History of Rao Raja kalyansingh of Sikar in Hindi : आजादी के बाद कांग्रेस ने राजस्थान में सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखने के उद्देश्य से राजाओं, जागीरदारों को लोकतान्त्रिक व्यवस्था से दूर रखने की भरसक कोशिश की| नेहरु ने तो राजाओं को चेतावनी भी दी कि राजा चुनावी प्रक्रिया से दूर रहे, वरना उनका प्रिवीपर्स बंद कर दिया जावेगा|” बावजूद जहाँ राजा व जागीरदार चुनाव लड़े, वहां कांग्रेस चारोंखाने चित हुई| राजाओं की इसी प्रसिद्धि को दूर करने के लिए कांग्रेस ने सामंतवाद शब्द घड़ा और राजाओं द्वारा प्रजा के शोषण की झूठी कहानियां प्रचारित कर दुष्प्रचार किया| पर उस वक्त राजस्थान की प्रजा अपने राजाओं से कितना प्रेम करती थी, वह सीकर के राव राजा कल्याणसिंह जी के साथ हुई इस घटना से समझा जा सकता है|
जयपुर महाराजा मानसिंह ने सीकर तथा अन्य शेखावत शासकों के अधिकार छीनने की प्रक्रिया के तहत सीकर के प्रशासन में अनुचित हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से अपनी पसंद के अंग्रेज अधिकारीयों की नियुक्ति कराई, जिन्होंने सीकर के अधिकार कम कर जयपुर के अधीन करने की कोशिश की, राव राजा ने उनका विरोध किया| यह विरोध उत्तरोतर बढ़ता गया| आखिर जयपुर महाराजा मानसिंह ने सीकर के 16 वर्षीय राजकुमार हरदयाल सिंह को अपने साथ इंगलैंड की यात्रा पर ना भेजे जाने से नाराज होकर सीकर के राव राजा कल्याणसिंह को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए| सीकर राजा ने राजकुमार हरदयालसिंह की सगाई ध्रांगध्रा की राजकुमारी के साथ इस शर्त पर की थी कि शादी से पहले वे हरदयालसिंह को विदेश नहीं भेजेंगे| अत: उन्होंने महाराजा जयपुर की इच्छा के बावजूद अपना वचन निभाने के लिए राजकुमार को इंग्लैण्ड नहीं भेजा|
अप्रैल 1938 में शुरू हुआ यह विवाद इतना बढ़ गया कि जयपुर महाराजा ने 20 जुलाई 1938 को सीकर के राजा को गिरफ्तार कर जयपुर लाने के लिए सेना भेज दी| जयपुर की सेना के सीकर कूच की खबर आग की तरह फैलते ही सीकर राज्य की प्रजा अपने राजा को बचाने के लिए सीकर गढ़ के बाहर एकत्र हो गई| सीकर की फ़ौज ने भी गढ़ के दरवाजों पर तोपें व मशीनगन तैनात कर दी| इस अवसर पर सीकर की प्रजा के हाथ में जो भी हथियार तलवार, बन्दुक, डंडा, लट्ठ जो भी मिला, लेकर अपने राजा की सुरक्षा में तैनात हो गई और मरने मारने को तैयार प्रजा रातभर पहरा देने लगी| यही नहीं रींगस कस्बे से अपने राजा की सुरक्षा के लिए आ रहे लोगों व जयपुर फ़ोर्स के मध्य फायरिंग हुई| जैसे ही यह रेल गाड़ी सीकर स्टेशन पर रुकी, रेल में बैठे बिरजीसिंह, नाथूसर ने आई जी यंग पर गोली चलाई, जो उसके टोप से टच कर निकल गई, जबाबी फायरिंग में बिरजीसिंह मारे गए| इस विवाद में कई खास बातें भी रही, जैसे महरौली के उगमसिंह राव राजा की सुरक्षा के लिए लड़ने आये, वहीं उनके पुत्र हनुमानसिंह राव राजा को गिरफ्तार करने आई जयपुर की फ़ोर्स में शामिल थे| इस विवाद में कई दिन सीकर राज्य की प्रजा हाथों में लट्ठ लिए जयपुर की सेना के आगे डटी रही, रातभर जागकर गढ़ व परकोटे के बाहर पहरा देती रही और जयपुर की हथियारबंद सेना को नगर के भीतर घुसने तक नहीं दिया| आखिर 25 जुलाई 1938 को सेठ जमनालाल बजाज के माध्यम से जयपुर-सीकर के मध्य समझौता हुआ, तब जाकर यह गतिरोध ख़त्म हुआ|
राव राजा कल्याणसिंह जी की गिरफ्तारी रोकने के लिए जिस तरह प्रजा ने मरने का भय त्याग कर जयपुर की सेना का सामना किया, वह प्रजा के मन में राजा के प्रति प्रेम, विश्वास और आत्मीयता का उत्कृष्ट उदाहरण है| यही नहीं यह घटना कथित सेकुलर गैंग के मुंह पर तमाचा भी है जो राजाओं पर अपनी प्रजा के शोषण का आरोप लगाते है| यदि राजा अपनी प्रजा का शोषण करते तो क्या यह संभव था कि प्रजा उस राजा की सुरक्षा के लिए अपनी जान दाँव पर लगा देती|
नोट : चित्र पत्रिका.कॉम से साभार
बहुत ही उम्दा लेख प्रस्तुत किया राजा कल्यान सिंह के बारे में