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जूनौ खेड़ौ-खेड़

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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्य सिंह की कलम से मारवाड़ के पुराने नगर खेड़ पर आलेख

राजस्थान रा जूनां नगरां में बैराठ, सांभर, मंडौर, खंडेलौ, मेड़तौ, अजमेर, नागौर, पाली, किराडू नै खेड़ (Khed) आदि गिणीजै है। अै नगरियां न जाणै कितरी वेळा बसी नै कितरी बार उजड़ी। पण इणां पुराणां नगरां में जठै आपरा जमानां में कोड़ीधज ब्यौपारी बसता, झूमता गजराज ठांणा माथै डग बेड़ियां खुड़कावता, दुबागां में घोड़ला हिणहिणावता, हजारां मिनखां रै आंण-जांण नै लाख लोगों रै बोल्याळा सूं भरौपूरौ जमघट मंडियौ रैवतौ उठै कई ठौड़ां आज उड़नै काग इज नीं बैसै। सूनी-सून्याड़ बसती, उजड़-उजाड़ रोह में ढमढ़ेर-ढुंढा, मिंदर-मठां रा गोखड़ा, हेल्यां रा ताज, गढ़ां री बुरजां नै धनपत्यां रै रहवासां रा खंडर जूना जूगां री कांणियां बतावै। वै खिंड-भिंड गोखड़ा, टूट-फूटा खुर्रा, ढहनै ढमढ़ेर बणी थकी बुरजां अतीत रै वैभव मून गीत गावती सी लखावै। जद इज तौ बखांणीजियौ है-
मतवाळा गज झूमता, मंडता फाग’र राग।
वै मिंदर सूना पड्îा, बैठण लागा काग।।

कई नगर कई बार सूना हुवा नै केई बार फेर बस्या। पण केई नगर आज भी साव उजड़ खेड़ा इज बण रैया है। मारवाड़ रै मांय लूणी नदी रै पसवाडै खेड़नगर आज बीता जुगां री जीवती बातां बोलै है। आया-गया मिनखां नै, गैलैबगता माणसां नै आपरी बधती री, सम्पति री, राज-दुराजी री अणगिणत कथावां सुणावै है। खेड़ मारवाड़ रै मालाणी परदेस में बालोतरा ऊं अढाई कोस आंथूण में है। बीकानेर, जोधपुर, किसनगढ़ रा राठौड़ राजावां रा वडा-वडेरा पैलीपोत राजस्थान में खेड़ में इज आया हा। राव सिया नै राव आसथान रौ खेड़ पर हांमपाव हुवां पछै ई रणबंका राठौड़, खांगीबंध राठौड़ नै नौकूटी नाथ रौ बिड़दाव पायौ।

मालाणी माथै राठौड़ां संू पैली गोहिला नै पंवारा रौ राज रैयौ। पैली मालाणी री ठौड़ बाड़मेर, खेड़ नै जसोल आद नांवां सू औ धरती खंड ओळखीजतौ। रावळ माला (मलीनाथ) रा बेटा-पौतां रै पछै मालाणी कहीजियौ। रावळ मालौ कौरौ राजा इज नों हौ पण ठाढा़ै समाज सुधारक नै ठणकौ जोगीराज भी हुयौ। खेड़ रै कन्है तळवाड़ा में रावळ मलीनाथ रौ देवरौ उणारी भगती, नीति नै रजपूती रा गुणां रौ सांप्रत सबूत है। खेड़ माथै बसणै अर राज करणै रै कारण इज राठौड़ खेड़ेचा बाजिया -राजस्थानी काव्य में खेड़ धणी, खेड़पति, खेड़ेचा इत्याद नांव सू राठौड़ जोधारां, नै राठौड़ राजावां रा घणा बरणाव मिळै है।

आगरा रा लालकिला में धोळै दिन बादस्याह साहजहां री भरी कचेड़ी में नबाब सलाबतखां नै मार नै नागौर रौ राव अमरसिंघ काम आयौ। राव अमरसिंघ रा बैर में चांपावत वीर बल्लू, ठाकर भावसिंघ कूपावत नै गोकळदास मानावत बादसाही घणा उमरावां नै खड़ग धारावां में संपाड़ो कराय नै सांमघ्रम री परम्परा नै उजाळकर रण सैज सूता हा। गोकळदास रा अेक वीरगीत में ‘खेड़ेचै’ रौ बखाण सुणीजै –

खेचौ दम बाही खेड़ेचै, मै पण दम खेचियी मंहै।
सुधि नह रही आपौ सांभळतां, बिढ़ि पण पखै चालियौ बहै।।
खेड़पति रा जम री जीभ सी तरवार रौ बरणन है –
खड़हड़इ डोल धूजइ धरति। पड़ियाळग बरसइ खेड़पति।।
कुंवर जैतसिंघ महेचौ द्रोयण दळां में दरोळ पटक नै तरवार सूं जूझ नै आपरी काया रौ उद्धार कर गयो। कविराजा रौ कथन सांभळीजै-
मंहे कंवर चैत महेश्वचौ, खग धरै रे खेड़ेचौ।।
राठौड़ां सूं पैली गोहिल छत्रियां रौ खेड़ पर राज हौ। गोहिलां में राजा मोखरौ बडौ नांवाजादीक हुवौ। नैणसी मंूतै आपरी ख्यात में लिख्यौ है-

‘‘खेड़ गोहिलां री वड़ी ठकुराई थी। राजा मोखरौ धणी छै। तिण रै बेटी बूंट पदमणी थी। तिण री बात खुरासांण रै पातसाह सांभळी। तरै तिण ऊपर घोड़ा लाख तीन विदा किया। तिकै चढ़ खेड़ आया। तुरके खेड़ सहर घेरियो। गोहिल पिण जद जोर था। दिन च्यार सारीखी वेढ़ हुई। पछै गोहिलै जमहर कर मैदान में काम आया। घणा तुरक काम आया। घणा गोहिल काम आया। घोड़ा पाछा गया। राजा मोखरौ काम आयौ। मोखरा री बेटी बूंट ऊबरी। बेटौ बहवन उबरियौ। साथ घणौ काम आयौ। ठकुराई निबळ पड़ी।’’ जिण नगरी नै जीतबा नै तीन लाख घोड़ां री फौज आई अर जोरका राठा-रीठौ मांचियौ। चार दिन घोड़ां री घमरोळ, भालां री भचाक-भच्च, खड़गां री खचाक-खच्च, गोफियां रा तरणाटा, बाणां रौ सरणाटौ उडियौ। सत्रवां रौ घाण मचाय। घोड़ा मिनखां रौ गायटौ सौ घाल राजा मोखरौ मोख पाई। खुला किंवाडां़ वैकुंठ गयौ।

खेड़ में थित दसवां सईका रौ रणछोड़राय भगवान रौ मिंदर जिकौ किताई थंमां सूं बणियौ हौ नै मिंदर में गरुड़ री देवळी, दिसवां रा आठौ देवां री पुतळियां अर सेससायी नाग री मूरत है। वेहमाता नै भैंरू मतवाळा रौ मिंदर भी खेड़ रा जूना इतिहास, नै कळा कारीगरी री याद दिरावै। मिंदरां रा बिखरियोड़ा भाटा खांडा बारणां, अडौदड़ी पड़िया थंभा खेड़ री कळा, भगती भावां रा प्रेमियां री बढ़ती, उनंती, गौरव री गाथा मुंहडै भाखै। जसोल में भानदेवारच गच्छ रा महावीरस्वामी रा मिंदर रौ लेख नै नगर गांव रै संवत सोळा सौ छींयासी रौ लेख खेड़ रा राठौड़, धणियां, नै जैनां रा ध्रम री बात-विगत बतावै है। जालौर रा सूंधामाता रा मिंदर रौ लेख चुवाण राजा उदैसिंघ रै नाडोल, जाळौर, सूराचंद रामसेण, सांचोर अर खेड़ पर चढ़ाई करणै नै जीतणै रौ बखाण करै।
खेड़ रै बारे में नैणसी फेर लिखियौ है कै- नाकोड़ा रौ धणी पंवार राजा खेड़ नै लेवण री चितारी जद बहवन पदमण बूंट नै मंडोर रै खावंद हंसपाळ पड़ियार नै नारेळ मोकळ नै मदत री अरदास करी। जद हंसपाळ बहवन रै ऊपर कर खेड़ आयौ अर पंवारां संू झगड़ौ रोपियौ। नांकोड़ा गढ़ री पोळ रा कपाट भांग नै पंवारां सूं जूझियौ। माथौ पड़ियां पछै तरवारां चलाय चार सौ दुसमणां नै साथरै सुवाणिया। तीन सौ गोहिल पड़ियार रण में काम आया। पणियारयां कह्यौ- ‘‘देखौ माथा विण घड़ आवै छै।’’ इण कथण रै साथै इज हंसपाळ रौ धड़ पड़ियौ नै हंस उडियौ। पछै बूंट सराप दियौ- ‘‘गोहिला सूं खेड़ जाज्यौ। पड़ियारा सूं मंडौर जाज्यौ।’’ पछै बूंट अकास मारग में उड गई।

समैजोग सूं बूंट रौ सराप सही हुवौ। राठौड़ खेड़ अर मंडौर बेहू ठौड़ां गोहिला नै पड़ियारा सूं खोस लिवी। कैवै है गोहिला रौ प्रधानौ डाभियां रै हुंतौ। डाभी छळकर नै राठौड़ आसथान नै बुलायौ अर गोहिलां नै कूड़ नै फरेब सूं मार खेड़ रौ धणी माडाई सूं बण बैठौ। राठौड़ां गोहिलां री खेड़ री कूट लड़ाई री साख अेक पुराणी कहणगत में है-
डाभी डाबां नै गोहिल जीवणां।
पछै खेड़ रा गोहिल कोटड़ा रै देस बरियाहेड़े, सीतड़हाइ नै पछै जैसलमेर रा धणिया भाटिया कन्है रैया। जैसलमेर रा कोट रौ दिखाणादौ भाग अजेस गोहिला री उण याद में गोहिल टोळौ कहावै है। जैसलमेर सूं गोहिल सोरठदेस में सेत्रंूजा, सीहोर, पालीतांणौ, लाठी, लौलियांणौ, अरजियांणौ जाय रैया। सोरठ में गोहिला नै चारण कविराज अजै भी खेड़ेच कहै है।

गोहिला पछै राठौड़ मलीनाथ सलखावत खेड़ आपरा अनुज वीरभदेव नै दीन्ही। कविराजा सूरजमल आपरा अमर काव्य वंसभास्कर में लिख्यौ है-
‘‘बाहरू बणिया जगमाल नूं पीठि लागो जाणि जोइये दलै वीरमदेव कनै खेड़ जाय तिकण रौ सहाय पायौ। अर पीठि लागै जगमाल खेड़ रै घेरो लगाइ आप रा काका हूं दला नूं पकड़ाइ देण रौ हुकम लगायौ। साहस रै साथ जगमाल रौ जोर जाणि घोड़ी समाधि वीरमदेव नै देर तिकण रै सहाय छानै कढ़ि लूट री सामग्री समेत दलो भाडंगनैर पूगौ। इण अपराध रै ऊपर काका तूं काढ़ि खेड़ में आप रौ अमल करि दिसादिसा रा दोयणां री मही दाबि लीधी तिकण समय कुमार रो प्रताप अर्क रै आभा ऊगो।’’ कवि बादर ढाढी लिखी वीरमायण भी इण वाका री साख भरे है-

मालो राजस नगर में, सोभत जैत सिवाण।
थान खेड़ वीरम थयै, जग जाहर घण जाण।।

वीरमदेव सूं खेड़ खोसणै रौ कारण समाध नांव री घोड़ी प्रगटी। कह्यौ है-घोड़ी आण समाध, घर असमाध उपाई। पछै राठौड़ वीरमदेव खेड़पति नै जोइया मारियौ। विरमदेव पछै खेड़ वीरमदेवौतां सूं छूट नै मलिनाथां रै कब्जे रैयी। अर वीरमदेवौत मोटा-मोटा गढ़ रा धणी बणिया-

माला रा मंडां वीरम रा गढ़ां बिड़द पायौ।

बाड़मेर, खेड़, थोब, सिणधरी, पोकरण माथै रावळ मलिनाथ प्रतापिक, आगली- पाछली रौ जाणैतौ हुवौ। जोगी रतननाथ रावळ पदवी दिवी। रावळ मलीनाथ जोगपंथ री साधना रै लारै जात-पात, छुवाछूत आद रौ घणौ मेट कियौ। हिंदुवां मुसळमानां में जोग रौ प्रचार कियौ। रावळ मलीनाथ रै समै रौ पीर कुतबदीन रावळ मलीनाथ बाबत कह्यौ है। खेड़, महेवा, बाडमेर कांनी जम्मा, रातीजगां में ओ पद गायीजै है –

पाट मंडा अेन चौक पूरावौ, मांडह मंगळाचार।
तेड़ावौ च्यारे महासतियां, वधाय ल्यो काय रावौ।।
मंहारै आज मिंदर रळियावनों लागे, घणी मंहारौ आय जुमे बैठौ।।
बाबौ आय बैठौ हसि बोलै मीठी, जबलग दास तुम्हारी हूं।
बाबा दीहड़ा डोहेला दूर दळिसै, सेव करां पाय लागौ।।
बाबा रैणायर में रतन नीपजै, वैरागर में हीरा।
खार समंद में मीठी बेरी, इहड़ी साहिब घर लीला।।
कोप मछर मनड़ा रा मेलौ, काम करौ घर रुड़ा।
देख अभ्यागत घर आवै तो, तेनैं सीसनांमो कर जोड़ा।।
अेक विरख नव टालड़ियां, बाबौ परगटियौ पंड मांहे।
कहै कुतबदीन सुण रावळ माला, अलख निरंजण थाहे।।
रावळ मलीनाथजी भगति में सिरमौड़ तौ रजपूती में भी राखै ठावी ठौड़। कवीसरां मलीनाथजी री वीरता बाराह रूप में आखी है। इण रौ अेक गीत में साखी है-
बाढ नयर बाराह विध्ंाूसै, पोकारै नित पंडरवेस।
सूअर माल चरै सलखाउत, दाढां मांह किया दस देस।।
जद ई तौ मलीनाथ नरलोक, सुरलोक अर नागलोक में पूजीजै-
प्रथी देसांतरां मुरधरा अनैरां वडेरां पीरां,
सूरवरां मुरां च्यारां पैकंबरां साथ।
श्रग रा अमरांपुरां करां जोड़ मानै सेव,
नरां अहिपुरां सुरां दीपै मलीनाथ।।

खेड़ रौ जूनौ नांव खेट हो। संस्कृत रा सिलोक में खेट नांव सूं बरणन पायौ जावै है। खेड़ रै पाखती इज किराडू (किरातकूप) नांव रा अेक बीजा सैहर रा ढमढेर भी मिलै है। खेड़ नै किराडू दोनूं ही घणा जूना सैहर हा। धरती माथै बिखरियोड़ा भाटा, दड़ा, ठीकरा अर कोरियौड़ा भाटा खेड़ री आबादी, फैलाव, बिंणज-ब्यौपार री बढ़ती, ख्याति नै नांव री मून साख भरै है। उठा री खुदाई सूं न जाणै किण जुग री संस्कृति मुंहडै बोल उठै।

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