chetawani ra chutiya : 1903 मे लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार मे सभी राजाओ के साथ हिन्दू कुल सूर्य मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियो को अच्छा नही लग रहा था इसलिय उन्हे रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूर सिह ने ठाकुर करण सिह जोबनेर व राव गोपाल सिह खरवा के साथ मिल कर महाराणा फ़तह सिह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिह बारहट को दी | केसरी सिह बारहट ने “चेतावनी रा चुंग्ट्या ” नामक सौरठे रचे जिन्हे पढकर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुये और दिल्ली दरबार मे न जाने का निश्चय किया |और दिल्ली आने के बावजूद समारोह में शामिल नहीं हुए |
पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |
(ईंसू) महाराणा’र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै ||1||
भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की | मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके | इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है |
घणा घलिया घमसांण, (तोई) राणा सदा रहिया निडर |
(अब) पेखँतां, फ़रमाण हलचल किम फ़तमल ! हुवै ||2||
अनगिनत व भीषण युद्ध लड़ने के बावजूद भी मेवाड़ के महाराणा कभी किसी युद्ध से न तो विचलित हुए और न ही कभी किसी से डरे उन्होंने हमेशा निडरता ही दिखाई | लेकिन हे महाराणा फतह सिंह आपके ऐसे शूरवीर कुल में जन्म लेने के बावजूद लार्ड कर्जन के एक छोटे से फरमान से आपके मन में किस तरह की हलचल पैदा हो गई ये समझ से परे है |
गिरद गजां घमसांणष नहचै धर माई नहीं |
(ऊ) मावै किम महाराणा, गज दोसै रा गिरद मे ||3||
मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा लड़े गए अनगिनत घमासान युद्धों में जिनमे हजारों हाथी व असंख्य सैनिक होते थे कि उनके लिए धरती कम पड़ जाती थी आज वे महाराणा अंग्रेज सरकार द्वारा २०० गज के कक्ष में आयोजित समरोह में कैसे समा सकते है ? क्या उनके लिए यह जगह काफी है ?
ओरां ने आसान , हांका हरवळ हालणों |
(पणा) किम हालै कुल राणा, (जिण) हरवळ साहाँ हंकिया ||4||
अन्य राजा महाराजाओं के लिए तो यह बहुत आसान है कि उन्हें कोई हांक कर अग्रिम पंक्ति में बिठा दे लेकिन राणा कुल के महाराणा को वह पंक्ति कैसे शोभा देगी जिस कुल के महाराणाओं ने आज तक बादशाही फौज के अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को युद्ध में खदेड़ कर भगाया है |
नरियंद सह नजरांण, झुक करसी सरसी जिकाँ |
(पण) पसरैलो किम पाण , पाणा छतां थारो फ़ता ! ||5||
अन्य राजा जब अंग्रेज सरकार के आगे नतमस्तक होंगे और उसे हाथ बढाकर झुक कर नजराना पेश करेंगे | उनकी तो हमेशा झुकने की आदत है वे तो हमेशा झुकते आये है लेकिन हे सिसोदिया बलशाली महाराणा उनकी तरह झुक कर अंग्रेज सरकार को नजराना पेश करने के लिए आपका हाथ कैसे बढेगा ? जो आज तक किसी के आगे नहीं बढा और न ही झुका |
सिर झुकिया सह शाह, सींहासण जिण सम्हने |
(अब) रळनो पंगत राह, फ़ाबै किम तोने फ़ता ! ||6||
हे महाराणा फतह सिंह ! जिस सिसोदिया कुल सिंहासन के आगे कई राजा,महाराजा,राव,उमराव ,बादशाह सिर झुकाते थे | लेकिन आज सिर झुके राजाओं की पंगत में शामिल होना आपको कैसे शोभा देगा ?
सकल चढावे सीस , दान धरम जिण रौ दियौ |
सो खिताब बखसीस , लेवण किम ललचावसी ||7||
जिन महाराणाओं का दिया दान,बख्शिसे व जागीरे लोग अपने माथे पर लगाकर स्वीकार करते थे | जो आजतक दूसरो को बख्शीस व दान देते आये है आज वो महाराणा खुद अंग्रेज सरकार द्वारा दिए जाने वाले स्टार ऑफ़ इंडिया नामक खिताब रूपी बख्शीस लेने के लालच में कैसे आ गए ?
देखेला हिंदवाण, निज सूरज दिस नह सूं |
पण “तारा” परमाण , निरख निसासा न्हांकसी ||8||
हे महाराणा फतह सिंह हिंदुस्तान की जनता आपको अपना हिंदुआ सूर्य समझती है जब वह आपकी तरफ यानी अपने सूर्य की और स्नेह से देखेगी तब आपके सीने पर अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया ” तारा” (स्टार ऑफ़ इंडिया का खिताब ) देख उसकी अपने सूर्य से तुलना करेगी तो वह क्या समझेगी और मन ही मन बहुत लज्जित होगी |
देखे अंजस दीह, मुळकेलो मनही मनां |
दंभी गढ़ दिल्लीह , सीस नमंताँ सीसवद ||9||
जब दिल्ली की दम्भी अंग्रेज सरकार हिंदुआ सूर्य सिसोदिया नरेश महाराणा फतह सिंह को अपने आगे झुकता हुआ देखेगी तो तब उनका घमंडी मुखिया लार्ड कर्जन मन ही मन खुश होगा और सोचेगा कि मेवाड़ के जिन महाराणाओं ने आज तक किसी के आगे अपना शीश नहीं झुकाया वे आज मेरे आगे शीश झुका रहे है |
अंत बेर आखीह, पताल जे बाताँ पहल |
(वे) राणा सह राखीह, जिण री साखी सिर जटा ||10||
अपने जीवन के अंतिम समय में आपके कुल पुरुष महाराणा प्रताप ने जो बाते कही थी व प्रतिज्ञाएँ की थी व आने वाली पीढियों के लिए आख्यान दिए थे कि किसी के आगे नहीं झुकना ,दिल्ली को कभी कर नहीं देना , पातळ में खाना खाना , केश नहीं कटवाना जिनका पालन आज तक आप व आपके पूर्वज महाराणा करते आये है और हे महाराणा फतह सिंह इन सब बातों के साक्षी आपके सिर के ये लम्बे केश है |
“कठिण जमानो” कौल, बाँधे नर हीमत बिना |
(यो) बीराँ हंदो बोल, पातल साँगे पेखियो ||11||
हे महाराणा यह समय बहुत कठिन है इस समय प्रतिज्ञाओं और वचन का पालन करना बिना हिम्मत के संभव नहीं है अर्थात इस कठिन समय में अपने वचन का पालन सिर्फ एक वीर पुरुष ही कर सकता है | जो शूरवीर होते है उनके वचनों का ही महत्व होता है | ऐसे ही शूरवीरों में महाराणा सांगा ,कुम्भा व महाराणा प्रताप को लोगो ने परखा है |
अब लग सारां आस , राण रीत कुळ राखसी |
रहो सहाय सुखरास , एकलिंग प्रभु आप रै ||12||
हे महाराणा फतह सिंह जी पुरे भारत की जनता को आपसे ही आशा है कि आप राणा कुल की चली आ रही परम्पराओं का निरवाह करेंगे और किसी के आगे न झुकने का महाराणा प्रताप के प्रण का पालन करेंगे | प्रभु एकलिंग नाथ इस कार्य में आपके साथ होंगे व आपको सफल होने की शक्ति देंगे |
मान मोद सीसोद, राजनित बळ राखणो |
(ईं) गवरमेन्ट री गोद, फ़ळ मिठा दिठा फ़ता ||13||
हे महाराणा सिसोदिया राजनैतिक इच्छा शक्ति व बल रखना इस सरकार की गोद में बैठकर आप जिस मीठे फल की आस कर रहे है वह मीठा नहीं खट्ठा है |
इन सौरठों की सही सही व्याख्या करने की राजस्थानी भाषा के साहित्यकार आदरणीय श्री सोभाग्य सिंह जी से समझकर भरपूर कोशिश की गई फिर भी किसी बंधू को इसमें त्रुटी लगे तो सूचित करे | ठीक कर दी जायेगी | chetawani ra chutiya
ओर हमे भी मान है अपने इन महान राजाऒ पर, जिन्हो ने मान सम्मान के लिये मरना ओर लडना तो स्बीकार कर लिया लेकिन इन कुत्तो के सामने झुकना नही, बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, आप की सारी पोस्ट बहुत ध्यान से पढी, एक एक शव्द ने बांधे रखा, आप का धन्यवाद
लेकिन आज के यह नेता बिलकुल उलटा कर रहे है, अमेरिका जेसे गुंडे देश के पांव धो धो कर पी रहे है…खुन खुन का फ़र्क है
बहुत खुब.. आपने बहुत मेहनत का काम किया..
इसके पहले भी सोरठों का रसास्वादन कराया था आपने. लोर्ड कर्ज़न की सभा के बहिष्कार की यह कथा अनजानी ही थी. आभार.
निःसंदेह यह एक श्रेष्ठ रचना है।
वाह शेखावत जी यह बहुत अच्छी चीज चुनकर लाये है आप कविता वह भी लोक से यह कविता अतीत मे भी हमारी ताकत रही है और भविश्य मे भी रहेगी
सुन्दर तो है मुझे ये भाषा समझ मे कम आती है ….पर पसन्द है
पंकज जी ये राजस्थान की डिंगल भाषा है जिसे राजस्थान में भी अब तो बहुत कम लोग ही जानते है | मुझे भी इनकी व्याख्या करने में पसीने छुट गए यदि सोभाग्य सिंह जी से इनका भावार्थ नहीं जान पाता तो में तो इनकी व्याख्या कभी नहीं कर पाता |
आपने गौरव की सुखद अनुभूति करादी……….
राणा का शौर्यपूर्ण इतिहास हमारे स्वाभिमान के मुकुट की मणि है
आपको प्रणाम इस अत्यन्त उत्तम पोस्ट के लिए…………
बहुत उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं आप. इस डिंगल भाषा के जानकार वाकई अब नही हैं. श्री सौभाग्य सिंह जी से जितना हो सके यह अनुवाद करवा लिजिये, आगे जाकर यह भी एक धरोहर बनने वाली है.
रामराम.
बहुत सुंदर प्रयास, इसी बहारे हमारी जानकारी भी थोडी बहुत बढी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ओह, महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण याद आ रहे हैं।
यह जरूर है कि राजस्थान में बहुत समय गुजारने और देखने के बाद भी राजपूत साइके (psyche) पूरी तरह समझ में नहीं आती। इतनी वीरता और शौर्य के बाद भी मुगलिया साम्राज्य चल कैसे गया। मेवाड़-मारवाड़ इज्राइल सरीखा क्यों न बन सका?
ज्ञान जी मुगलिया साम्राज्य भी इन्ही असंगठित राजाओं के कारण चल गया | हो सकता है उस समय उनकी अपनी अपनी राजनैतिक मजबूरियां रही होगी |
मै आपके दिए कार्य में असफल रहा इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .
Sundar
इस में ९ वे दोहे का अर्थ यह होना चाहिए :
हे सिसवाद (महाराणा ) जब आप का सीस दिल्ली दरबार में झुकेगा तो दिल्ली का यह दंभी गढ़ ,मन ही मन मुस्करायेगा (क्यों की किसी भी महाराणा ने आज तक दिल्ली की आधीनता
स्वीकार नही की )
लेकिन आखिर में हुआ क्या ? लार्ड कर्जन के दरबार में राणा गए या नहीं ? वो अंत तक पता नहीं चला
ये दोहे पढने के बाद महाराणा दिल्ली पहुँचने के बावजूद दरबार में नहीं गये उनकी खुर्शी खाली ही रही शायद उस दरबार की फोटो उदयपुर महल में लगी है जिसमें सभी राजा बैठे है और महाराणा का आसन खाली पड़ा है!!
@ rajput…. maharana beech raste se hi apna kafila wapas MEWAR le gaye the.
महाराणा दिल्ली गये जरुर थे परन्तु दरबार में उपस्थित नही हुए। महाराणा की स्पेसल ट्रेन अजमेर पंहुची तो खरवा राव साहेब गोपाल सिंह जी ने यह दोहे उनके नजर किये , महाराणा ने उनको पढने के बाद कहा की अगर यह दोहे मुझे उदयपुर में ही मिल जाते तो मै रवाना ही नही होता।
महाराणा दिल्ली गये जरुर थे परन्तु दरबार में उपस्थित नही हुए। महाराणा की स्पेसल ट्रेन अजमेर पंहुची तो खरवा राव साहेब गोपाल सिंह जी ने यह दोहे उनके नजर किये , महाराणा ने उनको पढने के बाद कहा की अगर यह दोहे मुझे उदयपुर में ही मिल जाते तो मै रवाना ही नही होता।
भाई साहब इतिहास का नाम बताने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
गौतम कपूर
आमेर
9829053122
Very nice hukum
अनुपम कृति
…बेजोड़ अनुवाद
Bahut hi sunder tarike se aapne in sortho ka anuwad kiya h . Y wakai romanchak aur gyanvardhak h . Aapke is karya ke liye dhanyavad aur hardik badhai.
Bhot bhot dhanayad apka hamari knowledge badana ka liya