राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी केसरी सिंह बारहठ का स्थान एक कवि और निर्भीक वक्ता की हैसियत से बहुत ऊँचा है | उनका लिखा हुआ “चेतावनी रा चुन्घटिया “ यधपि १३ दोहों का ही संग्रह है लेकिन उनमे ऐसी शक्ति थी कि जिसने मेवाड़ के महाराणा फ़तेहसिंह को मेवाड़ के गौरव से च्युत होने से बचा लिया | इन्ही केसरी सिंह जी के निधन पर राजस्थान के कवियों ने अपने पीछोलों (सौरठों) में बड़े करुणा-उदगार प्रगट किये –
ठाकुर कल्याणसिंह गांगियासर द्वारा प्रगट उदगार –
कहरियो हो केहरी , भल रजवाडां वीर |
चारण जाति में चतुर , धरां किणी विध धीर ||
महिपत नीको मानता, आदर करता आय |
कठे गयो अब केहरी , लांबो दुःख लगाय ||
सुणता हा म्हे साचली, केहरी मुख खरिह |
आख्खे कुण क़लियाण, अब बाणी जोस भरिह ||
केसरीसिंह सिंह के समान राजस्थानी रियासतों के वीर थे | वे चारण जाति में चतुर थे , अब किस प्रकार धीरज रखें ? राजा लोग उन्हें अच्छा मानकर उनका आदर करते थे लेकिन केसरीसिंह अब लम्बा दुःख लगाकर कहाँ चले गए ? हम केसरीसिंह के मुख से सच्ची व खरी बात सुनते थे लेकिन अब वैसी जोश भरी वाणी कौन सुनाये ? |
केसरीसिंह बारहठ के निधन पर ठाकुर मनोहरसिंह जी ने कहा –
विधना कियो अकाज,गाज परो तव काज पै |
आई रंच न लाज , हरतां जग सूं केहरी ||
विधि ने यह बुरा काम किया जब कि कार्य पर वज्र गिरा | विधि को संसार से केसरीसिंह को हरते तनिक भी लज्जा नहीं आई |
केसरीसिंह के निधन पर एक अन्य के मुंह से ये उदगार निकले –
हाकल ख़तवट देश, बोलि वीरता रा वचन |
देसी कुण उपदेश, कडवा तो बिन केहरी ||
झूंठा झुघटियाह, असर हुवै किम अधपत्यां |
चुभता चुन्घटियाह , कुण ले तो बिन केहरी ||
हे केसरीसिंह तुम्हारे बिना अब इस रजवट देश को वीरता भरी वाणी से ललकार कर कौन उपदेश देगा ?
अब झूठे वचनों से अधिपतियों पर किस प्रकार असर पड़ सकता है ? तुम्हारे बिना अब चुभते चुंगटीये कौन भरे ?
अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जयपुर स्टेट से लड़ने वाले निर्भीक,भद्रपुरुष और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी शेखावाटी के चौकड़ी ठिकाने के ठाकुर श्री गोपालसिंह शेखावत के निधन पर एक कवि ने अपने उदगार प्रगट करते हुए ये पीछोला कहा –
शेखाटी री ढाल, साल शत्रुवण शेखवत |
गयो सुरग गोपाल, हाय हाय लाधे कठे ||
वे शेखावाटी की ढाल थे और शेखावतों के दुश्मनों के बैरी थे | वही गोपालसिंह अब स्वर्गधाम चले गए | हाय अब वे कहाँ मिलेंगे ?
गुढा नगर (मालानी) के राणा खीमसिंह अपने न्याय व दान के लिए विख्यात थे मालानी जोधपुर का एक परगना है | इन राणा की मृत्यु पर एक कवि के मुख से ये पीछोला निकला –
अमरापुर अडबी भई, सुराँ न लाधो न्याय |
तेड़ो राणे खीम नै , निरणे करसी न्याय ||
स्वर्ग में एक बार गड़बड़ी हो गई और देवताओं के लिए कोई न्याय करने वाला नहीं था | तब उन्होंने (देवताओं) कहा राणा खीमसिंह को बुलावो वह प्रात:काल उठकर न्याय कर देगा |
ऐसा नहीं है कि राजस्थान के कवियों द्वारा पीछोले सिर्फ राजाओं व जागीरदारों के लिए ही कहे गए हो वे अन्य लोगों के लिए भी कहे गए है जैसे ये पीछोले –
कासी पोकर जात , आबुपर सेवा अटल |
बनरावन रो वास, राज करै छै राम जी ||
काशी और पुष्कर की यात्राओं,आबू पर अटल सेवाओं और वृन्दावन के निवास के कारण आज रामजी राज्य कर रहे है (स्वर्ग में) |
उपरोक्त पीछोला रामजी जाखड़ (जाट) के लिए एक कवि णे कहा है | रामजी जाट बाड़मेर परगने के गांव धारासर के रहने वाले थे |
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