वि.सं.1891 में सीकर के राव राजा रामप्रताप सिंह जी व उनके भाई भैरव सिंह के बीच अनबन चल रही थी, इस विग्रह के सहारे अंग्रेज सत्ता सीकर में अपने हाथ पैर फ़ैलाने में लग गयी और शेखावाटी की तत्कालीन परिस्थियों को भांपते हुए ठाकुर डूंगर सिंह जी ने अपने कुछ साथियों सहित शेखावाटी ब्रिगेड से हथियार,उंट, घोड़े लेकर विद्रोह कर दिया और अंग्रेज शासित प्रदेशों में लूटपाट कर आतंक फैला दिया, इनके साथ अन्य विद्रोहियों के मिल जाने से अंग्रेज सत्ता आतंकित हो इन्हे पकड़ने के लिए उतेजित हो गयी| शेखावाटी ब्रिगेड के साथ ही सीकर, जयपुर ,बीकानेर,जोधपुर की सेनाएं इनके खिलाफ सक्रिय हो गयी| वि.सं.1895 में झदवासा गावं के भैरव सिंह गौड़ जो इनका निकट संम्बन्धी था को अंग्रेजो ने आतंक व लोभ दिखा कर डूंगर सिंह को पकड़वाने हेतु सहमत कर लिया|
वि.सं. 1903 में ठाकुर जवाहर सिंह के नेतृत्व में बारात का बहाना बना कर कोई चार पांच सों वीर योद्धाओं ने आगरा प्रस्थान किया, उपयुक्त अवसर की टोह में दुल्हे के मामा का निधन का बहाना बना कर 15 दिन तक आगरा रुके रहे,और ताजियों के दिन अचानक मौका देखा कर आगरा के लाल किले पर आक्रमण कर ठाकुर डूंगर सिंह व अन्य बंदियों को मुक्त कर दिया| इस महान साहसिक कार्य से अंग्रेज सत्ता स्तब्ध रह बौखला गयी और इन वीरों को पकड़ हेतु राजस्थान के राजाओं को सख्त आदेश भेज दिए|
आगरा किले की विजय के कुछ दिन बाद डूंगजी जवाहरजी ने अपने दल के साथ रामगढ के सेठ अनंतराम घुरामल पोद्दार से 15000 रूपए की सहायता प्राप्त कर ऊंट घोड़े व शस्त्र खरीदकर राजस्थान के मध्य नसीराबाद की सैनिक छावनी पर आक्रमण कर लुट लिया व अंग्रेज सेना के तम्बू व सामान जला दिए, व लुट के 27000 रुपये शाहपुरा राज्य के प्रसिद्ध देवी मंदिर धनोप में चढ़ा दिया, इस घटना के बाद विचलित होकर कर्नल जे. सदर्लेंड ने कप्तान शां, डिक्सन मेजर फार्स्तर के नेतृत्व में अंग्रेज सेना व बीकानेर की सेना हरनाथ सिंह व जोधपुर की सेना मेहता विजय सिंह व ओनाड़ सिंह के नेतृत्व में डूंगर सिंह को पकड़ने भेजी गयी| घद्सीसर गावं में दौनों पक्षों के मध्य घमासान युद्ध हुआ, जिसमे स्वतंत्रता प्रेमी योद्धा शासकिये सेना के घेरे में फंस गए,ठाकुर हरनाथ सिंह व कप्तान शां के विश्वास, आग्रह और नम्र व्यवहार से आशवस्त हो जवाहर सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया,बाद में बीकानेर के राजा रतन सिंह जी जवाहर सिंह जी को अंग्रेजों से छुड़वाकर ससम्मान बीकानेर ले आये|
ठाकुर डूंगर सिंह ghadsisar के सैनिक घेरे से निकल कर जैसलमेर की और चले गए लेकिन शासकिये सेनाओं ने जैसलमेर के girdade गावं के पास मेडी में फिर जा घेरा, दिन भर की लड़ाई के बाद ठाकुर प्रेम सिंह व निम्बी ठाकुर आदि के कठिन प्रयास से मरण का संकल्प त्याग कर डूंगर सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया, डूंगर सिंह को जोधपुर के किले में ताजिमी सरदारों की भांति नजर कैद की सजा मिली और उसी अवस्था में उनका देहांत हो गया|
इस प्रकार राजस्थान में भारतीय स्वतंत्रता का सशस्त्र आन्दोलन वि.सं. 1904 में ही समाप्त हो गया लेकिन मातृ-भूमि की रक्षार्थ लड़ने वालों की कभी मृत्यु नहीं होती| उनका नाम हमेशा आदर से लिया जाता है|
मरे नहीं भड़ मारका, धरती बेडी धार
गयी जे जस गित्डा, जग में डुंग जवार
उपरोक्त लेख ठाकुर सोभाग्य सिंह जी शेखावत द्वारा लिखित ‘स्वतात्र्ता सेनानी डुंग जी जवाहर जी’ पर आधारित है
लोक कलाकारों की आवाज में इन क्रांतिकारियों को गाथा सुनिए
6 Responses to "स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर डूंगर सिंह व ठाकुर जवाहर सिंह (डूंगजी जवाहरजी)"