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Wednesday, June 7, 2023

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कहाँ गया आपातकाल में खोदा जयगढ़ का खजाना ?

Jaigarh ka Khajana, Khajane ka rahasy, Kahan gaya jaigarh ka khajana?, जयगढ़ के खजाने का रहस्य

अक्सर सुनने को मिलता है कि आपातकाल में भारत सरकार ने जयपुर के पूर्व राजघराने पर छापे मारकर उनका खजाना जब्त किया था, राजस्थान में यह खबर आम है कि – चूँकि जयपुर की महारानी गायत्री देवी कांग्रेस व इंदिरा गांधी की विरोधी थी अत: आपातकाल में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़ का किला प्रमुख था, कहते कि राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी कि राजा मानसिंह अकबर के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा| इसी कहानी के अनुसार राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा, कालांतर में इस अकूत खजाने को किले में गाड़ दिया गया जिसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा खजाना निकलवा लिया|

यही आज से कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म देखी थी उसमें में गायत्री देवी द्वारा इस सरकारी छापेमारी का जिक्र था साथ ही फिल्म में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी फिल्म में उस छापेमारी की चर्चा करते हुए दिखाया गया| जिससे यह तो साफ़ है कि जयगढ़ के किले के साथ राजपरिवार के आवासीय परिसरों पर छापेमारी की गयी थी|

जश्रुतियों के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर खजाने से निकाला धन दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया गया धन कहाँ ले जाया गया|

चूँकि राजा मानसिंह के इन सैनिक अभियानों व इस धन को संग्रह करने में हमारे भी कई पूर्वजों का खून बहा था, साथ ही तत्कालीन राज्य की आम जनता का भी खून पसीना बहा था| इस धन को भारत सरकार ने जब्त कर राजपरिवार से छीन लिया इसका हमें कोई दुःख नहीं, कोई दर्द नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह जनता के खून पसीने का धन था जो सरकारी खजाने में चला गया और आगे देश की जनता के विकास में काम आयेगा| पर चूँकि अधिकारिक तौर पर यह किसी को पता नहीं कि यह धन कितना था और अब कहाँ है ?

इसी जिज्ञासा को दूर करने व जनहित में आम जनता को इस धन के बारे जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पिछले माह मैंने एक RTI के माध्यम से गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जबाब मांगे –

1- क्या आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ पर रखा गया है ?
2- क्या उपरोक्त जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?
3- उपरोक्त जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?
4- इस समय उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार है?
5- वर्तमान में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था के पास है?
6- उस संवैधानिक संस्था या विभाग का का शीर्ष अधिकारी कौन है?
7- खजाने की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?
8- इस संबंध में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?

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18 COMMENTS

  1. आजकल यह चलन है कि "सूचना उपलब्ध नहीं है, सूचना व्यक्तिगत है इसलिये नहीं दी जा सकती, सूचना बनाई नहीं जा सकती". जाहिर है कि जब दिक्कत होने लगी तो फिर ऐसे जबाव दिये जाते हैं.

  2. आपके जैसे ही सभी के मन में सवाल हैं, जवाब आज तक नही मिले और शायद ही कभी मिल पायें? जिस दिन इस सवाल का जवाब मिल जायेगा वो दिन एक बहुत ही बडा दिन होगा भारत के इतिहास में.

    आपने एक बहुत ही सही दिशा में कदम बढाया है, पीछे लगे रहिये, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम

  3. केन्द्रीय सूचना आयोग नें अपने कुछ न्याय निर्णयों में क्या प्रश्न को सूचना से पृथक रखा है, आयोग नें कहा है कि वही सूचना दी जा सकती है जो आवेदन किए जाने वाले विभाग के कार्यालयों में दस्तावेज के रूप में उपलब्ध हो, इसके साथ ही कुछ राज्यों नें मांगी जाने वाली सूचना की संख्या को भी दो से अधिक रखने पर एवं अलग अलग विषय पर पृथक आवेदन करने के लिए अधिसूचना प्रकाशित की है. यह व्यवस्था सरकार के द्वारा आवेदक को आसानी से मूर्ख बनाने के लिए किए गए हैं.
    आपने जो सूचना मांगी है उसमें क्यों की अधिकता है इस कारण संबंधित विभाग नें अनुसंधान की आवश्यकता का हवाला दिया है. विभाग जब आपको बना रहा है तो आप भी अपने आवेदन में कुछ इस तरह के शब्दों का प्रयोग करें कि वे सूचना को अपने कार्यालय में खोजने के लिए विवश हो जायें,
    1. आप गृह मंत्रालय में रखे उस दस्तावेज को मांगें जिसमें आपात काल तिथि लिखें के दौरान सेना को जयपुर भेजने का आदेश जारी किया गया था. आप पूरी अवधि में गृह मंत्रालय से सेना को मूव करने संबंधी आदेशों से संबंधित दस्तावेज का अवलोकन आवेदन भी कर सकते हैं. हो सकता है उत्तर आयेगा कि ऐसा कोई दस्तावेज गृह मंत्रालय में नहीं है. आप गृह मंत्रालय से आपात काल अवधि के दौरान जप्त या राजसात की गई सम्पत्ति का व्यौरा रखने वाले रजिस्टर, फाईल या नोटशीट की प्रति भी मांग सकते हैं.
    2. आप जयपुर अंग्रेजी अभिलेखागार या डिस्ट्रिक्ट गजेटियर या महलों के थाना क्षेत्रों के उस अवधि के बाहरी आमद अभिलेख के अवलोकन हेतु आवेदन करें, चाही जानकारी की प्रतिलिपि प्राप्त करें.
    3. जब आपको सेना के जयपुर कूच के संबंध में जानकारी प्राप्त होगी तब उस कुमुक, रेजीमेंट आदि के कार्यालय में यही प्रक्रिया अपनावें.
    4. अन्य जानकारी धीरे धीरे परत दर परत निकलने लगेंगी.
    5. आपके आवेदन के जवाब में ही प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम लिखा होगा, आप वहां अपील प्रस्तुत कर सकते हैं. मेरे अनुमान में द्वितीय अपीलीय अधिकारी सीधे केन्द्रीय सूचना आयोग होगा.

  4. रतन सिंह जी , सरकार भले ही चाहे जो कहती रहे लेकिन राजस्थान के बुजुर्ग लोग ये जानते हैं कि आपातकाल के समय में जयपुर राजघराने का खजाना ट्रकों में भरकर ले जाया गया था ! ये अलग बात है कि कितना था ये पता नहीं और उसकी जानकारी आम लोगों को होती भी नहीं है !इस खजाने को लेकर शोशल मीडिया में सवाल उठते रहें हैं और आपनें आरटीआई लगाकर पता लगाने की कोशिश की ! ये एक अच्छी पहल है अब आप संजीव तिवारी जी के सुझावों के हिसाब से प्रयास कर सकतें हैं जिसके कुछ तो परिणाम जरुर आयेंगे !

  5. 1979 की २४-२५ मार्च को मैं आमेर के किले मेंने स्थित मंदिर की ओर से जयगढ़ दुर्ग में प्रवेश किया था। गेट मे मुश्किल से २०-२५ गज अंदर जाते ही मुझे गढ़ी के एक मी्णा दरबान नें अंदर आगे बढ़्ने से रोका था कि अंदर नहीं जा सकते किसी तरह से थोड़ा अंदर जाने पर मुझे सेना की वर्दी में लोग वहाँ दिखे थे और मुझे अंदर जाने को नहीं मिला। उस समय मोरारजी की सरकार केंद्र में थी। उस समय के Indian Express की फाइले देखनी चाहिये जो निश्चित रूप से दिल्ली के एक्सप्रेस हाउस की लाइब्रेरी में सुरक्षित होंगी।

  6. jaha tak muje jankari hai Menai suna tha ki 10 truck thai. Pehele Delhi le kar gai us ke bad Allahabad. Pir pata nahi. Shayad Nehru ke ghar ( Allahabad ) me dhunda jai to kesa rehe. Sonia ji ko bhi nahi pata hoga.

  7. 1981-82 के दौरान मैं आमेर की हाजी बिल्डिंग में हमारे पिलानी के ही आर्टिस्ट के साथ रहकर मिनियचर पेंटिंग्स का काम करता था। आमेर के महलों के अलावा कस्बे में 600 छोटे बङे मंदिर थे। प्राचीन भित्ति चित्रों के अध्ययन हेतु मैं समय मिलते ही उनकी खाक जानता रहता था। यह बिल्डिंग अकबरी मस्जिद के एकदम पास सङक से दक्षिण की तरफ थी। मैं इस तीन मंजिली इमारत की छत से आमेर की माउंटिंग वाल को देखता था तो पहाड़ के एकदम पश्चिम में एक छोटा किला दिखाई देता था। उसे देखने की उत्कट इच्छा थी मगर थोङी जानकारी और रास्ते की पहचान जरूरी थी। हमारे पास ऊंचाई पर पठानों के परिवार रहते थे, उन्हीं में से एक सरदारखां साहब हमारे पास नियमित रूप से आकर बैठते थे जो आसपास की संपूर्ण जानकारी रखते थे। उनको मैंने उस छोटे किले के बारे में पूछा तो बताया कि वह कुंतलगढ है मगर किन्ही कारणों से उसे अशुभ मानकर बीच में छोङ दिया गया। मैं वहां अकेले ही देखने गया तो तीन दरवाजों, एक टूटी फूटी बारहदरी तथा एक बावङी वाला किला था घास, झाङी तथा छोटे जंगली जानवर। पश्चिम में नीचे घाटी में एक प्राचीन शिव मंदिर, जो बाद में मैंनें देखा। तब वहां एक बूढी ब्राम्हणी रहती थी। वहां से उत्तर में लगभग २ या तीन किलोमीटर दूर घने जंगल में माधोसिंह की सैंक#ङों कमरों वाली शिकारगाह, आम भाषा में उसे होदी रामसागर भी कहते हैं। सरदारखांजी से अलग अलग जानकारी ले सभी जगह घूमा । बाद में मैंनें उनसे जयगढ का किस्सा पूछा तब उन्होंने बताया कि महीने भर चले काम में नक्शे के हिसाब से चलते रहे लेकिन आखिर में सांप और घङे के निशान पर अटक गये तब ब्लास्ट करना पङा और माल मिला। राजा मानसिंह ने खजाने की पहरेदारी मीणों को सौंपी थी, जो पीढीगत रखवाली करते आ रहे थे, लेकिन फोर्स के आने पर उनको हटा दिया गया था। एक वृद्ध मीणा कमर झुकी होने पर भी नीचे कस्बे से आमेर महल के बगल से होता हुआ ऊपर जयगढ पर जाता और शाम को वापिस आता था जिससे भी कुछ बातें मालूम हुई। खजाना वहां से निकाल कर अब दिल्ली ले जाना था सो उसके लिये पर्याप्त सतर्कता जरूरी थी। सरदारखांजी के अनुसार शाम से ही बिजली काट दी गई और सङक के दोनों तरफ बल के जवान लगा दिये गये। आमेर के बीच से दिल्ली रोड निकलती है, वहां से काफिला गुजरना था। लोगों को भी अंदाज था कि ये जल्दी रवाना न होकर देर रात निकलेंगे इसलिये खाना वगैरह खाकर सभी ने अपनी अपनी छत पर मोर्चा जमा लिया जहां से वो सब नजारा देख सकते थे। खान साहब के अनुसार आधी रात को ट्रक निकलने शुरू हुऐ जिनकी कुल संख्या 26 थी। उस वक्त रक्षा मंत्री चौधरी बंशीलाल थे तथा आपातकाल का समय, इसलिये जबानी आदेश ही ज्यादा चलते थे, लिखित कार्वाई की गुंजाइश कम ही थी। लगभग पंद्रह साल पहले सरदारखां साहब भी गुजर गये, मेरा भी उधर आना जाना छूट गया।

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