रियासती काल में आक्रान्ताओं द्वारा वर्षों किलों को घेरने के बाद उनमें खाद्य सामग्री का अभाव हो जाता था| जीतने की जब आशा नहीं बचती तब राजपूत जौहर और साका कर युद्ध में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया करते थे| किले में बड़ी चिता सजा कर विकराल अग्नि में महिलाओं द्वारा कूद पड़ने को जौहर कहा जाता है और किले के दरवाजे खोल दुश्मन पर आत्मघाती हमला कर अपने प्राणों का उत्सर्ग करने को साका कहा जाता है| जौहर के बारे में आम धारणा है कि जब जीतने की गुन्जाईस नहीं होती थी तब महिलाएं इसलिए जौहर करती थी कि हार के बाद उनके साथ अपहरण, बलात्कार या बेइज्जती की घटना ना हों|
लेकिन यह सत्य नहीं है कि उपरोक्त कृत्यों के डर से ही जौहर होते थे| यह डर सिर्फ मुस्लिम आक्रान्ताओं के हमले के समय ही रहता था, जबकि इतिहास में ऐसे जौहर भी अंकित है जहाँ जौहर – साका करने वाले भी राजपूत थे और आक्रान्ता भी राजपूत ही थे| ऐसे युद्धों में अनेक महिलाएं शत्रुओं की बहन बेटियां होती थी अत: अपहरण, बलात्कार, जबरन शादियों का कोई डर ही नहीं होता था| बावजूद स्त्रियाँ जौहर की ज्वाला में कूद पड़ती थी|
वस्तुत: जौहर करने वाली क्षत्राणियों की मनोभावना युद्ध में क्षत्रियों के बराबर बलिदान देने की होती थी| जहाँ पुरुष लड़कर प्राणों का बलिदान करते थे, उनके बराबर स्त्रियाँ भी अग्नि में अपनी आहुति देकर अपने प्राणों का उत्सर्ग करती थी| फिर एक का जीवित रहना भी वे व्यर्थ समझती थी इससे मरना श्रेयष्कर समझती थी| इतिहास के आईने में ऐसा जौहर यदुवंशी भाटियों ने सन 841 ई. में किया किया था| हरि सिंह भाटी द्वारा लिखित “पूगल का इतिहास” के अनुसार –
“तणोत के राव तणुजी ने अपने जीवनकाल में ही राज्य की बागडोर अपने पुत्र विजयराज को सौंप दी और खुद भक्ति भाव में लग गए| विजयराज अपने पांचवर्षीय राजकुमार देवराज को भटिंडा के पंवार राजा के आग्रह पर उनकी पुत्री से ब्याहने गए| विवाह के पश्चात् पंवारों ने षड्यंत्रपूर्वक बारातियों सहित विजयराव को मार दिया और फिर तणोत पर आक्रमण कर दिया| इस आक्रमण का मुकाबला वृद्ध तणुजी ने किया| उनके महत्त्वपूर्ण योद्धा बारात में मारे गए थे| पंवारों व वराहों की सम्मिलित सेना के आगे तणुजी का सैन्यबल कम था| ऐसे में तणुजी के नेतृत्व में भाटियों ने जौहर और साका करने का निर्णय लिया| किले की महिलाओं में जौहर स्नान किया और भाटी वीरों ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए साका कर अपने प्राणों का उत्सर्ग किया| पंवारों की सेना जीत कर जब किले में घुसी तो उसे अपनी ही बहन, बेटियों की राख हाथ लगी, जिसे उन्होंने चुटकी भर माथे पर लगाया|”
सन 841 ई. में घटी इस घटना से साफ़ जाहिर है कि जौहर भविष्य के डर से नहीं, बल्कि आत्मबलिदान की भावना से प्रेरित होते थे| उक्त जौहर में भाग लेने वाली ज्यादातर महिलाएं आक्रान्ताओं की बहन, बेटियां थी ऐसे में उनके साथ अपहरण, बलात्कार, जबरन शादियाँ आदि घटनाओं का होने का कोई डर नहीं था|