अेक मौकै बूड़सू ठाकुरां नै कुचामण ठाकुर सेरसिंघ कुचामण बुलाया। कुचामण में हरियाजूंण रा भाखर में नौहत्था सेर री सिकार करी। उण दिन हिंगळाजदान भी बूड़सू लिछमणसिंघ रै साथ हुंता। सेरसिंघ हिंगळाजदान री कविता री बडाई सुण मेली ही। सेर री सिकार माथै कविता बणावण तांई सेरसिंघ हिंगळाजदान नै कैयौ।
हिंगळाजदान उठै संू आप रै गांव आय ‘मृगया, उपमावां, स्लेषां अर अनुप्रासां रै सागै-सागै सिकार रौ छवि चित्राम सौ कोर दियौ। प्रक्रति री सोभा, भाखरां री बणगट, सेर रौ आपाण, सेरसिंघ री निसाणाबाजी इत्याद रौ सांगौपांग बरणन कियौ अर उण खण्डकाव्य री एक फड़द कुचामण मेली। ठाकर सेरसिंघ ‘मृगया मृगेन्द्र’ ने सुण अर मुगध व्हैग्या। कवि हिंगळाजदान नै पुरस्कार देवण तांई आप रा कामदार नै सेवापुरै मेल अर उणनै कुचामण बुलावौ भेजियौ। हिंगळाजदान खुद नीं आया अर अेक कवित बणाय अर कामदार साथै भेजियौ, जिण री पाछली भड़ ही-
पछै कुचामण ठाकुर सेरसिंघ अेक सौ अेक ऊंट बाजरा रा लदवाय नै सेवापुरै हिंगळाजदानजी रै घरै भिजवाया। दाता अर पाता दोनुवां री गुणग्रायकी देखण जोग है।