जिस तरह आज उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भाजपा के एक खास गुट को पसंद नहीं, ठीक वैसे ही राजस्थान में भाजपा की जड़ें जमा कर उसे मजबूत करने वाले भैरोसिंहजी शेखावत भी भाजपा के कुछ रीढ़विहीन नेताओं को बहुत चुभते थे| ये रीढ़विहीन तत्व चाहते थे कि भैरोसिंहजी मेहनत कर पार्टी को सत्ता में लाये और सत्ता मिलने के बाद मुख्यमंत्री उनके गुट का बने| यही नहीं इन तत्वों ने 1994 में भैरोंसिंहजी की सत्ता पलटने की कोशिश भी तब की, जब भैरोसिंहजी अमेरिका में हृदयरोग का ईलाज कराने गए थे| इन तत्वों के षड्यंत्र का पता चलने पर भैरोंसिंहजी अमेरिका यात्रा बीच में खत्म कर आये और अपने खिलाफ षड्यंत्र को विफल किया| मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि जब भैरोसिंहजी अमेरिका से दिल्ली आये तब अटलबिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवानी ने षड्यंत्र को विफल करने में मदद की जगह उन्हें सलाह कि “वे दिल्ली में रहकर स्वास्थ्य करें, और यह भी बताया कि जयपुर पहुँचने तक संभवत: वे मुख्यमंत्री नहीं रहे|”
आडवाणी व अटलजी के परामर्श की बात 10 सितम्बर, 2001 को दैनिक भास्कर आनन्द शर्मा ने अपने लेख में लिखी है| इस षड्यंत्र पर विजय भंडारी ने अपनी पुस्तक “राजस्थान की राजनीति – सामन्तवाद से जातिवाद के भँवर में” के पृष्ठ 298 पर विस्तृत प्रकाश डाला है| विजय भण्डारी ने अपनी पुस्तक में शेखावत सरकार में सेवानिवृत तत्कालीन उच्चस्थ पदाधिकारी के हवाले से लिखा है कि- “भाजपा विधायक दल में मुख्यमंत्री के विरुद्ध ब्राह्मणगुट बन गया था| उसमें तत्कालीन मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा, वरिष्ठ मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी, वरिष्ठ विधायक धनश्याम तिवाड़ी, पूर्व मंत्री भंवरलाल शर्मा आदि थे| तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष रामदास अग्रवाल की भी भूमिका थी| ये नेतागण उस गुट का नेतृत्व करते थे| भाजपा विधायक दल दो गुटों में विभाजित हो गया था| मंत्रिमंडल की तत्कालीन निर्दलीय राज्यमंत्री शशिदत्ता तथा भाजपा के जाट विधायक डा. शंकर भाणोद को आगे करके पांच-सात और विधायकों को लेकर शेखावत के नेतृत्व के विरुद्ध विद्रोह करके षड्यंत्र रचा गया था|” हालाँकि बाद में तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष रामदास अग्रवाल ने इस षड्यंत्र को रचने का ठीकरा कांग्रेस के मत्थे फोड़ा और खुद को षड्यंत्र से अलग बताया, शायद षड्यंत्र विफल होने की आशंका से रामदास अग्रवाल ने पाला बदल लिया हो|
ब्राह्मण नेताओं ने जिनका राज्य में कोई बड़ा जनाधार नहीं था, फिर भी ये किसी तरह षड्यंत्र रचकर सत्ता हथियाना चाहते थे और उन्होंने हमेशा की तरह खुद पीछे रहकर एक राजपूत नेता के सामने जाट विधायक को आगे कर दिया| ताकि जाट-राजपूत आपस में लड़ते रहें और इस लड़ाई का फायदा उठाकर वे सत्ता सुख भोगते रहे| लेकिन चतुर राजनीतिज्ञ भैरोसिंहजी शेखावत के आगे इनकी एक ना चली और अटल-आडवाणी के बिना सहयोग के ही जीर्ण स्वास्थ्य के बावजूद वे व्यक्तिगत रूप से षड्यंत्र को विफल करने में सफल रहे| यही नहीं भैरोसिंहजी द्वारा विधानसभा में बहुमत साबित करने के बाद ये बेशर्म नेता भैरोसिंहजी के बंगले पर आये और अपने किये की क्षमायाचना की, भैरोसिंहजी ने भी क्षत्रिय परम्परा का निर्वाह करते हुए उन्हें यह कहते हुए माफ़ कर दिया कि -“राजनीति में सत्ता की उखाड़-पछाड़ सामान्य बात है|”
भाजपा ही नहीं, हर राजनीतिक पार्टी में ये तत्व जातियों को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ साधते आयें हैं| इन तत्वों से सभी जातियों को सावधान रहने की आवश्यकता है|
जाट और राजपूत दोनों को इस बात को समझने की अत्यन्त आवश्यकता है।