गांव में बचपन से बुजुर्गों से अक्सर झूंठ बोलने वाले, लंबी-लंबी डींगे हांकने वालों के लिए या किसी को झूंठे सब्ज बाग दिखाने वाले व्यक्तियों के बारे में सुनते आये है कि-“फलां का उडायेड़ा कागला कदै ई डाळ पर कोनी बैठ्या” मतलब फलां व्यक्ति (फैंकने वाले,ढींगे हांकने वाले) के उड़ाये कौवे कभी डाल पर नहीं बैठे| यह कहावत किसी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त करते ही सुनने वाले उस व्यक्ति का व्यक्तित्व समझ लेते है कि जिसके बारे में ये कहावत कही गयी है वह फेंकू है, डींगे हांकता है या अपना कोई काम निकलवाने के लिए दूसरों को झूंठे सब्ज बाग दिखाता है|
मेरे सामने में भी अक्सर ऐसे लोग आते रहते है जो अपना काम निकलवाने के लिए अक्सर बड़ी बड़ी डींगे हांकते है, मुझे बड़े बड़े सब्ज बाग तक दिखा देते है, ऐसे ऐसे सब्ज बाग कि मुझे बाइक से उठाकर सीधे बड़ी सी लक्जरी कार में बिठाने, हाउसिंग बोर्ड के छोटे से फ्लेट से उठाकर बड़ी सी कोठी में पहुँचाने तक के| पर मेरे जीवन का अनुभव ऐसे लोगों को पहली ही मुलाकात में पहचान लेता है कि सामने वाला अपना कोई काम निकलवाने के लिए इतने पापड़ बेल रहा है और मैं या तो अनजान बनकर उस वक्त का इन्तजार करता हूँ जब वह अपनी भूमिका बनाकर मुझसे अपने काम के बारे में कहे, जिसे करवाने के लिए वो मुझे सब्ज-बाग दिखा रहा होता है| और कई बार तो ऐसे लोगों को मैं हँसते हुए साफ़ ही कह देता हूँ –“यार भूमिका बनाना बंद कर और साफ़ साफ़ कह, क्या करवाना चाह रहा है ?
पर अक्सर मैं इस तरह कौवे उड़ाने वाले मित्रों को समझने के बाद भी चुपचाप उनका वो कार्य कर देता हूँ और वे समझते है कि हमने इसे बेवकूफ बनाकर या अपनी कौवे उड़ाने वाली प्रतिभा दिखाकर काम निकलवा लिया|
पिछले दिनों एक मित्र ने मजाक मजाक में एक कौवे उड़ाकर काम लेने वाले मित्र के बारे में कहा कि- आपको पता है वह कौवे उड़ाता है मतलब सब्ज बाग दिखाकर या डींगे हांककर आपको प्रभावित कर काम करवा लेता है फिर भी आप अनजान बन उसका काम क्यों कर देते है?
इस पर मेरा जबाब था| अब उसे भी खुश होने दो, वो समझते है वे कौवे उड़ाने में सफल रहे पर मैं अनजान बनकर, ये देखते हुए कि ये मित्र काम के लिए कैसे कैसे कौवे उड़ाते है? कैसे कैसे सब्ज बाग़ दिखाते है? कहाँ तक फैंकते है ? उनका काम कर देता हूँ और उनके द्वारा इस्तेमाल किये हथकंडों पर मन ही मन हँसते हुए मौज लेता रहता हूँ| क्योंकि उनका कार्य तो मुझे वैसे भी करना ही पड़ेगा भले वे बिना कौवे उड़ाये काम बाताएं या कौवे उड़ाकर काम बताएं|
करना तो दोनों ही परिस्थितियों में ही है| आखिर मित्रता भी कुछ होती है जिसे भी निभाना जरुरी होता है|
आजकल तो जमाना ही ऐसे लोगों का है.
अजब समय की चाल..
सम्बन्ध/मैत्री बनाए रखने के लिए अनजान बन कर रहना जरूरी शर्त है।
वाह…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
आज 14-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है …..
…. आज की वार्ता में … हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा ? इतना मजबूत सिलेण्डर लीक हुआ तो कैसे ? ……….ब्लॉग 4 वार्ता … संगीता स्वरूप.
ऐसे ही कंजूस आदमी के लिए कहावत है " उसने कभी जूठे हाथ से कौवा नहीं हडाया " अर्थात अगर जूठे हाथ से कौवा भगाएगा तो कुछ न कुछ खाना हाथ से छींट जाएगा जो कौव्वा खा सकता है |
रोचक …. काम तो करना ही है डींगें हाँकने से किसी को संतुष्टि मिलती है तो यही सही ।
pahali baar suni hai ye kahavat bahut achhi lagi dhanyavaad.
अब वो क्या जाने की उन्होंने हमें बेवकूफ बनाया या हम अपनी आदत से मजबूर हैं कोई कुछ भी कहे हमें तो अपना काम करना है फिर अगर इस बात से वो खुश है तो बहुत अच्छी बात है हमारी तरफ से तो एक साथ दो दो काम पुरे हो गए अच्छी लगी कहावत |