Gajendra Singh Shekhawat भाजपा प्रदेशाध्यक्ष तो नहीं बन पाये, पर जब से उनका नाम उछला और दो महीनों से भाजपा में प्रदेशाध्यक्ष को लेकर ड्रामा चला उसने कई बातें उजागर कर दी, आगामी चुनावों को लेकर कई समीकरण बना दिये| इस प्रकरण से पहली बार देश ने देखा कि अपने आपको सर्वशक्तिमान समझ बैठी मोदी शाह की जोड़ी को वसुंधराराजे के आगे मात खानी पड़ी| एक ऐसी नेता के आगे मात खानी पड़ी जो खुद अपने प्रदेश की जनता के निशाने पर है| वसुंधराराजे के खिलाफ प्रदेश में जो माहौल है उसके अनुसार राजे को पार्टी आलाकमान के आगे बचाव की मुद्रा में होना चाहिए था, पर हुआ ठीक विपरीत, राजे ने ना सिर्फ मोदी अमितशाह जोड़ी को आँखें दिखाई, बल्कि अपने प्रदेश में उनकी चलने तक नहीं दी|
जो भी हो ये एक पार्टी का अपना अंदरूनी मामला है| Gajendra Singh Shekhawat प्रदेशाध्यक्ष तो नहीं बन पाये, पर उनके नाम की चर्चा चलने के बाद बहुत ही कम समय में उनका राजनैतिक कद बढ़ गया, ऐसा मौका हर राजनीतिज्ञ को नहीं मिलता| यदि कहा जाय कि प्रदेश में राजपूतों की नाराजगी को देखते हुए Gajendra Singh Shekhawat को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा रहा था तो आपको बता दें भाजपा में उनसे कई राजपूत नेता वरिष्ठ है उनका नाम भी आगे लाया जा सकता था| Gajendra Singh Shekhawat जब जोधपुर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष चुने गए थे, उस समय राजेन्द्रसिंह राठौड़, देवीसिंह भाटी आदि राजपूत नेता प्रदेश में मंत्रिपद पर थे|
बावजूद उनकी वरिष्ठता को अनदेखा कर पहली बार सांसद बने गजेन्द्रसिंह शेखावत पर भाजपा आलाकमान ने भरोसा किया, जो निसन्देह शेखावत की क़ाबलियत दर्शाता है| आज बेशक गजेन्द्रसिंह शेखावत प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के नहीं बन पाए पर जैसा कि हमनें ऊपर लिखा उनका राजनैतिक कद बढ़ गया साथ ही राजे के कुशासन की वजह से आगामी चुनावों में मिलने वाली हार के ठीकरे से भी बच गए अब उक्त हार ठीकरा मदन लाल सैनी के सिर पर फूटना तय है| यही नहीं Gajendra Singh Shekhawat प्रदेशाध्यक्ष बनाकर नाराज राजपूतों को भाजपा से जोड़ पाते यह भी संदिग्ध था, जो भाजपा आलाकमान की नजर में आज सबसे बड़ा मुद्दा है|
nice imprtant