जब जब ढलते मौसम में दिल पे वो शीत हवाएं चलती है |
मेरे प्यारे वतन , तेरी सुबह तेरी शाम मुझे बहुत रूला जाती है ||
फिर चमकती रात आई ले कर जलाने मेरे अरमानों की मशालें
तेरे दर से आने वाली ठंडी हवा इसकी तपश को मिटा जाती है |
वो कलाईयों में खनकती मचलती नयी नवेली दुल्हन की चूड़ियाँ
वो दिये लिए हाथो में यूँ अपने साजन की निगाहों में झांकती है ||
तब मेरी झुके नयनों के प्यालो में बसे मेरे वतन से दूर वो दिलदार
उसके फूल से लबो पे मचलती वो कहानियां अक्सर याद आती है |
एक वो भी दिवाली थी एक यह भी दिवाली है तुम पास थे कभी
अब रह गयी तुम्हारी यादें , संग संग तेरी जुदाई और मेरी तन्हाई है ||
लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी)
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