History of Lamiya Fort: इतिहास में राजा रायसल दरबारी के नाम से प्रसिद्ध रायसलजी को सात गांवों की जमींदारी मिली थी | राजा रायसल दरबारी अमरसर के शासक राव सूजाजी के पुत्र थे | वि. सं. 1611 में रायसलजी ने अपनी जमींदारी में एक छोटे से किले का निर्माण कर लामिया नाम से गांव बसाया | लामिया बड़े पाने के ठाकुर गोपालसिंहजी के अनुसार रायसलजी जब गढ़ निर्माण के लिए यहाँ भूमि देखने आये उस वक्त यहाँ एक लम्बे कद वाली महिला भेड़ बकरियां चरा रही थी, अत: जगह को उस महिला की लम्बाई के नाम से पहचान मिली | राजस्थान में लम्बी को लामी बोला जाता है अत: गांव का नाम बाद में लामी वाला मतलब लामिया पड़ गया |
रायसलजी के बड़े भाई राव लूणकरणजी अमरसर के राजा बने थे | देवीदास नाम के उनके एक दीवान थे | राव लूणकरणजी ने एक दिन दरबार में प्रश्न किया कि “वीर बड़ा या जागीर” | देवीदास ने उत्तर दिया- हुजुर ! जागीर का क्या बड़ा ? बड़ा तो वीर ही होता है जो अपने पुरुषार्थ के बल पर कितना ही बड़ा राज्य खड़ा कर सकता है | यह उत्तर लूणकरणजी को पसंद नहीं आया और उन्होंने कहा कि – मेरे भाई रायसल के पास छोटीसी जागीर है सो अपनी बात वहां जाकर चरितार्थ करो | History of Lamiya Fort
देवीदास रायसलजी के पास लामिया गांव चले आये | देवीदास की सलाह पर रायसलजी रेवासा के चंदेलों से 20 घुड़सवार उधार लेकर अकबर के पास चले आये और वहां अपना पुरुषार्थ दिखाया, बदले में उन्हें बड़ी जागीर मिली और बाद में वे खंडेला जैसा समृद्ध व बड़े राज्य पर अधिकार कर राजा बने | रायसलजी ने अपने जीवन में अनेकों युद्ध लड़े, देश के विभिन्न भागों में मंदिरों व ब्राह्मणों को भूमिदान किया | वृन्दावन में लाल पत्थरों से युक्त गोपीनाथजी का मंदिर बनवाया | देवीदास ने अपनी बुद्धिबल से वीर रायसल के पुरुषार्थ को सही दिशा देकर उन्हें राजा बनवा दिया और साबित कर दिया कि जागीर या धन के बजाय पुरुषार्थ व बुद्धि बड़ी होती है |
रायसलजी खण्डेला के राजा बन गये | उनके निधन के बाद खंडेला की गद्दी उनके पुत्र लाडाजी को मिलनी थी लेकिन उनकी राजकार्य के बजाय भक्तिभाव में रूचि थी अत: खंडेला की गद्दी उनके छोटे भाई गिरधरदासजी को मिली और लामिया गांव की जागीर लाडाजी को मिली | लाडाजी को उस काल में लाडखान भी कहा जाता था, जिससे उनके वंशज लाडखानी शेखावत कहलाये | देश के पूर्व उपराष्ट्रपति और राजस्थान के कई बार मुख्यमंत्री रहे, शेरे राजस्थान और बाबोसा के नाम से प्रसिद्ध स्व. श्री भैरोंसिंहजी इन्हीं लाडाजी के वंशज थे | प्रदेश में लाडखानी शेखावतों ने कई जागीरें स्थापित की व कई गांव बसाये, जहाँ आज भी वे निवास करते हैं | लाडाजी की कुछ पीढियां बाद लालसिंह यहाँ के ठाकुर बने, उनके बाद लामिया गांव की जागीर का उनके पुत्रों में बंटवारा हुआ | अब लामिया गांव के शासक बड़ा पाना और छोटा पाना में विभक्त हो गये |
राजा रायसलजी द्वारा बनवाया यह गढ़ आज बड़े पाने के स्वामित्व में है | गढ़ में कोई नहीं रहता, पर गणगौर की सवारी आज भी गढ़ से ही निकाली जाती है | रखरखाव व मरम्मत के अभाव में गढ़ की स्थिति ख़राब होती जा रही है | गांव की इस पुरा व ऐतिहासिक महत्त्व की धरोहर को जीर्णोद्धार व संरक्षण की आवश्यकता है | हम सैल्यूट करते हैं गांव की राजपूत महिलाओं को जो इस गढ़ की साफ़ सफाई रखती है | गढ़ की कवरेज करने हमारी टीम गढ़ पहुंची तब गांव की महिलाएं गढ़ की सफाई में जुटी थी | गढ़ में एक सुरंग भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि चार किलोमीटर दूर निकलती है | इस गढ़ में 35 के लगभग कक्ष है जिनमें हर कक्ष में कमरे, बरामदे आदि है | गढ़ के बाहर पत्थर की एक बड़ी शिला रखी है जिसके बारे में कहा जाता है कि रायसलजी इस पर बैठकर आत्म मंथन किया करते थे | इस शिला के बारे में ग्रामीणों ने बताया कि एक बार आठ गोरखा सैनिक इसे उठा नहीं पाये, जबकि रायसलजी के समय का राज बलाई इसे कहीं अकेला सिर पर उठाकर लाया था |
राजा रायसलजी द्वारा स्थापित लामिया गांव पर उनके बाद उनके विभिन्न वंशज जागीरदार रहे | देश की आजादी के बाद ठाकुर नारायणसिंहजी लामिया सहित बुच्यासी, गदड़ी, दादिया आदि चार गांवों के 1955 तक जागीरदार रहे | ठाकुर नारायणसिंहजी के पास इन चार गांवों के अलावा भी राज्य में कई जगह कृषि भूमि थी| ठाकुर नारायणसिंहजी के छोटे पुत्र धर्मेद्रसिंह के पास आज भी लामिया जागीर के विभिन्न दस्तावेज जिनमें राजपत्र, डिक्रीयाँ, जागीर का रिकार्ड उपलब्ध है | धर्मेद्रसिंह ने जागीरी समय की विभिन्न प्रतीक चिन्ह रूपी वस्तुएं भी सहेज रखी है | History of Lamiya Fort
लालसिंह जी के दूसरे पुत्र सल्हेदीसिंहजी को छोटे पाने की जागीरी मिली थी | उनके वंशजों ने गांव में ही अलग गढ़ का निर्माण कराया, जो गांव की पश्चिम दिशा में होने के कारण आथूणा गढ़ के नाम से जाना जाता है | राजस्थान में पूर्व को अगुणा और पश्चिम को आथूणा कहा जाता है अत: बड़े पाने का गढ़ अगुणा गढ़ और छोटे पाने का गढ़ आथूणा गढ़ के नाम से जाने जाते हैं | अगुणा गढ़ में सल्हेदीसिंहजी के वंशजों में से एक परिवार निवास करता है अत: 54 कमरों वाले इस गढ़ की स्थिति ठीक है | इस गढ़ से भी गणगौर की सवारी निकली जाती है |
लाडाजी के एक पुत्र थे हरिसिंहजी, जिनके पौत्र थे श्यामसिंहजी | जिन्होंने लामिया छोड़ कर पास में एक ढाणी बसाई, जिसे आज श्यामसिंह जी की ढाणी के नाम से जाना जाता है | वर्तमान में श्यामसिंह जी के वंशजों के लगभग पच्चीस परिवार यहाँ निवास करते हैं | आज श्यामसिंहजी की ढाणी ने भी गांव का स्वरूप ले लिया है | श्यामसिंहजी के वंशजों में बन्नेसिंह जोधपुर रसाला में थे तो भैरोसिंह जयपुर की सवाई मानगार्ड्स में तैनात रहे | ढाणी की वर्तमान पीढ़ी के युवा सेना, निजी क्षेत्र के काम धंधे, नौकरियां व खेतीबाड़ी करते हैं |
लामिया गांव में लाडखानी शेखावत राजपूत, जाट, यादव, ब्राह्मण, बनिया, रावणा राजपूत, मेघवाल, नायक, नाई, कुम्हार, सुनार, खाती, बाल्मीकि, मणिहार आदि जातियों के लोग सौहार्दपूर्वक रहते हैं | जाटों में काजला, कुड़ी, जीन्जवडिया, पूनिया, खद्दा, फरडोलिया, ओला गौत्र के परिवार है | सेडूराम जी जीन्जवडिया व नोलारामजी जीन्जवडिया जाट जागीरदारी काल में गांव के पटेल थे | लामिया गांव के वैश्य देश के विभिन्न शहरों में बड़े व्यवसायी व उद्योगपति है | छगनलालजी जैन, कजोडमलजी जैन, जीवनरामजी अग्रवाल, मोतीलालजी जैन समय समय पर जागीरदारी समय में लामिया के दीवान रहे | आज जीवनरामजी, मगनलालजी के परिजन दुर्ग व भिलाई में बड़े उद्योगपति है | प्रभुदयालजी कांवटिया का जयपुर के उद्योगजगत में बड़ा नाम है | नन्दलाल, हीरालाल अग्रवाल फरीदाबाद के बड़े व्यवसायियों में गिने जाते हैं | History of Lamiya Fort
जीवनरामजी जगीरिकाल में राज बलाई थे, जिनके पौत्र शंकरलालजी वर्मा आइएएस है | गांव के भंवरलालजी मीणा आइपीएस रहे हैं और मीणा समाज के बड़े सामाजिक नेता है | युवा परीक्षित शेखावत इसरो में वैज्ञानिक थे, जिनका महज 22 वर्ष की उम्र में जनवरी 20 में अक्समात निधन हो गया | अनोपसिंह, गिरधारी सिंह फोरेस्टर रहे हैं तो आरआई दयालसिंह पुलिस में घुड़सवार रहे हैं | बड़े पाने के धर्मेन्द्र शेखावत जयपुर में रेडीमेड गारमेंट्स का व्यवसाय करते हैं | वर्तमान में गांव के युवा सेना, पुलिस, अर्धसैनिक बलों, निजी क्षेत्र की विभिन्न कम्पनियों में काम कर रहे हैं तो बहुत से युवा स्वरोजगार के तहत अपना स्वयं का कारोबार कर रहे हैं | गांव के लोगों में इतिहास के प्रति रूचि भी साफ़ दिखाई दे रही थी यही कारण था कि कवरेज करने गई हमारी टीम को जानकारी मुहैया कराने के लिए युवाओं के साथ बुजुर्गों ने खूब रूचि दिखाई |
लामियां गांव के दोनों पानों में गोपीनाथजी के मंदिर अलग अलग बने हैं | बड़े पाने के गोपीनाथजी मंदिर की प्रतिमा रायसलजी के समय ही वृन्दावन से लाई गई थी | गांव में लक्ष्मीनारायण मंदिर, जैन मंदिर, शिवालय, हनुमानजी, माताजी, व वीर तेजाजी के मंदिर बने है जो गांव वालों की धार्मिक आस्था के प्रतीक है | गांव के श्मशान में अभयसिंह के स्मारक के रूप में छतरी बनी है तो गायों की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान करने वाले पाल्हाजी चारण की देवली बनी है | ज्ञात हो पाल्हाजी चारण के वंशज आज पालावत चारण कहलाते हैं | पाल्हाजी की देवली का जीर्णोद्धार कराने वाले अर्जुनसिंह शेखावत का दावा है कि पाल्हाजी ने तीन रात तक उन्हें सपने में दर्शन दिए और अपनी देवली के जीर्णोद्धार का निर्देश दिया | गांव के कुलदीपसिंह घाटी में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये थे | गांव के मुख्य चौक का नामकरण उनकी याद में किया गया है साथ ही शहीद के नाम पर सीनियर सैकंडरी स्कूल बनाई गई है | स्कूल का भवन जहाँ विशाल व खुबसूरत है वहीं स्कूल में स्टेडियम के साथ काफी भूमि छोड़ी गई है | स्कूल के स्टेडियम में ही शहीद कुलदीप सिंह की प्रतिमा लगी है, जिससे विद्यार्थी सेना में जाने की प्रेरणा लेते हैं |
गांव के रास्ते पक्के बने हैं, पानी निकासी के लिए नालियां बनी है और हर घर में जल आपूर्ति हेतु नल लगे हैं | स्वास्थ्य सेवाओं गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना है | गायों के लिए गौशाला है | एक निजी बैंक का बोर्ड भी हमें गांव में नजर आया | पंचायत मुख्यालय भी गांव में ही है | लामिया गांव सीकर जिले की दांतारामगढ़ तहसील में खाटूश्याम जी से रेनवाल जाने वाले मार्ग पर स्थित है | जो रेनवाल से लगभग 20 किलोमीटर व खाटूश्यामजी से लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर है | गांव में पहुँचने के लिए जयपुर से सीधी रोडवेज बस की सुविधा उपलब्ध है | खाटूश्यामजी व रेनवाल से भी बसें उपलब्ध रहती है | History of Lamiya Fort