History of Jaisalmer : भगवान कृष्ण के वंशज जैसलमेर के यदुवंशी राजा जैतसी के राजकुमारों ने अलाउद्दीन खिलजी खजाना लूट लिया था| खिलजी का यह खजाना कई शासकों से बतौर नजराना एकत्र किया गया था, जो मुल्तान से पन्द्रह सौ घोड़ों व पन्द्रह सौ खच्चरों पर लादकर दिल्ली ले जाया जा रहा था| भाटी राजकुमारों द्वारा खजाना लूटने के समाचार मिलने के बाद खिलजी ने एक बहुत बड़ी सेना जैसलमेर पर आक्रमण के लिए भेजी| जिसका समाचार मिलने पर जैसलमेर के रावल जैतसी ने भी युद्ध की तैयारी शुरू कर दी, किले में खाद्य पदार्थों का भण्डार भरा गया, बच्चों व बूढों को दूर मरुस्थल में भेज दिया गया, आस-पास के गांव नगर खाली कर वीरान कर दिए गए|
रावल जैतसी अपने बड़े पुत्रों व पांच हजार राजपूत सैनिकों के साथ किले में रहे और एक सेना राजकुमार देवराज व हमीर के नेतृत्व में बाहर तैनात की| इसी सेना ने कई वर्ष चले घेरे में शत्रु पर हमले कर उसके सात हजार सैनिकों को मार डाला था| आपको बता दें जैसलमेर पर खिलजी की सेना ने नबाब महबूब खान के नेतृत्व में आठ वर्ष तक घेरा डाले रखा, तभी वह किले को जीत पाए थे| इस युद्ध में भी आखिर जैसलमेर की वीरांगनाओं ने जौहर किया था व वीरों ने साका किया था|
आठ माह की दीर्घकालीन इस घेराबंदी में दिलचस्प बात ये थी कि जैसलमेर के राजकुमार कुंवर रतनसी की शत्रु सेना के सेनापति नबाब महबूब खान से मित्रता हो गयी और दोनों एक खेजड़े के पेड़ के नीचे रोज मिलते और साथ में शतरंज खेलते व एक दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते, लेकिन जब बात कर्तव्य की आती तब दोनों एक दूसरे के खिलाफ वीरता के साथ युद्ध करते| जैसलमेर के रावल जैतसी का निधन इसी घेरे के दौरान हो गया तब उनके बड़े पुत्र मूलराज सन 1294 में गद्दी पर बैठे| शत्रु से घिरे होने के बावजूद उनके राजतिलक पर किले में खुशियाँ मनाई गई, जब रतनसी महबूब खान के साथ खेजड़े के नीचे शतरंज खेलने गए तब महबूब खान ने इन खुशियों का मतलब समझा|
खिलजी को जब इन खुशियों का पता चला तब उसने किले पर आगे बढ़कर आक्रमण का आदेश भेजा| इस आक्रमण में खिलजी की सेना के नौ हजार सैनिक मारे गए| किले में भी बहुत कम सैनिक बचे थे, खाद्य सामग्री का अभाव हो गया और मूलराज ने जौहर और साका का निर्णय लिया, लेकिन तभी निराश होकर नबाब महबूब खान ने सुलतानी सेना को पीछे हटा लिया और लौटने की तैयारी करने लगे| स्थानीय इतिहासकारों व जनश्रुतियां का कहना है कि तब मूलराज ने अपने भाई रतनसी को महबूब खान को दुबारा आक्रमण करने का सन्देश भेजने के लिए कहा ताकि जैसलमेर के इतिहास में वे जौहर और साका दर्ज करा सके| आपको बता दें राजपूत ऐसे किले को कुंवारा किला कहते थे जिसमें जौहर व साका नहीं हुआ हो| अत: रावल मूलराज ने अपने भाई से महबूब खान को सन्देश भेजकर खिलजी की लौटती सेना को अपने ऊपर आक्रमण करने के लिए वापस बुलाया और किले में जौहर व साका का आयोजन कर वीर गति प्राप्त की|
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