धोळी-धोळी चांदनी, ठंडी -ठंडी रात ।
सेजां बैठी गोरड़ी,कर री मन री बात ।।
बाट जोवतां -जोवतां, मैं कागां रोज उडाऊं ।
जै म्हारा पिया रो आवै संदेशो सोने री चांच मंढाऊं ।।
धोरा ऊपर झुपड़ी,गोरी उडिके बाट !
चांदनी और चकोर को, छुट गयो छ साथ।।
आप बसों परदेस में, बिलखु थां बिन राज १
सूख गयी रागनी, सुना पड्या महारा साज।।
गरम जेठ रो बायरो,बरसाव है ताप !
ठंडी रात री चांदनी,देव घणो संताप !!
देस दिशावर जाय कर धन है खूब कमाया !
घर आँगन ने भूलगया ,वापिस घर ना आया।।
पापी पेट रै कारन छुट्या घर और बार ।
कद आवोगा थे पिया,बिलख रही घर री नार ।।
बिलख रही घर री नार, जाव रतन सियालो ।
न चिठ्ठी- न सन्देश मत म्हारो हियो बालो ।।
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