इस घटना पर कवि मेघराज “मुकुल” की एक रचना मुझे मिली जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ |
सैनांण पड्यो हथलेवे रो,हिन्लू माथै में दमकै ही |
रखडी फैरा री आण लियां गमगमाट करती गमकै ही |
कांगण-डोरों पूंछे माही, चुडलो सुहाग ले सुघडाई |
चुन्दडी रो रंग न छुट्यो हो, था बंध्या रह्या बिछिया थांई |
अरमान सुहाग-रात रा ले, छत्राणी महलां में आई |
ठमकै सूं ठुमक-ठुमक छम-छम चढ़गी महलां में सरमाई |
पोढ़ण री अमर लियां आसां,प्यासा नैणा में लियां हेत |
चुण्डावत गठजोड़ो खोल्यो, तन-मन री सुध-बुध अमित मेट |
पण बाज रही थी सहनाई ,महलां में गुंज्यो शंखनाद |
अधरां पर अधर झुक्या रह गया , सरदार भूल गयो आलिंगन |
राजपूती मुख पीलो पड्ग्यो, बोल्यो , रण में नही जवुलां |
राणी ! थारी पलकां सहला , हूँ गीत हेत रा गाऊंला |
आ बात उचित है कीं हद तक , ब्या” में भी चैन न ले पाऊ ?
मेवाड़ भलां क्यों न दास, हूं रण में लड़ण नही ञाऊ |
बोली छात्रणी, “नाथ ! आज थे मती पधारो रण माहीं |
तलवार बताधो , हूं जासूं , थे चुडो पैर रैवो घर माहीं |
कह, कूद पड़ी झट सेज त्याग, नैणा मै अग्नि झमक उठी |
चंडी रूप बण्यो छिण में , बिकराल भवानी भभक उठी |
बोली आ बात जचे कोनी,पति नै चाहूँ मै मरवाणो |
पति म्हारो कोमल कुम्पल सो, फुलां सो छिण में मुरझाणो |
पैल्याँ कीं समझ नही आई, पागल सो बैठ्यो रह्यो मुर्ख |
पण बात समझ में जद आई , हो गया नैन इक्दम्म सुर्ख |
बिजली सी चाली रग-रग में, वो धार कवच उतरयो पोडी |
हुँकार “बम-बम महादेव” , ” ठक-ठक-ठक ठपक” बढ़ी घोड़ी |
पैल्याँ राणी ने हरख हुयो,पण फेर ज्यान सी निकल गई |
कालजो मुंह कानी आयो, डब-डब आँखङियां पथर गई |
उन्मत सी भाजी महलां में, फ़िर बीच झरोखा टिका नैण |
बारे दरवाजे चुण्डावत, उच्चार रह्यो थो वीर बैण |
आँख्या सूं आँख मिली छिण में , सरदार वीरता बरसाई |
सेवक ने भेज रावले में, अन्तिम सैनाणी मंगवाई |
सेवक पहुँच्यो अन्तःपुर में, राणी सूं मांगी सैनाणी |
राणी सहमी फ़िर गरज उठी, बोली कह दे मरगी राणी |
फ़िर कह्यो, ठहर ! लै सैनाणी, कह झपट खडग खिंच्यो भारी |
सिर काट्यो हाथ में उछल पड्यो, सेवक ले भाग्यो सैनाणी |
सरदार उछ्ल्यो घोड़ी पर, बोल्यो, ” ल्या-ल्या-ल्या सैनाणी |
फ़िर देख्यो कटयो सीस हंसतो, बोल्यो, राणी ! राणी ! मेरी राणी !
तूं भली सैनाणी दी है राणी ! है धन्य- धन्य तू छत्राणी |
हूं भूल चुक्यो हो रण पथ ने, तू भलो पाठ दीन्यो राणी |
कह ऐड लगायी घोड़ी कै, रण बीच भयंकर हुयो नाद |
के हरी करी गर्जन भारी, अरि-गण रै ऊपर पड़ी गाज |
फ़िर कटयो सीस गळ में धारयो, बेणी री दो लाट बाँट बळी |
उन्मत बण्यो फ़िर करद धार, असपत फौज नै खूब दळी |
सरदार विजय पाई रण में , सारी जगती बोली, जय हो |
रण-देवी हाड़ी राणी री, माँ भारत री जय हो ! जय हो !
हाड़ी रानी पर अंग्रेजी में जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
राजस्थानी कविता पढ़कर आनन्द आया!
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गुलाबी कोंपलें
बहुत धन्यवाद इस ऐतिहासिक घटना का जिक्र करने के लिये. ऐसा लग रहा है कि राजपूताना का इतिहास ही आपने खोल कर दिया है.
रामराम.
आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए कहानियो में यह पहली है जिसे हम जानते हैं. सालों के बाद पुनः पढने का मौका मिला. आभार.
aisi virangana ko slam,bahut achhi kahani.
हाड़ी रानी जैसी महान वीर रानी को इतिहास मे जो सम्मान मिलना चाहिए था शायद नही मिला या कहे बिल्कुल नही मिला
धीरू सिंह जी ने सही कहा.. हाड़ी रानी के बारे में ्बहुत ्कम लोग जानते है.. आपका ये प्रयास कुछ तो मदद करेगा..
बहुत बढिया…..आपके माध्यम से हाडी रानी जैसी वीरांगना के बारे में विस्तार से जानने का अवसर प्राप्त हुआ. आभार
आपकी पोस्ट पढ कर खुद पर मान हो आया। मुझे यह कविता मुकुमलजी के श्रीमुख से सुनने का सुख-सौभाग्य मिला है। उस सबका वर्णन मेरे बस में नहीं। उसे तो बस अनुभव ही किया जा सकता है।
हाड़ी रानी जेसी नारिया ही देश का नाम रोशन करती है, बहुत अच्छी लगी यह कहानी, आप का धन्यवाद
thank you very much Mr Shekhawat. i was actually in its search for a long time. it’s such a wonderful writing……
did anyone hear the song from a 1965 movie “nai umar ki nai fasal” by manna dey…
it resembles this poem unexpectedly, but a really good singing by this legendry singer.
in janari ke liy aap ne ghno r ghno abhare….hu raj shekhawat
रतन सा.
राजस्थान के मेवाड़ प्रांत में "निशानी " को सैदाणी कहा जाता है पर पता नहीं क्यों फिल्म के गीत के अलावा मेघराजजी "मुकुल" की कविता में भी "सेनाणी" शब्द का उल्लेख किया गया है, और फिल्म के गीत में तो चुण्डावत को भी चूड़ावत बोला गया है।
mhara kane b tharo ghano e abhiwadan iso gyan den ki khaatr
Aisa example world me kahi bhi nahi mil sakta. Jai Rajputana
आज हमारे देश के टी बी चेनलो पर कहा दीखते ए़शी महानता के नाटक अब छिरोरा पण हाबी हे इक छोड़ा दूसरा किया हद ही गयी नीचता की इस रानी बूंदी के चरणों में मेरा कोटि -२ प्रणाम
पंडित के.के.शंखधार
thanks a lot bhut dino se jis kavy ko dhund rhi thi yo aaj mila
Thank you very much Mr Shekhawat. I was actually in search of Sainani for a long time. It is such a wonderful poem. From where can I get Sainani sung by Shri Meghraji " Mukul"? [ CD / DVD ] Can any body help me ?
Regards
Col K Randheer Singh
Read more: https://www.gyandarpan.com/2009/02/hadi-rani-chundawat.html#ixzz2tD76B5Bg
आप अपनी ईमेल आईडी लिख दें तो मैं आपको ईमेल कर सकता हूँ.
In 1950's Mukulji came to our college in a Kavi Sammelan and was thriled to listen to this veer-ras sanchit poem. Then I moved to USA in 1959. I came back India few yeaars back. Now watching anti national activities and self above nation, religion above Nation my heart cries. I had been searching for this poem and finally my niece Vasundhara found it on internet. I have the same emotion that I had the first time upon listening it from Mukulji. Hopefully, after listening or reading this poem the blood of Indian National will start churning.
Respected Sir
Many thanks for sharing this. My Grandfather is very fond of this poem.
Is this the complete poem or there are more parts of it?
Hadi rani ke bare me padhakar achha laga Jo apne kartvya ke liye apne jivan Ka tyaag diya esi veer rani ko mera so bar naman
शेखावत साहेब, आपका यह काम अत्यंत सराहनीय है | आपने इस कविता के बोल भी उपलब्ध कराए हैं – जिस वजह से कविता सुनते समय पूरी बात सबके समझ में आ जाती है | मैं तो बचपन से ही यह कविता सुनते बड़ा हुआ हूँ | तब ग्रामोफोन पर सुनते थे !! कविता के टेक्स्ट में कुछ सुधार आवश्यक हैं अन्यथा यह समझा जाएगा कि ठाकर के मूँछ ही मूँछ होती है लिखने-पढ़ने में बेकार होता है | मैंने इसको सही रूप में सम्पादित करने का प्रयास किया है | अंत के कुछ उच्चारण अस्पष्ट हैं इसलिए समझ में नहीं आ रहे हैं उस के लिए क्षमा चाहता हूँ | निवेदन है कि, यदि सही लगे तो, सही संस्करण अपलोड करेंगे तो सन्देश और भी ज्यादा सही जाएगा | निवेदक – नरेंद्र सिंह हाड़ा | परिष्कृत संस्करण :
सैनांण पड्यो हथलेवे रो,हिन्लू माथै में दमकै ही |
रखडी फेरां री आण लियां गमगमाट करती गमकै ही |
कांगण-डोरों पहुँचे माही, चुडलो सुहाग ले सुघडाई |
चुन्दडी रो रंग न छूट्यो हो, था बंध्या रह्या बिछिया थांई |
अरमान सुहाग-रात रा ले, रजपूतण महलां में आई |
ठमकै सूं ठुमक-ठुमक छम-छम चढ़गी महलां में सरमाई |
पोढ़ण री अमर लियां आसां,प्यासा नैणा में लियां हेत |
चूण्डावत गठजोड़ो खोल्यो, तन-मन री सुध-बुध अमिट मेट |
पण बाज रही थी सहनाई ,महलां में गूंज्यो शँखनाद |
अधरां पर अधर झुक्या रह गया, सरदार भूल ग्यो आलिंगन |
रजपूती मुख पीलो पड्ग्यो, बोल्यो, रण में नही जाउँला |
राणी ! थारी पलकां सहला, हूँ गीत हेत रा गाउँला |
आ बात उचित है कीं हद तक, ब्या” में भी चैन न ले पाऊँ ?
मेवाड़ भलेई क्यों हो न दास, मैं रण में लड़-न नही जाऊँ |
बोली, बोली रजपूतण, “नाथ ! आज थे मती पधारो रण माहीं |
तलवार बतावो, मैं जास्यूँ, थे चुड़ी पैर रेओ घर माहीं |
कह, कूद पड़ी झट सेज त्याग, नैणा में अगणी भभक उठी |
चंडी को रूप बण्यो छिण में, बिकराल भवानी भभक उठी |
बोली, बोली, आ बात जचे कोनी,पति नै चाहूँ मैं मरवाणो |
पति मेरो कोमळ कूंपळ सो, फूलाँ सो छिण में मुरझाणो |
पहलां कीं समझ नही आई, पागल सो बैठ्यो रह्यो मूर्ख |
पण बात समझ में जद आई, हो गया नैण इक्दम्म सुर्ख |
बिजळी सी चाली रग-रग में, तौव्वत बांध्या उतरयो पौड़ी |
हुँकार “बम्ब-बम महादेव”, ठक-ठक-ठक ठपक बढ़ी घोड़ी |
पहलां राणी ने हरख हुयो,पण फेर ज्यान सी निकळ गई |
काळजो मुंह कानी आयो, डब-डब आँखङियां पथर गई |
उनमत सी भागी महलां में, फ़िर बीच झरोखा टिक्या नैण |
बारे दरवाजे चूण्डावत, उच्चार रह्यो थो वीर बैण |
आँख्या सूं , आँख्या सूं ,आँख मिली छिण में, सरदार वीरता बिसराई |
सेवक ने भेज रावले में, अन्तिम सैनाणी मंगवाई |
सेवक पहुँच्यो अन्तःपुर में, राणी सूँ मांगी सैनाणी |
राणी सहमी फ़िर गरज उठी, बोली कह दे मरगी राणी |
फ़िर कह्यो, फ़िर कह्यो, ठहर ! लै सैनाणी, कह झपट खंग सूंती भारी |
सिर कटयो हाथ में उछल पड्यो, सेवक भाज्यो ले सैनाणी |
सरदार ऊछल्यो घोड़ी पर, बोल्यो, “ल्या-ल्या-ल्या सैनाणी” |
फ़िर देख्यो, फ़िर देख्यो, कट्यो सीस हंसतो, बोल्यो, राणी ! मेरी राणी !
तूं भली सैनाणी दी राणी ! है धन्य- धन्य तू क्षत्राणी |
हूं भूल चुक्यो थो रण पत ने, तू भलो पाठ दीन्यो राणी |
कह ऐड लगायी घोड़ी कै, रण बीच भयंकर हुयो नाद |
के हरि उठ्यो चिंघाड़, अरि-गण रै ऊपर पड़ी गाज |
फ़िर सीस कटयो गळ में धारयो, बेणी री दो लट बाँट बळी |
उणमत्त बण्यो फ़िर करद धार, असपत फौज नै खूब दळी |
सरदार विजय पाई रण में, सारी जगती बोली, जय हो |
रण-देवी हाड़ी राणी की, माँ भारत की जय हो ! जय हो !!!!!
अति उत्तम! बहुत आनन्द आया यह घटना पढ़ कर!