सिर ऊँचो थिर डुंगरां, मोटो नहीं गुमान | सिर ऊँचो राखै सदा, रेती कण रजथान ||३१३|| यहाँ के (राजस्थान के) स्थिर पहाड़ों के मस्तक यदि ऊँचे है तो इसमें कोई अभिमान करने योग्य बात नहीं है | क्योंकि इस राजस्थान में तो मिटटी के कण भी सदा अपना मस्तक ऊँचा रखते है | अरियां मन […]
बरसालो बरसै भलो, हवा न बाजै लेस | धोरां में धापा करै, मोरां हंदो देस ||२८६|| बरसात में अच्छी वर्षा हो व हवा न चले तो रेगिस्तानी इलाके में भरपूर पैदावार होती है | ऐसा यह मरुप्रदेश है जहाँ मोर-पक्षी अधिक होते है | बिन बादल आकाश नित, खै खै पवन चलाय | काल पड़न्तां […]
धरती ठंडी बायरी, धोरा पर गरमाय | कामण जाणे कलमली, पिव री संगत पाय ||२९५|| धरती पर बहने वाली शीतल वायु टीलों पर से गुजर कर गर्म हो जाती है ,जैसे प्रिय का संपर्क पाकर कामिनी गर्मी से चंचल हो उठती है | सीतल पण डावो घणों, दिलां आग लपटाय | डावो बण तूं डावड़ा, […]
हरिया गिर,बन,ढोर,खग, हरी साख हरखाय | मन हरिया मिनखांण रा, बिरहण एक सिवाय ||२८०|| हरे पहाड़,वन,पशु,पक्षी,हरी भरी फसल आज सभी वर्षा के आने से प्रसन्न है | एक विरहणी को छोड़कर सभी मनुष्यों के मन हर्षित हो गए है | भादरवा बरसो भल, तौ बरस्यां सरसाय | धरणी, परणी, धावडी, जड़ जंगम जंगलाय ||२८१|| भाद्रपद […]
चालो खेत सुवावणा, झिल्ली री झणकार | बाजरियो झाला दिवै, मारगियो मनवार ||२७४|| सुहावने खेतों में चलो जहाँ झींगुर की झंकार गूंज रही है | बाजरे के सिट्टे हिल हिल कर संकेतों से बुला रहे है तथा खेत का मार्ग आने की मनुहार कर रहा है | हींड़ो लूमै होड सूँ, तीज तणों त्युंहार | […]
नभ लहराती बादली, बीजल रेख बणाय | ज्यूँ काजलिया चीर पर, गोटो कोर खिंचाय ||२६८|| आकाश में घुमड़ती हुई बादली के बीच विद्युत रेखा ऐसी दिखाई दे रही है जैसे काले रंग की ओढ़नी पर गोटे की किनारी जड़ी हो | सरवर पाल सुहावणी, की सोभा केणीह | मृग नाचै, लटका करै, मटका मृग नैणीह […]
गरजत बरजत सोच दिल, लुक छिप दाव लड़ंत | इण धरती पर आवतां, इन्दर डरपै अन्त ||२६२|| यहाँ (राजस्थान में) बादल लुकते छिपते ही कभी कभार बरसते है | मानों यहाँ आते हुए इंद्र को भी डर लग रहा है | कांसी लीलो रंग करयो, नाड़ी तातो नीर | बादल बासी रात रा, धरलै कामण […]
हेलो सुण मो बादली, मत कर इतो गुमान | हिम-गिर बरस्यां नह सिरै, बरसो राजस्थान ||२५६|| हे बादली ! हमारी पुकार सुनकर इतना गर्व न करो | हिमालय पर बरसने से काम नहीं चलेगा | राजस्थान में बरसो जहाँ देश के रक्षक पैदा होते है | बुठो भोली बादली, तूठो जग दातार | रूठो मत […]
राहू डसियां नह छिपै, छिपै न बादल ओट | झीणी रज पड़दै छिपै, दिनकर करमां खोट ||२५०|| राहू के ग्रसने पर भी जो पूरी तरह नहीं छिपता और न ही बादलों की ओट में छिपता है | वही सूर्य झिनी गर्द के आवरण में छिप जाता है | इसे सूर्य के कर्मों का दोष ही […]
बीजल सी चंचल लुवां, नागण सी खूंखार | पाणी सूँ पतली घणी, पैनी धार कटार ||२४४|| राजस्थान में चलने वाली गर्म हवाएं बिजली सी चंचल है ,नागिन सी भयावह है , पानी से भी पतली है तथा कटार की धार सी तीक्षण है || बालै , चूंवै अंग सूँ, नह दीसै नैणांह | भूतण सी […]