कोख से गोगाजी का जन्म हुआ। एक बार गोगाजी पालने में झूल रहे थे तब एक सर्प उन पर फन फैला कर बैठ गया। माँ व पिता ने जब उसे दूर करने का प्रयास किया तो गोगाजी ने कहा कि “यह तो मेरा साथी है। इसे मेरे साथ खेलने दो।”

झेवर की मृत्यु के पश्चात् गोगाजी वहां के शासक हुए। गोगाजी के समय राज्य की सम्पूर्ण जनता सुखी थी जिससे इनके जीवनकाल में ही उनकी यशगाथा फैल गयी लोक मान्यता है कि पाबूजी राठौड़ की भतीजी केलम का विवाह गोगाजी के साथ हुआ था। गोगाजी के शासक बनने पर धंध के वंशजों में गृह युद्ध हुआ। गोगाजी के मौसेरे भाई अर्जन सर्जन ‘ददरेवा प्राप्त करने के लिए गोगाजी से युद्ध करने आ पहुंचे। अर्जन सर्जन सगे भाई थे और इन्हें ‘जोड़ा’ कहा जाता है। इन्हीं के नाम पर जोड़ी गाँव (चुरू) आबाद हुआ।

ददरेवा से उत्तर की ओर खुड़ी नामक गाँव के पास एक ‘जोड’ (तालाब के पास छोड़ी हुई भूमि) पर गोगाजी और अर्जन-सर्जन के बीच युद्ध हुआ और वहीं ये वीर गति को प्राप्त हुए। इस स्थान पर पत्थर की दो मूर्तियां प्रमाण स्वरूप आज भी विद्यमान है और भोमिया के रूप में इनकी पूजा होती है|

तत्कालीन समाज में सम्पूर्ण भारत की राजनैतिक दशा शोचनीय थी। लुटेरे महमूद गजनवी के आक्रमण बार बार हो रहे थे। 1025 ई. में महमूद सोमनाथ का मंदिर लूट कर वर्तमान राजस्थान के उत्तरी भाग से गुजर रहा था गोगाजी जैसा वीर पुरुष यह कैसे सहन कर सकता था ? जन धन एवं असहाय जनता की रक्षा के लिए गोगाजी प्राणापण से तैयार रहते थे। गोगाजी ने अपने पुत्र पौत्रों सहित आक्रांता का पीछा करते हुए उसे युद्ध के लिए ललकारा। वर्तमान गोगामेड़ी’ नामक स्थान पर महमूद गजनवी एवं गोगाजी की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ। विदेशी आक्रांता को नकलची इतिहासकारों ने साहसी सैनिक तक की उपमा दे दी है।

अपने चंद साथियों और पुत्र पौत्रों के साथ गोगाजी ने उस विदेशी आक्रांता को धूल चटा दी। कुछ समय तक तो महमूद भी निर्णय नहीं कर सका कि यह कोई सांसारिक योद्धा है या साक्षात यमराज ।

कर्नल टॉड ने लिखा है- ‘गोगा ने महमूद का आक्रमण रोकने को सतलज के किनारे अपने सौंतालीस लड़कों समेत जीवन को न्यौछावर किया था।’

गोगाजी के वीरगति प्राप्त हो जाने पर उनके भाई बैरसी का पुत्र उदयराज ददरेवा का राजा बना। उदयराज के बाद जसराज, केसोराई, विजयराज, पदमसी, पृथ्वीराज, लालचन्द, अजयचन्द, गोपाल, जैतसी, पुनपाल, रूपरावन, तिहुपाल और मोटेराव ‘ददरेवा’ के राणा बने। मोटेराव के समय ददरेवा पर फिरोज तुगलक का आक्रमण हुआ तथा मोटेराव के तीन पुत्रों को मुसलमान बना दिया गया परन्तु चौथा पुत्र जगमाल हिन्दू रहा।
बड़ा पुत्र करमचन्द था जिसका नाम कयाम खाँ रखा गया। करमचन्द एवं उसके भाइयों के वंशज कयामखानी कहलाए। ददरेवा का शासक जगमाल बना तथा कयाम खाँ ने शेखावाटी पर अपना अधिकार कर लिया। इन्हीं के वंशजों द्वारा गोगाजी को पीर कहा जाने लगा। यह नाम तत्कालीन समय में लोकप्रिय हुआ जो वर्तमान में जाहरपीर (जहाँपीर) के नाम से सुप्रसिद्ध है।
गोगामेडी उत्तर रेलवे की हनुमानगढ सादुलपुर लाईन पर मुख्य स्टेशन तथा हनुमानगढ जिले की पंचायत समिति नोहर का प्रमुख गाँव है। गोगा नवमी का त्यौहार मारवाड़ के प्रत्येक गाँव में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी व नवमी को गोगामेड़ी में बड़ा भारी मेला भरता है। वर्ष 1995 में यहां पाँच लाख श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुँचे थे।

मारवाड़ में एक कहावत है ‘गाँव-गाँव गोगो अर गाँव-गाँव खेजड़ी। गोगाजी को नाग देवता के रूप में पूजते हैं तो कहीं केसरिया कंवरजी के रूप में, हर गाँव में एक थान (चबूतरा) मिल जायेगा जिस पर मूर्ति स्वरूप एक पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है। यही गोगाजी का थान माना जाता है। यहां नारियल, चूरमा, कच्चा दूध, खीर का प्रसाद बोला जाता है। बचाव के लिए घर के चारों ओर कच्चे दूध की ‘कार निकाल दी जाती है। जनमानस में ऐसा विश्वास है कि ऐसा करने पर घर में सर्प प्रवेश नहीं करता। सर्प को केसरिया कंवरजी की सौगन्ध भी दी जाती है। “हलोतिये’ के दिन नौ गाँठों वाली राखड़ी ‘हाळी’ और ‘हळ दोनों के बाँधी जाती हैं जिसे शुभकारी माना जाता है।

गोगाजी का लोक-गीत
मेवड़ला अंधारी जी रात
गोगो धरमी फिर ओ उतावळी जी महारा राज कंवार
पूछे गोगो धरमी जी की माय
कुण कुण गोगा धरमी धोकियो म्हारा राज कंवार
घर घर रांदी गुदळी जी खीर
घर घर गोगो धरमी धोकियो जी महारा राज कवार
आठसरी नौ गांठ
बांधो गोगाजी री राखड़ी जी महारा राज कंवार

श्रद्धालु भक्तों द्वारा गोगाजी का गीत बड़े उमाव से गाया जाता है
ओ पीर म्हनै तेरो उमावो ओ
पकड़ पछाड़यौ नो रंग बादस्या ओ राणो
छाती में घुड़ले रासूम
ओ पीर महनै उमावो ओ

डा.महिपालसिंह राठौड़ द्वारा लिखित “लोक देवता पाबूजी” पुस्तक से साभार

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