कांई भणियां गुणियां नै कांई अणभणियां सगळा मिनख अेक भरम पाळियां बैठा देस सूं है कै भारत सूं पातसाई अर राजासाई उठ गई। अंगरेज आपरा बोरिया बिछावणां करनै घरै गया। गुलामी सुं पिण्ड छूटौ। छै सौ रै अडै़ गड़ै देसी रजवाड़ां रा राजावां रौ खूटौ टूटौ। लोह लाट सरदार बल्लभभाई पटेल सांयत रै साथै राजावां नै पंपोळ, बुचकार, हेत, हिमळास दिराय, आंख काढ़, डराय, धमकाय अर मनाय नै रियासतां री न्यारी न्यारी सीवां नीवां नै दुड़ाय, काट-छांट कतर नै अेकमेक कर दीन्हीं। पछै ठिकाणां रूप खाड़ां-खोचरां, गबलारां बेझकां मांथै पाटौ फिराय नै रजवाड़ां रै समै बणियोड़ा दड़ां-रड़ां, टीबां, भरां नै भरनै, बूर नै सपाट मैदान सा नूंवां पड़गनां बणाय दिया । राजा लोग आपरी लांगां सांवळ टांक इज नीं पाया हा कै मोटा-मोटा खेती फार्मा माथै भी गैबरौ धमाकौ हुवण री बात चाली, पर राज नेतावां री मौळा ई सूं बात नीं बैठी। अबै देस में नीं राजा रह्या नीं रजवाड़ा, नीं लाग नीं बाग, नीं बैठ नीं बेगार, नीं रेख नीं चाकरी, ठाकरी रा सारा नाड़ा-जूंण टूट गया। लोकतन्त्र री थरपणां रै सागै आखा मुलक में बरौबरी रौ पांतियौ बिछ गयौ । वडा पणां रां बाजोट, दरीखानां री दरियां, छतर चंदर नै पत्तर प्याला अेकमेक बरौबर गिणीजण लागा। चौबदारां री चौबां, छड़ीदारां री छडिया रा सोनां रूपां रा पात सोनापीटां रै घरै गया। छत्रधारियां छत्राळां रा छत्र वैसांख जेठ रा भगूलियां री भांत नी जांणै कणां छांऊं म्यांऊ हुवा। खुर खोज इज नी लाधौ। वै उड़नै कटै गया ठां इज नीं पड़ियौ, जांणी भूत री ज्यूं विलाय गया कै अलोप है गया। अबै कोडीधज नै करोड़ीधज में किणी जात, भांत, रीत रौ अळगाव आंतरौ कोय रह्यौ नीं। करोड़पती अर गरीब गुरबा दोनां नै राज, समाज काज, पाज में समबड़ता री ठौड़ मिळ गई, सगळी भांत, पांत, दुभांत मिट गई। पण अजै तांई इण में धणखरौक भरम, नै भुलावौ लखावै है। जिका भोटा-मोटा गबला रा लोकतन्त्र में नरा घड़च्छा कर राखिया है उणा रै कारी कुटका दियां बिना बाजौ पार पड़तौ नीं लखावै। लोकतन्त्र री काया में उपड़ियोड़ा मोटा-मोटा गड़, गूंमड़ा, फोड़ा फुणसियां रै जद तांई चीरा नीं पाटा-पीड़ नीं हुवै तद ताई साज मांदगी मिटणी घणी दोरी लखावै, भरिया रीता व्हैबाला नासूर मिटियां बिना लोकतन्त्र रौ आजार दोरौ मिटतौ लागै।
राज रा कानून कायदा, नेम-नीत-रीत में सगळा मिनख बरौबर गिणीजै। इज दरुजै सगळा लोग(बड़ सकै द्य निकल सकै । अेक जाजम माथै सगळा जम सकै, रम सकै। थम सकै। मम सकै। किंणी तरै रौ भेदभाव, ऊंच-नीच नीं रह्यौ, न्याव-पत्याव, थ्याव सैंग, में अेक सारीखौ हक हासल मिळ गयौ। पण, हाथीरा दांत दिखावण में खावण में न्यारा-न्यारा हुवै। हाथ री पांच आगळ्यां इज अेक समान नीं हुवै, कोई नान्ही कोई मोटी-छोटी, पछै मिनख अेक सारखौ कठै हुयौ, कानून तौ रीत रौ रायतौ है। फेरा तौ फिरता फिरै भोगै सौ भरतार। सौ बापड़ौ कानून कांई करै। कानून कोई अदीठ चक्र तौ है कोनी जिकौ जुलमी नै देख सकै अर उठै इज काठ कोरड़ा देय गेलै घाल देवै। कानून तौ पांगळ हुवै। कानून नीं तौ आप मतै चालै नीं पगां सू हालै ठौड़ रौ ठांव है। कोई जूती नै रिकसावै उठी नै रिकस जावै। पांगळौ इज नीं अैड़ौ बोळौ हवै कै घणा लोग बौवाड़ौ मारै। चिरल्या मेलै। फूकरड़ा करै जद कठैई पसवाडौ फेरै। आंख ऊघाड़ै। नींद खुलै। न्याव दीठ रौ तौ निरंध इज हुवै। रात दिन रातींधौ हुयोड़ौ रेवै, बीजा कोई मिनख सायदी देवै नै आंख उघाड़ै। सरदियौ करै जणां कठैई दीखबा लागै। सरदियौ गवाई अर उकील दिखावै। सांची कही है कै चील रा बच्चिया री आंखियां सोना री कोई चीज दिखावै जद खुलै। उणां री आंख उघाड़ण तांई बापड़ी चील कठैई सूं सोना री बसत लेय नै आवै, सो कानून री आंख उघाड़ण तांई सायदीदार नै गेला खरच अर उकील नै मैनतानौ दियां इज धाकौ धकै। नीं तौ चील रा बच्चिया ज्यूं कानून री आंख मीचियोड़ी इज रैवै। जे उकील अर गवाई तांई सुबरण नीं हुवतौ आंधा, पांगळा, अर बोळा कानून रौ भौं इज बिगड़ जवतौ। कंुण लाठी रौ सारौ देय नै खोटौ पाटौ कढातौ। हाल्यौ डोल्यौ करतौ। बारै भींतर आवण जावण रौ इज फोड़ौ पड़तौ। भंूडौ हाल व्हैतौ। पण, कानून रै खातर उकील अर सायदीदार श्रवणकुमार इज जनमिया जिक पौथा रूपी कावड़ में कानून मां-बाप नै लियां बगै है। गाडौ गुड़क रहयौ है। नीं तौ बिना दीठ कांई देखतौ। बिना पगां कींकर चालतौ। जमारौ इज कानून रौ अहळौ जावतौ। इतरी बात हुंता थकां इज लोग कैवै कै न्याव रा कपाट सगळां ताई खुला है। पण, न्याव भी भाग में लिखियोड़ मिलै। दाख पाकै जद कागलां रै कंठा में गाँठ हुजावै। सारी थोक भोग-भाग प्रवांण मिळै। हजार मण रौ लाटीौ पड़ियौ रैवो पण बिना झोळी रौ फकीर कांई ले जावै। तिंवार व्रत री कांणिया में आवै है कै सिवजी नै पारबतीजी एक दिन म्रतलोक में आवण रौ मतौ कियौ। दोनंू आपरी मोय कैलास सूं चालिया। गेला में दोनां अेक डोकरा-डोकरी नै सांमौ आवता देखिया। डोकरा-डोकरी री गरीबी नै सरीर री माड़ी हालत देखनै पारबतीजी रौ मन पसीज गयो। दया आयगी। वै सिवजी नै कह्यौ-दीनदयाल ! आं गरीब माथै महर करौ अर कोई अैड़ी चीज देवौ जिण सूं आं रौ दाळद छूटै। अर सावळ गतगेला सूं आपरी उमर रा छैला दिन औछा कर सके। खाबा-पीबा, रहबा, औढ़बा, पैरबा रा फोड़ा मिट जावै। मिनखा जूंण पाय नै दुखरै सिवाय आं नै काई मिल्यौ। सिवजी उथलौ देवता थका कह्यौ-गोरज्या ! तूं भोळी है। वेहमाता इणां रा भाग में फोड़ा पड़णां इज लिखिया है। उण रा घालिया आखर कुंण मेट सकै है। पण, पारबतीजी तौ नारी जात, हठ मांड बैठा।
जदि राज कहणी अर करणी में सांच बरतणी चावै अर नेक नीत सूं अजोगती बातां मेटणी चावै तौ कई बातां तौ अैड़ी है जिकी साफ हुवती पळ घड़ी लागै। सूरज री भांत चमकती नै काच री रीत पळकतै खोट कपट नै मिटाणै में जेज लागै इज कांई ? जिका काम सरकार पांण चालै अर जिका भ्रस्टाचार रा घोड़ळा री रासां राज रै हाथां में है उणां बैछाडू-टारड़ा नै कानून री डोरी खीचणै री इज ढील है। वै आपै इज राह पकड़ लेसी। नीतर तौ सांपां रै सांप पाहुणा नै जीभां री लपालोळ । सौ कांई। सौ सरकार नै जनता रै खातर अैड़ा अड्डा, अखाड़ा, मठां, अस्तलां माथै छापा नांख नै आ मेवासा नै तोड़ नांखणा चाहिजै। सरकारी कोथळी रा टक्का माथै घणा लोग बिना हाथ पग मारिया इज मूंछ फरकाई रा हजारां माथै हाथ साफ करै अर ठरका रै साथ आप री- चौधर कर रह्या इज है। आ मुफतिया नै पसीनां री कमाई माथै जीवणौ सिखाणौ सरकार अर पिरजा दोनां री सावचेती पर निरभर करै। दोनां नै ई अैड़ा बिगडैल आंकस, मद आया मैंगळा रै लारै सबका गड़दार लगायां इज पार पड़सी। इंयां मीठा गटका खावता कहवण सुणण सूं कदेई गैलै थोड़ा इज आवै। राज आं गंठकटां नै देखा कियां काबू में लेवै । नीतर तौ-
ना क्यूं लेणा देवणा, ना क्यूं खांण न पान।
सांपां री मिजलस्स में, जाझौ खरच जबान।।
भांडा री भैंसिया सोटां रै सुभाव हुवै है।